पंजाब का भूजल एक बार फिर चर्चा में है। इसकी वजह पंजाब केंद्रीय विश्वविद्यालय का एक अध्ययन और केंद्र सरकार द्वारा लोकसभा में दिया गया एक जवाब है। दोनों का सार एक ही है कि पंजाब का भूजल अब पीने योग्य नहीं रह गया है। कई जिलों का भूजल लोगों को बीमार कर सकता है। अंदेशा है कि अगर जरूरी कदम नहीं उठाए गए तो आने वाले वर्षों में पंजाब का भूजल सूख जाएगा। पंजाब केंद्रीय विश्वविद्यालय के अध्ययन के मुताबिक पंजाब में, खासकर मालवा क्षेत्र के लोगों को उच्च ‘टीडीएस’ वाले भूजल और उथले कुओं (60 मीटर से कम गहरे) का पानी पीने से परहेज करना चाहिए, क्योंकि इनमें उच्च स्तर के जहरीले प्रदूषक, खासकर यूरेनियम और फ्लोराइड पाए गए हैं।
दूषित भूजल पीने से बड़ों और बच्चों को गंभीर जोखिमों का सामना करना पड़ता है
दूषित भूजल पीने से वयस्कों और बच्चों को गंभीर स्वास्थ्य जोखिमों का सामना करना पड़ता है। इससे पता चलता है कि सर्वाधिक प्रभावित जिलों- फजिल्का, श्री मुक्तसर साहिब, बठिंडा और बरनाला में भूजल मानव उपभोग के लिए बेहद असुरक्षित है। इन क्षेत्रों में उथले कुएं पीने और सिंचाई के लिए अनुपयुक्त हैं।
हाल में केंद्रीय जलशक्ति राज्यमंत्री ने लोकसभा में एक सवाल के जवाब में बताया कि पंजाब का भूजल अब पीने योग्य नहीं रह गया है। कई जिलों के पानी में घातक धातु का मिश्रण है, जिससे कैंसर हो सकता है। मंत्री ने बताया है कि भूजल के नमूनों में नाइट्रेट, आयरन, आर्सेनिक, सेलेनियम, क्रोमियम, मैगनीज, निकल, कैडमियम, लेड और यूरेनियम जैसे खतरनाक तत्त्व पाए गए हैं।
यह पहला अवसर नहीं है, जब पंजाब के भूजल को लेकर कोई अध्ययन हुआ है
यह पहला अवसर नहीं है, जब पंजाब के भूजल को लेकर कोई अध्ययन हुआ है। पहले भी कई बार ऐसे अध्ययन हो चुके हैं और हर बार खराब होते भूजल के खतरों से आगाह किया गया है। पिछले वर्ष हिमाचल प्रदेश के मंडी स्थित आइआइटी ने एक शोध में चेताया था कि पंजाब के 94 फीसद लोग जिस भूजल का इस्तेमाल कर रहे हैं, वह दूषित हो चुका है। यह अनेक रोगों का कारण बन रहा है। आइआइटी ने अपने अध्ययन में पिछले बीस वर्षों के आंकड़ों का अध्ययन किया था। उसमें पाया गया कि पंजाब के भूजल का स्तर लगातार गिर रहा है और अब यह इतना नीचे जा चुका है कि पानी की गुणवत्ता खराब हो चुकी है। शोध के अनुसार पंजाब के दक्षिण-पश्चिमी क्षेत्र में पानी की गुणवत्ता काफी खराब हो गई है।
वर्ष 2021 में आइआइटी कानपुर के एक शोधपत्र में भी गिरते भूजल स्तर की समस्या को दर्शाया गया था। उसके मुताबिक पिछले चार-पांच दशक में पंजाब और हरियाणा में भूजल स्तर खतरनाक स्तर तक गिर गया है। गुरु नानक देव यूनिवर्सिटी, अमृतसर और पंजाब यूनिवर्सिटी, चंडीगढ़ के अध्ययनों में भी खराब होते भूजल की जानकारी मिलती है। इससे पहले 2020 में केंद्रीय भूजल बोर्ड की ओर से पंजाब में प्रखंडवार भूजल संसाधन मूल्यांकन में पाया गया था कि पंजाब के ज्यादातर जिलों में भूजल का अत्यधिक दोहन हो रहा है। कुछ जिलों में गिरते भूजल स्तर को गंभीर माना गया था।
भूजल में कैल्शियम, मैग्नीशियम, नाइट्रेट और फ्लोराइड की मात्रा बढ़ गई है
