पीएस वोहरा

India-China trade: वैश्विक व्यापार में भारत के लिए चीन चुनौती बना हुआ है। भारत का चीन के साथ व्यापारिक घाटा सौ बिलियन डालर से अधिक हो गया है। कारण है, भारत का लगातार बढ़ रहा आयात। पिछले वित्तीय वर्ष 2024-25 में कुल आयात 113.45 बिलियन डालर का था, जो 11 फीसद अधिक था। हर वर्ष हो रही इस बढ़ोतरी के कारण ही पिछले एक दशक से अधिक समय में भारत का आयात चीन से 150 फीसद से ज्यादा हो गया है। वर्ष 2012 में आयात का यह आंकड़ा 39.3 बिलियन डालर था। ऐसे में सवाल है कि क्या आयात बढ़ने का मुख्य कारण भारत की अर्थव्यवस्था के कद में हो रही बढ़ोतरी है? इस संबंध में आंकड़े ये बताते हैं कि भारत का कुल आयात पिछले एक दशक में मात्र 46 फीसद ही बढ़ा है, परंतु चीन के साथ आयात की मात्रा बहुत अधिक दर्ज हुई है। क्या चीन पर लगातार बढ़ रही निर्भरता अंतरराष्ट्रीय कूटनीति के हिसाब से भारत के लिए उचित है?

दूसरी ओर निर्यात की बात करें तो चीन के साथ भारतीय निर्यात जस का तस है। इसमें बढ़ोतरी नहीं हो रही है, बल्कि पिछले वित्तीय वर्ष 2024-25 में तो चीन को किए गए निर्यात में 15 फीसद की कमी दर्ज की गई, जो कि मात्र 16.66 बिलियन डालर था। इसी कारण चीन के साथ भारतीय व्यापारिक घाटा सौ बिलियन डालर से अधिक हो गया है।

घाटे के आंकड़े को बहुत अधिक तवज्जो देना जरूरी है

इस घाटे के आंकड़े को बहुत अधिक तवज्जो देना जरूरी है, क्योंकि एक तरफ यह भारत की चीन पर निर्भरता को दर्शाता है, तो दूसरा तरफ यह भी समझना होगा कि वर्तमान समय में भारत का रक्षा बजट करीब 78 बिलियन अमेरिकन डालर का है। यानी कि देश के कुल रक्षा बजट से अधिक का भुगतान तो भारत केवल चीन को आयात की एवज में कर रहा है। इस विषय पर भारत के नीति निर्धारकों को गंभीरता से विचार करना होगा।
चीन के साथ आयात में मुख्य तौर पर भारत की ओर से पूंजीगत वस्तुओं को प्राथमिकता दी जाती है।

इनका अधिकाधिक उपयोग निर्माण क्षेत्र, ऊर्जा क्षेत्र तथा परमाणु क्षेत्र में भारत के उद्योगों द्वारा किया जाता है। पिछले कई वर्षों में चीन से पूंजीगत वस्तुओं के आयात में प्रतिवर्ष चार फीसद की बढ़ोतरी देखने को मिल रही है। दूसरी तरफ ये आंकड़ा भी बहुत चौंकाने वाला है कि पिछले वित्तीय वर्ष में विभिन्न इलेक्ट्रानिक तथा इलेक्ट्रिकल्स उत्पादों के आयात में 37 फीसद की बढ़ोतरी हुई है और ये स्पष्ट करता है कि भारतीय बाजार में स्मार्टफोन की खपत के अंतर्गत चीन आयातित कच्चे माल व कल पुर्जों का ही योगदान है।

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यह तथ्य भी निश्चित रूप से भारत की ‘मेक इन इंडिया’, ‘डिजिटल इंडिया’ तथा ‘स्टार्टअप इंडिया’ जैसी पहलों के जरिए देश को मिलने वाली आत्मनिर्भरता में बहुत बड़ी रुकावट है। चीन से अन्य मुख्य आयात में भारी मशीनरी और रसायन शामिल हैं। इन सबके बीच यह सवाल भी उठता है कि क्या भारत का चीन से आयात दूसरे मुल्कों से तुलनात्मक रूप से सस्ता है?

