लोगों के सार्वजनिक और निजी जीवन को लेकर मनमानी बातें करने की प्रवृत्ति अब आम लोगों के लिए भी परेशानी का सबब बन गई है। हमारे सामाजिक-पारिवारिक परिवेश में किसी व्यक्ति के गलत या सही विचार-व्यवहार को लेकर टीका-टिप्पणी करने की आदत सदा से जीवन को दूभर कर देती रही है। किसी घटना-दुर्घटना के सभी पक्षों को जाने-समझे बिना तानों-उलाहनों की बौछार करने में पराए ही नहीं, अपने भी नहीं चूकते। पहले से ही परिस्थितिजन्य पीड़ा के शिकार किसी इंसान या परिवार को ठेस पहुंचाने के इस व्यवहार को अब तकनीकी मंचों ने और विस्तार दिया है।

देखने में आता है कि सहज से वाकये को भी विवादास्पद बनाकर आभासी माध्यमों पर होने वाले संवाद में हद दर्जे तक विद्रूप बना दिया जाता है। आभासी दुनिया में ‘ट्रोलिंग’ कहा जाने वाला यह बर्ताव लोगों को आत्महत्या करने के हालात तक ले जा रहा है।

बीते दिनों तमिलनाडु की राजधानी चेन्नई में ‘ट्रोलिंग’ से परेशान होकर एक आइटी पेशेवर मां ने खुदकुशी कर ली। गौरतलब है कि तैंतीस वर्षीय महिला की बच्ची गोद से फिसलकर गिरी और छज्जे पर अटक गई। आस-पड़ोस के लोगों ने पंद्रह मिनट की मशक्कत के बाद बच्ची को तो बचा लिया, पर उस घटना का वीडियो सोशल मीडिया पर प्रसारित हो गया। उसके बाद आभासी दुनिया में लोग महिला को खरी-खोटी सुनाने के लिए टूट पड़े। उसकी ‘ट्रोलिंग’ शुरू हो गई। किसी ने लापरवाह मां कहा, तो किसी ने बच्ची का ढंग से खयाल रखने की रूखे शब्दों में सलाह दी।

स्थिति ऐसी बना दी गई कि घटना के बाद महिला अवसाद में चली गई। जबकि यह घटना जान-बूझकर की गई किसी गलती का परिणाम नहीं थी। लोगों ने यह क्यों नहीं समझा कि एक शिक्षित-सजग मां अपनी बच्ची की देखभाल में लापरवाही क्यों बरतेगी? क्यों लोगों के पास उसे कोसने की अंधी दौड़ में इस घटना के कारण को लेकर सोचने तक का अवकाश नहीं था? विचारणीय है कि ऐसा हादसा किसी के भी साथ हो सकता है। इस घटना का सबसे पीड़ादायी पक्ष यह है कि बिना गलती की सजा के रूप में दिए गए तानों-उलाहनों ने एक मासूम बच्ची से उसकी मां छीन ली। हालांकि इस मासूम की कुशलता और बचाव के लिए साझा प्रयास किए जा रहे हैं, पर ऐसी सोच को लेकर अनगिनत प्रश्न भी मौजूद हैं।

हाल के वर्षों में अधिकतर आभासी माध्यम आक्षेप, आरोप और उपहास का अड्डा बन गए हैं। आम लोग भी जीवन से जुड़ी किसी घटना-दुर्घटना के कारण बेवजह सलाह-मशविरा के नाम पर ‘ट्रोलिंग’ की जद में आ जाते हैं। बात का बतंगड़ बनाने का यह व्यवहार सचमुच जीना मुहाल करने वाला है। अपमान और उपहास का ऐसा मेल, किसी की भी मन:स्थिति को बिखेर सकता है। सहज-सी तस्वीर हो या कोई पारिवारिक आयोजन, सामाजिक जीवन से जुड़ा कोई वाकया हो या व्यक्तिगत सोच, आपसी जुड़ाव के लिए अस्तित्व में आए सोशल मीडिया मंचों पर होने वाली ‘ट्रोलिंग’ एक दुखदायी समस्या बन गई है।

कुछ समय पहले उत्तर प्रदेश दसवीं बोर्ड परीक्षा में अव्वल आई एक बच्ची को उसके चेहरे पर दिख रहे बालों को लेकर सोशल मीडिया पर खूब ‘ट्रोल’ किया गया। दुर्भाग्यपूर्ण ही कहा जाएगा कि एक छात्रा द्वारा हासिल किए गए अंक, साल भर की मेहनत और अकादमिक प्रतिबद्धता पर ध्यान देने के बजाय सोशल मीडिया मंचों पर समाज के एक बड़े तबके ने अजीबो-गरीब बातें लिखीं। सफलता के लिए जिस बच्ची की सराहना की जानी चाहिए थी, लोग उसके चेहरे में ही मीनमेख निकालने लगे। उसके चेहरे पर दिख रहे बालों को लेकर मजाक बनाने वाली तस्वीरें और टिप्पणियां सोशल मीडिया पर छा गईं।