अब तक हुए सभी शोधों में एक बात समान है कि इस संकट का सबसे बड़ा कारण अत्यधिक भूजल दोहन है। पंजाब एक कृषि बहुल सूबा है। यहां की 74 फीसद से अधिक सिंचाई की आवश्यकता भूजल से पूरी होती है। वहां एक तरफ अत्यधिक भूजन दोहन हो रहा है, दूसरी तरफ खेती में इस्तेमाल होने वाले रसायन भूजल में मिल कर उसे जहरीला बना रहे हैं। विभिन्न शोधों से पुष्टि होती है कि पंजाब के भूजल में कैल्शियम, मैग्नीशियम, नाइट्रेट और फ्लोराइड की मात्रा अत्यधिक बढ़ गई है। इससे लोग विभिन्न रोगों के शिकार हो रहे हैं। केंद्रीय भूजल बोर्ड के अनुसार मध्य पंजाब के अधिकांश स्थानों पर भूजल स्तर पहले ही 150-200 मीटर तक पहुंच चुका है। अगर ऐसा ही रहा तो वर्ष 2039 तक इसके 300 मीटर से नीचे गिरने का अंदेशा है।
विभिन्न शोधों में अत्यधिक भूजल दोहन की बड़ी वजह धान की खेती को माना जाता है। कृषि विशेषज्ञ और पर्यावरणविद भूजल संकट से निपटने के लिए धान की खेती को चरणबद्ध तरीके से समाप्त करने के पक्ष में हैं, पर किसान इसकी खेती इसलिए करने पर मजबूर हैं कि उनके पास कोई और विकल्प नहीं है। कपास की खेती गुलाबी सुंडी और सफेद मक्खी के प्रकोप ने तबाह कर दी है। इसलिए अब कपास का रकबा घट रहा है। पंजाब के किसानों को धान से अच्छी आमदनी हो रही है। अगर वे धान के बजाय दूसरी फसलों की खेती शुरू भी कर दें तो उन्हें उनकी सुनिश्चित खरीद और वाजिब दाम मिलने को लेकर अंदेशा है।
कुछ विशेषज्ञ खेती के लिए मुफ्त बिजली को अत्यधिक भूजल दोहन की वजह बताते हैं। वे सलाह देते हैं कि अगर नलकूपों के लिए सरकार मुफ्त बिजली देना बंद कर दे तो भूजल दोहन में कमी आ सकती है। उधर, सरकारों की अपनी राजनीतिक मजबूरियां हैं। कोई भी सरकार मुफ्त बिजली बंद करने का जोखिम नहीं उठाना चाहती। विशेषज्ञ सूबे की नहर आधारित सिंचाई तकनीकों को बेहतर बनाने के लिए ब्रिटिश काल की नहर प्रणालियों को फिर से तैयार करने पर जोर दे रहे हैं।
अब तक हुए सभी अध्ययन जहां पंजाब में भूजल प्रदूषण की चिंताजनक स्थिति दर्शाते हैं, वहीं नीति निर्माताओं को जल्द सार्थक कदम उठाने के लिए आगाह भी करते हैं। केंद्रीय भूजल बोर्ड की 2019 की एक रपट में तो यहां तक कहा गया कि अगर भूजल दोहन की मौजूदा दर जारी रही, तो आगामी 22 वर्षों में राज्य का इस्तेमाल करने लायक भूजल खत्म हो जाएगा। बोर्ड की इस रपट को पांच साल बीत चुके हैं। इस दौरान इस दिशा में कोई सार्थक कदम नहीं उठाया गया है।
शोधकर्ताओं ने समय-समय पर हानिकारक प्रभावों को कम करने के लिए सामुदायिक स्तर पर ‘रिवर्स आस्मोसिस’ (आरओ) संयंत्र स्थापित करने, सामुदायिक जल भंडारण टैंकों में नहर के पानी के साथ भूजल को मिलाने और घरों में आरओ आधारित जलशोधक स्थापित करने के सुझाव दिए हैं। पंजाब केंद्रीय विश्वविद्यालय ने अध्ययन से सामने आए सार्वजनिक स्वास्थ्य संकट के समाधान के लिए तत्काल कार्रवाई करने की जरूरत पर बल दिया है। विश्वविद्यालय ने प्रभावी जल प्रबंधन और उपचारात्मक रणनीतियों को विकसित और लागू करने के लिए भूजल निगरानी बढ़ाने के लिए कहा है। जितने भी आवश्यक कदम उठाने की अनुशंसा विशेषज्ञों ने की है, उन्हें धरातल पर उतारने के लिए जल्द ही काम करना होगा।
इसके लिए जहां किसानों और आम लोगों में जागरूकता बढ़ाने की जरूरत है, वहीं सरकारी एजंसियों, उद्योगों, शोधकर्ताओं और स्थानीय समुदायों का समन्वित सहयोग भी लेना होगा। यह एक ऐसी समस्या है, जिसे नजरअंदाज किया जाता रहा, तो पंजाब के साथ पूरा देश इसके दुष्परिणाम झेलेगा। विशेषज्ञों की चेतावनी है कि अगर पंजाब का भूजल सूख गया तो यह देश की खाद्य सुरक्षा के लिए बड़ा खतरा साबित हो सकता है।