अब यह बात पूर्णतया स्पष्ट है कि चीन पर भारत की निर्भरता बहुत अधिक है तथा यह लगातार बढ़ती जा रही है। दोनों अर्थव्यवस्थाओं के सापेक्ष आर्थिक प्रदर्शन इस बात को साबित करते हैं कि भारत की तुलना में श्रम के अंतरराष्ट्रीय विभाजन में चीन काफी बेहतर स्थिति में है। इसी कारण विनिर्माण क्षेत्र में चीन की स्थिति अच्छी बनी हुई है।

भारत के विनिर्माण क्षेत्र का अर्थव्यवस्था में अंशदान तकरीबन 15-16 फीसद से आगे नहीं बढ़ पा रहा है, जबकि वर्ष 2006 में राष्ट्रीय विनिर्माण प्रतिस्पर्धात्मक परिषद की स्थापना सरकार द्वारा मात्र इस उद्देश्य से की गई थी कि विनिर्माण क्षेत्र का अंशदान अर्थव्यवस्था में 25 फीसद के आसपास रहे। इसी तरह वर्ष 2014 में जब ‘मेक इन इंडिया’ की जोर-शोर से पहल की गई थी, तो भी उसका उद्देश्य विनिर्माण क्षेत्र के अंशदान को अर्थव्यवस्था में बढ़ाना ही था।

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इस संबंध में इसे निराशाजनक ही कहा जा सकता है कि आर्थिक नीतियों में भारत के विनिर्माण क्षेत्र को प्रोत्साहित करने के लिए जमीनी स्तर पर बहुत आमूलचूल परिवर्तन नहीं हुए। इसी का नतीजा है कि आज एक तरफ विनिर्माण क्षेत्र भारत में लगातार बढ़ रही बेरोजगारी की समस्या को दूर नहीं कर पा रहा है, तो वहीं देश में इस क्षेत्र से संबंधित मांग से जुड़ी वस्तुओं का आयात करना पड़ता है, क्योंकि घरेलू उत्पादन बहुत सीमित मात्रा में उपलब्ध है।

दूरसंचार और इलेक्ट्रानिक उपकरणों के क्षेत्र में तो एक आम भारतीय की भी यही अवधारणा है कि इन सब के उत्पादन में आज भी भारत पर्याप्त रूप से सक्षम नहीं है तथा इनका बहुतायत में आयात चीन से ही होता है। पिछले कई वर्षों से ये भी देखने को मिला है कि भारत ने अपने निर्यात क्षेत्र को तुलनात्मक रूप से दूसरे छोटे देशों के साथ बढ़ाने की कोशिश की है, ताकि एक वैश्विक साख को स्थापित किया जा सके। यह सोच अपना एक पक्ष जरूर रखती है, परंतु चीन के साथ भारत के बढ़ते जा रहे वैश्विक व्यापारिक घाटे की कमजोर परिस्थिति से बाहर निकलने में इससे मदद नहीं मिल पा रही है।

इस बीच, ये भी देखा गया है कि भारत को चीन अपनी तरफ आकर्षित करना चाहता है। कुछ समय पूर्व चीन के एक राजदूत ने कहा था कि उनका देश भारत की कुछ खास वस्तुओं को अपने घरेलू बाजार में स्वागत करेगा। ये भारत के निर्यात को बढ़ाने का एक प्रस्ताव है। वैसे इस कथन के कई पक्ष निकलकर सामने आते हैं, जिनमें अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप की ओर से हर दिन शुल्क को बढ़ाने के संबंध में दी जाने वाली धमकियों से वैश्विक स्तर पर व्यापारिक माहौल में परेशानी पैदा होने का पहलू भी विशेष तौर पर शामिल है।

हालांकि, चीन और अमेरिका के बीच शुल्क के संबंध में एक सुलह हो चुकी है, परंतु इन सब के बावजूद ट्रंप ने हाल में कहा था कि ब्रिक्स समूह के अंतर्गत आने वाले देशों द्वारा अगर अमेरिकी मुद्रा डालर के विरुद्ध कोई साझेदारी की जाती है तो उन पर भी दस फीसद से अधिक अतिरिक्त शुल्क लगाया जाएगा।

इसके अलावा, बीते दिनों डोनाल्ड ट्रंप ने भारत के रूस से कच्चा तेल खरीदने पर 500 फीसद तक शुल्क लगाने की बात कही है। हालांकि, राष्ट्रपति ट्रंप के लिए इस तरह की घोषणाओं को धरातल पर उतार पाना आसान नहीं है, क्योंकि इसके दूरगामी प्रभाव हो सकते हैं और यह अमेरिका के हितों को भी प्रभावित कर सकता है।

भारत को बिना किसी दबाव में आए अंतरराष्ट्रीय कूटनीति के तहत पूर्व की भांति रूस से कच्चे तेल की आवक को जारी रखना चाहिए, क्योंकि इससे घरेलू बाजार में महंगाई को काबू में रखने में मदद मिलेगी। वहीं, चीन के साथ व्यापारिक पहल करते हुए भारत को अपने निर्यात को बढ़ाने पर ध्यान केंद्रित करना चाहिए, ताकि लगातार बढ़ रहे व्यापारिक घाटे को कम करने में मदद मिल सके।