भारत की संप्रभुता, सुरक्षा और संसाधनों की रक्षा के लिए प्रधानमंत्री ने एक नई रणनीति अपनाने की घोषणा की है। इसे उन्होंने ‘न्यू नार्मल’ कहा है। भारत की भू-राजनीतिक चुनौतियों और नई परिस्थितियों में संतुलन स्थापित करने वाली इस नीति के केंद्र में पाकिस्तान है। जब देश वैश्विक मंच पर अपने हितों की रक्षा, सुरक्षा सुनिश्चित करने और अंतरराष्ट्रीय संबंधों को संतुलित रखने का प्रयास करते हैं, तो इसके पीछे एक ठोस रणनीति काम करती है। भारत की सुरक्षा चिंताओं को देखते हुए पाकिस्तान के साथ ‘न्यू नार्मल’ या ‘नया सामान्य’ की रणनीति पर आगे बढ़ने का संकेत भारत की परंपरागत कूटनीति से अलग, बेहद यथार्थवादी है।
आंतरिक अशांति और राजनीतिक अस्थिरता से जूझते पाकिस्तान में सेना का सर्वसत्तावाद हावी रहा है
भारत-पाकिस्तान संबंधों का भविष्य अब जटिल और बहुआयामी चुनौतियों से भरा हुआ है। इसमें भू-राजनीतिक हित, आतंकवाद, कश्मीर और द्विराष्ट्रवाद शामिल है। भारतीय विदेश नीति के लिए सबसे विकट चुनौती पाकिस्तान के साथ उसके संबंधों की रही है। भारत में करोड़ों मुसलमानों का सामान्य जीवन पाकिस्तान की स्थापना को औचित्यहीन बनाता है। इन सबके बीच आंतरिक अशांति और राजनीतिक अस्थिरता से जूझते पाकिस्तान में सेना का सर्वसत्तावाद हावी रहा है।
बलूचिस्तान और अफगानिस्तान की सीमा पर स्थित खैबर पख्तूनवा में गहरी अशांति से पाकिस्तानी सेना बेहाल है और उसकी जन स्वीकार्यता को गहरा झटका लगा है। जनरल आसिम मुनीर ने 17 अप्रैल, 2025 को विदेश में रहने वाले पाकिस्तानियों के एक सम्मेलन में द्विराष्ट्रवाद सिद्धांत को पुन: उभारते हुए पाकिस्तान की स्थापना का वैचारिक आधार स्पष्ट किया और भारत को चुनौती दी थी। मुनीर की यह टिप्पणी पाकिस्तान की आंतरिक राजनीति और सैन्य प्रतिष्ठान को मजबूत और पाकिस्तान की अंदरूनी और बाहरी राजनीति में एक मजबूत इस्लामी पहचान स्थापित करने के प्रयास के रूप में देखी गई। पहलगाम में हुए आतंकी हमले में धर्म के आधार पर गोली मारने की घटना में यह स्पष्ट संदेश था की जनरल मुनीर, जिया उल-हक के नक्शेकदम पर चल कर भारत को खतरे में डालना चाहते हैं। भारत ने पहलगाम आतंकी हमले का जवाब देते हुए पाकिस्तान के कई आतंकी ठिकानों को निशाना बनाया।
भारत और पाकिस्तान सीमा पर अभी शांति है, लेकिन भारत, पाकिस्तान के साथ राजनयिक संबंध पूरी तरह खत्म करने की ओर बढ़ रहा है। दुश्मन देश से संबंधों की रणनीति संतुलन, सतर्कता और दूरदर्शिता की मांग करती है। न तो अत्यधिक नरमी सही है, न हर समय टकराव। सबसे अच्छी नीति वही है जो राष्ट्रहित को सर्वोपरि रखते हुए संवाद और प्रतिरोध, दोनों के लिए तैयार रहे। हालांकि भारत की संवाद की नीति को पाकिस्तान ने हमेशा कमजोरी ही समझा। जबकि भारत ने स्पष्ट कर दिया है कि जब तक पाकिस्तान आतंकवाद को समर्थन देना बंद नहीं करता, तब तक कोई सार्थक संवाद संभव नहीं है।
भारत की असल चुनौती पाकिस्तान में राजनीतिक सत्ता का कमजोर होना है। भारत में संविधान और लोकतांत्रिक संस्थाएं मजबूत हैं, जबकि पाकिस्तान में ऐसा बिल्कुल नहीं है। भारतीय सेना राजनीति में हस्तक्षेप नहीं करती और अपनी भूमिका सीमित रखती है, वहीं पाकिस्तान की सेना देश की राजनीति को नियंत्रित करती है। भारत और पाकिस्तान के बीच 1947 के विभाजन के बाद से संबंधों में तनाव बना रहा है।
