वर्तमान व्यावसायिक परिदृश्य में पारंपरिक खुदरा और ई-कामर्स दोनों ही स्वरूप प्रचलित हैं। ई-कामर्स ने पिछले कुछ वर्षों से तेजी से प्रगति की है। इसका प्रचलन बढ़ रहा है। दोनों ही व्यावसायिक स्वरूपों की अपनी खूबियां और कमियां हैं। खुदरा क्रय में क्रेता और विक्रेता आमने सामने होते हैं। उनके बीच व्यक्तिगत संबंध हो सकते हैं। जबकि ई-कामर्स में यह बात नहीं रहती, लेकिन आनलाइन खरीदारी ग्राहकों को घर बैठे वस्तुओं की प्राप्ति की सुविधा देती है और वैश्विक उत्पादों तक पहुंच आसान बनाती है। अब तो बिना ई-कामर्स के गांवों और छोटे शहरों में वैश्विक स्तर के ब्रांड और वस्तुओं का विविधता के साथ उपलब्ध होना मुश्किल है।
भारत का ई-कामर्स बाजार दुनिया में सबसे तेजी से बढ़ने वाला बाजार है
देश के दोनों तरह के व्यवसायों पर नजर डालें, तो पता चलता है कि भारत का ई-कामर्स बाजार दुनिया में सबसे तेजी से बढ़ने वाला बाजार है। वर्ष 2020 में भारतीय ई-कामर्स कारोबार 3,46,500 करोड़ रुपए का था। यह वर्ष 2026 तक बढ़ कर 10,23,525 करोड़ रुपए का होने का अनुमान है। ई-कामर्स गतिविधियां बढ़ रही हैं। डिजिटल भुगतान प्रणालियों के बढ़ते उपयोग के कारण इसमें और तेजी आई है। यों खुदरा व्यवसाय में भी तेजी आ रही है। कई नए खिलाड़ियों के प्रवेश के कारण भारतीय खुदरा व्यवसाय सबसे गतिशील और तेज गति वाले व्यवसायों में से एक के रूप में उभरा रहा है। यह देश के सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) का दस फीसद से अधिक है। भारत में मध्यम वर्ग की बड़ी आबादी अंतरराष्ट्रीय खुदरा दिग्गजों के लिए भी आकर्षण का केंद्र रही है।
शहरी उपभोक्ताओं की क्रय शक्ति बढ़ रही है। परिधान, सौंदर्य प्रसाधन, जूते, घड़ियां, पेय पदार्थ, भोजन और यहां तक कि आभूषण जैसी श्रेणियों में ‘ब्रांडेड सामान’ शहरी भारतीय उपभोक्ताओं को बहुत पसंद आ रहे हैं। बोस्टन कंसल्टिंग ग्रुप (बीसीजी) के एक नवीनतम विश्लेषण के अनुसार भारत के खुदरा क्षेत्र का कारोबार 2032 तक दो लाख करोड़ अमेरिकी डालर तक पहुंचने की उम्मीद है। देश में खुदरा व्यवसाय का नया स्वरूप शापिंग माल के रूप में भी उभर रहा है। बहुराष्ट्रीय निगमों द्वारा भारत के उपभोक्ता आधार का लाभ उठाने और बाजार में पहले प्रवेश करने की प्रबल इच्छा के कारण वर्ष 2023 से 2025 के दौरान लगभग साठ नए शापिंग माल चालू होने की संभावना है।
भारत खुदरा क्षेत्र में निवेश करने के लिए सबसे अच्छे देशों में से एक है। भारत को इतना आकर्षक बनाने वाले कारकों में दुनिया की दूसरी सबसे बड़ी आबादी, मध्यम आय वर्ग की बड़ी संख्या, बढ़ता शहरीकरण, बढ़ती घरेलू आय, नए जुड़ते ग्रामीण उपभोक्ता और उपभोक्ताओं का बढ़ता खर्च आदि कई घटक शामिल हैं।
खुदरा बाजार क्रेता और विक्रेता के जुड़ाव का अनुभव कराता है
खुदरा व्यवसाय बनाम ई-कामर्स की दृष्टि से दोनों का तुलनात्मक विश्लेषण करें तो हम पाते हैं कि उपभोक्ता परिदृश्य में बदलाव के दौर में खुदरा और ई-कामर्स दो अलग-अलग माध्यम हैं। ‘खुदरा स्टोर’ एक ऐसा वातावरण प्रदान करते हैं, जिनसे एक अनुभव प्राप्त होता है। किसी उत्पाद के रंग को स्पष्ट रूप से देखना, उसकी बनावट को महसूस करना और यहां तक कि उसकी खुशबू को सूंघना जैसी बातें वस्तुओं के क्रय में महत्त्वपूर्ण भूमिका का निर्वाह करती हैं। दूसरी ओर इलेक्ट्रानिक कामर्स आभासी विस्तार में होती है, जहां उत्पादों को छवियों, वीडियो और विवरणों आदि के माध्यम से उत्पाद को दर्शाया जाता है। खुदरा व्यवसाय का वातावरण खरीदारी की अनुभूति प्रदान करता है। स्टोर के माहौल से लेकर उत्पादों के विक्रेताओं के साथ बातचीत तक यह क्रेता और विक्रेता के जुड़ाव का अनुभव कराता है। इसके विपरीत ई-कामर्स आधुनिक दौर में सुविधा का प्रतीक है। यह सहज और परेशानी मुक्त खरीदारी का अवसर प्रदान करता है जो व्यस्त जीवनशैली जीने वालों या बिना किसी मेहनत के विकल्पों में व्यापकता तलाश करने वालों के लिए सर्वाधिक उपयुक्त लगता है।