किसी के व्यक्तिगत जीवन पर टीका-टिप्पणी करने का यह अमानवीय बर्ताव आखिर क्यों और कैसे जड़ें जमा रहा है? क्यों तकनीकी सुविधाओं ने आभासी संसार में रमे लोगों को इतना बेसुध कर दिया है कि चर्चित चेहरों के ही नहीं, आम लोगों के व्यक्तिगत जीवन में भी मीनमेख निकालने लगे हैं?

अब न किसी के दुख को समझने का भाव दिखता है और न ही सहज स्थितियों से सामने आए किसी सुखद परिणाम की स्वीकार्यता, जिसके चलते अर्थहीन कहासुनी का परिणाम किसी का जीवन छीन लेने की भयावह परिस्थितियां बना रहा है। दरअसल, ‘आनलाइन’ चर्चाओं का सार्थक भाव कहीं खो गया है। अर्थपूर्ण संवाद का स्थान संवेदनहीनता और नफरत की विकृत मानसिकता ने ले लिया है। दुखद यह भी है कि यह सब अपरिचित लोगों के साझा संवाद में हो रहा है।

अधिकतर अनजाने-अनदेखे चेहरों को इस घृणा और बेवजह गरियाने की मानसिकता का शिकार बनाया जाता है। ऐसा बेनाम चेहरा, जो किसी व्यक्ति या समूह को प्रतिक्रिया देने के लिए उकसाने के उद्देश्य से जानबूझकर किसी बहस की शुरुआत करता है। इतना ही नहीं, भड़काऊ या आक्रामक टिप्पणियां देते हुए आभासी दुनिया में एक भीड़ को इस संवाद का हिस्सा बना लेता है। बहुत से लोग बिना सोचे-समझे अपमान, उकसावे और धमकी भरी भाषा की बमबारी करने वाली इस मुहिम का हिस्सा बन जाते हैं।

भारत ही नहीं, दुनिया के हर हिस्से में क्षेत्र विशेष की जानीमानी हस्तियां लंबे समय से इस तरह के व्यवहार झेलती आई हैं। हाल के वर्षों में आम हो या खास, हर कोई नकारात्मक मानसिकता वाले ऐसे लोगों के निशाने पर आने लगा है। किसी को क्रोधित करने, आत्महीनता लाने या अपराधबोध जगाने के उद्देश्य से की जाने वाली टिप्पणियां और प्रतिक्रियाएं अब आए दिन सोशल मीडिया में देखने को मिलती हैं।

विडंबना है कि यह आनलाइन दुर्व्यवहार इसके शिकार लोगों की मुश्किलें असली संसार में भी बढ़ा देता है। कई लोग भावनात्मक रूप से चोट पहुंचाने वाली भीड़ के इस विवेकहीन व्यवहार से व्यथित-विचलित होकर आत्महत्या जैसा कदम उठा लेते हैं। करीब दस साल पहले सिडनी की सैंतालीस वर्षीय टीवी प्रस्तोता चार्लोट डासन ‘ट्रोलिंग’ की पहली शिकार बनी थीं।

अध्ययन बताते हैं कि उम्र के नाजुक मोड़ पर खड़े किशोरों में बढ़ती आत्महत्या के मामलों से ‘ट्रोलिंग’ और आनलाइन नकारात्मकता का गहरा संबंध है। कुछ समय पहले उज्जैन के सोलह वर्षीय ‘सोशल मीडिया इंफ्लुएंसर’ ने भी ट्रोलिंग से परेशान होकर खुदकुशी कर ली थी। महिलाओं को तो हर बात में ही ‘ट्रोलिंग’ का शिकार बना दिया जाता है। कभी शारीरिक बनावट को लेकर तानेबाजी की जाती है तो कभी किसी स्त्री के विचारों को लेकर उलाहने दिए जाते हैं। कुल मिलाकर, आभासी उत्पीड़न का यह घेरा निशाने पर आए इंसान को बेचैन करने वाला वातावरण बना देता है। ऐसे में, किसी भी विषय, घटना या दुर्घटना को लेकर कुछ कहने से पहले ठहराव के साथ उसे समझना-जानना आवश्यक है। मानवीय समझ और सरोकारी सोच ही इस दुर्भाव को रोक सकती है। बेहद जरूरी हो चला है कि लोग तकनीक से मिली सुविधाओं को सनक न बनाएं।