पाकिस्तान ने कई बार प्रत्यक्ष और परोक्ष रूप से भारत की सुरक्षा, शांति और अखंडता को चुनौती दी है। ये चुनौतियां केवल सैन्य नहीं, बल्कि कई स्तरों पर हैं। पाकिस्तान की भूमि का उपयोग भारत-विरोधी आतंकी संगठनों को प्रश्रय के तौर पर किया जाता है। पाकिस्तान बार-बार संघर्ष विराम का उल्लंघन, आम नागरिकों और सैनिकों पर गोलीबारी तथा घुसपैठ की कोशिशें करता रहा है। वह हमेशा परमाणु हथियारों के इस्तेमाल की धमकी भी देता है।
अब जबकि प्रधानमंत्री ने नई रणनीति पर आगे बढ़ने के संकेत दिए हैं, तो भारत के संभावित कूटनीतिक और रणनीतिक कदम तथा उनके सामने आने वाली चुनौतियां एक दूसरे के सामने होंगी। लिहाजा, पाकिस्तान के साथ राजनीतिक और कूटनीतिक संबंध अब संकट में है। पाक में दूतावास और राजनयिक कार्यालय बंद किए जा सकते हैं। राजदूतों और कर्मचारियों की वापसी के साथ सरकारों के बीच कोई भी आधिकारिक बातचीत या संपर्क समाप्त हो सकते हैं। द्विपक्षीय वार्ताएं और संवाद स्थगित या रद्द हो सकते हैं। व्यापार, रक्षा, शिक्षा और विज्ञान जैसे सभी द्विपक्षीय समझौते स्थगित या निरस्त किए जा सकते हैं। वीजा सेवाएं और लोगों की आवाजाही पर भी रोक लग सकती है। इसमें अधिकांश कदम वर्तमान में प्रभाव में हैं।
पहलगाम आतंकी हमले के बाद भारत ने पाकिस्तान को कड़ा संदेश देते हुए राजनयिक संबंधों को खत्म करने की ओर कदम बढ़ाए, वहीं 1960 के सिंधु जल समझौते को तुरंत प्रभाव से निलंबित रखने का फैसला किया। भारत-पाक संघर्ष में चीन ने पाकिस्तान के पक्ष में खड़े रहने की बात कही थी और अब सिंधु जल समझौते पर उसका रुख देखना दिलचस्प होगा। इन नदियों का आरंभ चीन प्रशासित तिब्बत से होता है और यह स्थिति भारत के रणनीतिक कदमों को प्रभावित कर सकती है। भारत ने साफ कहा है कि भारत पाक के कब्जे वाले कश्मीर वापस लेने पर बात करेगा, वहीं चीन-पाकिस्तान आर्थिक गलियारा भारत की संप्रभुता को चुनौती देता है, क्योंकि यह पाक-अधिकृत कश्मीर से होकर गुजरता है।
चीन और पाकिस्तान दोनों से भारत का सीमा विवाद है और कई बार युद्ध भी हो चुके हैं। पाकिस्तान भारत से सीधे युद्ध में कई बार पराजित हो चुका है, इसलिए उसने चीन से कूटनीतिक, आर्थिक और सैन्य संबंध स्थापित करके भारत की चुनौतियां बढ़ाई हैं। पाकिस्तान चीनी माडल पर आधारित ऐसा देश बनने की ओर तेजी से अग्रसर है, जिसकी हर जरूरत चीन से पूरी होगी और देश पर उसी का पूरा नियंत्रण होगा। पाकिस्तान के स्कूलों में मंदारिन को अनिवार्य कर दिया गया है। बैंकों में युआन के लेन-देन को आसान बनाया जा रहा है। राष्ट्रीय राजमार्ग, मेट्रो और अन्य यातायात प्रबंधन की जिम्मेदारियां चीनी कंपनियां उठा रही हैं।
अरबों डालर दांव पर लगाने के बाद पाकिस्तान को सुरक्षित रखने की चीनी मजबूरियां हैं। चीन के साथ गठजोड़ कर पाकिस्तान भारत के सुरक्षा तंत्र को भविष्य में भी चुनौती दे सकता है। इसमें चीन के साझा हित हो सकते हैं। भारत की भू-राजनीतिक स्थिति उसे एशिया के केंद्र में एक रणनीतिक शक्ति बनाती है। उत्तर में हिमालय, दक्षिण में हिंद महासागर, पश्चिम में पाकिस्तान और अफगानिस्तान और पूर्व में चीन, बांग्लादेश तथा म्यांमा हैं। यह स्थिति भारत को अनेक अवसरों और चुनौतियों दोनों से जोड़ती है।
चीन-पाकिस्तान गठजोड़ को ध्यान में रखते हुए भारत को ऐसी कूटनीतिक और रणनीतिक नीतियां अपनानी होंगी जो राष्ट्रीय सुरक्षा के साथ अन्य हितों की पूर्ति भी कर सकें। ‘न्यू नार्मल’ भारत की आक्रामक कूटनीति और सैन्य रणनीति का प्रतिबिंब है। पाकिस्तान स्थित आतंकी ठिकानों को नष्ट करके भारत ने अपने मजबूत इरादों को दिखाया है, लेकिन दीर्घकालीन स्तर पर यह नीति तभी असर दिखा पाएगी, जब आतंकवाद पर काबू पाया जा सकेगा।