इसी प्रकार डिजिटल क्षेत्र की विशालता भौतिक स्थान की बाधाओं से मुक्त होकर उत्पादों की विविधता प्रदर्शित कर सकती हैं। इतनी विविधता खुदरा विक्रेताओं के पास सामान्यत: नहीं मिल पाती। पारंपरिक खुदरा व्यापार में मानवीय संपर्कों पर जोर दिया जाता है। इसमें ग्राहक तुरंत अपनी चिंताओं पर चर्चा कर सकता है और सवाल पूछ कर शंकाओं को दूर कर सकता है। खुदरा व्यापार में भौतिक स्टोर चलाने की लागत, काम करने वाले कर्मचारियों का वेतन और बहुत से अन्य खर्च आते हैं, जिन्हें उत्पाद के मूल्य में जोड़ा जाता है। इससे उत्पाद का विक्रय मूल्य बढ़ जाता है। जबकि ई-कामर्स में यह नहीं होता। उसकी डिजिटल प्रकृति के कारण यह हमेशा ‘व्यापार के लिए खुला’ रहता है। चाहे छुट्टी हो, आधी रात हो या सुबह, उपभोक्ता अपनी सुविधानुसार जब चाहें खरीदारी कर सकते हैं। जबकि खुदरा व्यापार के स्टोर को समय, छुट्टियों और अन्य स्थानीय नियमों द्वारा नियंत्रित होना होता है।
ई-कामर्स में अलग अलग साइटें, ईमेल, सोशल मीडिया और लाइव चैट जैसे कई चैनलों के माध्यम से चौबीस घंटे सातों दिन ग्राहक सहायता उपलब्ध होती हैं। खुदरा स्टोर खोलने में तीन से छह महीने तक का समय लग सकता है, जबकि ई-कामर्स स्टोर को तीन महीने से भी कम समय में शुरू किया जा सकता है। खुदरा स्टोर में अगर कोई उत्पाद दोषपूर्ण लगता है, तो उसे तुरंत वापस किया जा सकता है, लेकिन ई-कामर्स में उत्पाद वापस करने और उसे बदलने में कई दिन और सप्ताह लग सकते हैं। कई बार वापस करने और बदलने की सुविधा नहीं मिलती। वापस करने पर मूल्य भुगतान में भी कभी-कभी आनाकानी होती है। ई-कामर्स में कई बार नकली ब्रांड उत्पाद विक्रय की समस्या भी आती है।
ई-कामर्स के बढ़ते प्रचलन के कारण खुदरा दुकानें बंद होने की खबरें भी आती रहती हैं। ‘यूबीएस’ के विश्लेषकों के अनुसार आने वाले वर्षों में करीब पैंतालीस हजार खुदरा स्टोर बंद होने का अंदेशा है। इसको ध्यान में रखते हुए खुदरा व्यापारी अपना अस्तित्व बचाने के लिए प्रयास कर रहे हैं। शहरी व्यापारियों ने ई-कामर्स को चुनौती देने के लिए रणनीति बनानी शुरू कर दी है। शहर के व्यापारी भी ग्राहकों को घर तक सामान पहुंचाने के लिए कर्मचारी रख रहे हैं। हाल ही में राजस्थान के प्रमुख शहरों में दो से ढाई लाख लोगों को ‘डिलीवरी ब्वाय’ के रूप में नियुक्त किया है, ताकि वे भी ई-कामर्स की तर्ज पर ग्राहकों के घर तक सामान उपलब्ध करवा सकें।
स्थानीय बाजार और व्यापारियों को बढ़ावा देने के लिए कई ऐप भी शुरू किए जा चुके हैं। इन ऐप में हजारों व्यापारी अपने उत्पादों और सेवाओं को उपलब्ध कराने के लिए जुड़ रहे हैं। आज के व्यवसायिक परिवेश में ई-कामर्स और खुदरा व्यवसाय दोनों माध्यमों का अस्तित्व रहेगा। इसलिए इन दोनों को अपनी चुनौतियों और समस्याओं को दूर करना होगा।
ई-कामर्स को अपने ग्राहकों की शिकायतों का समुचित समाधान करने की जरूरत है, साथ ही उसे अनुचित मूल्य प्रतिस्पर्धा से खुदरा व्यवसाय को हानि पहुंचाने का प्रयास नहीं करना चाहिए। ग्राहकों को भी खुदरा व्यवसाय के संरक्षण की दृष्टि से अपनी खरीदारी में बदलाव लाने की जरूरत है। सामान्य जरूरत की वस्तुओं को आनलाइन खरीदने के बजाय स्थानीय व्यापारियों से खरीदना चाहिए। जहां जरूरी हो और वह उत्पाद स्थानीय स्तर पर नहीं मिल रहा हो, तभी आनलाइन खरीदना चाहिए।