ब्रह्मदीप अलूने

बांग्लादेश अगले वर्ष चीन के साथ कूटनीतिक संबंधों की स्वर्ण जयंती मनाने जा रहा है। शेख हसीना सरकार ने इसकी आधिकारिक घोषणा कर दी है। यह भी दिलचस्प है कि 1971 में बांग्लादेश की एक स्वतंत्र देश के रूप में संयुक्त राष्ट्र की मान्यता को रोकने के लिए चीन ने सुरक्षा परिषद में वीटो का प्रयोग किया था। मगर बदलती वैश्विक स्थितियों को भांपते हुए बांग्लादेश चीन के साथ रणनीतिक साझेदारी को लगातार मजबूत कर रहा है। बांग्लादेश की प्रधानमंत्री शेख हसीना भारत से संबंधों को नियंत्रित करके चीन की ओर देख रही हैं, इसके पीछे उनका ‘विजन 2041’ है।
बांग्लादेश भारत की ‘एक्ट ईस्ट पालिसी’ का अभिन्न अंग और बड़ा व्यापारिक साझीदार है।

भारतीय प्रधानमंत्री और शेख हसीना ने 9 मार्च, 2021 को पूर्वोत्तर को बांग्लादेश से जोड़ने वाले मैत्री सेतु का उद्घाटन किया था। इस सेतु को उस सिलीगुड़ी गलियारे का विकल्प माना गया, जो भारत की अखंडता की रक्षा के लिए बेहद खास माना जाता है। चीन और बांग्लादेश के बीच ऐसे कई मैत्री सेतु पहले से प्रभाव में हैं। चीन ने बांग्लादेश में एक मैत्री पुल का इस प्रकार निर्माण किया है, जिसमें स्थानीय संस्कृति को ध्यान में रखते हुए इस्लामी और चीनी विशेषताओं से सुसज्जित किया है। बांग्लादेश में चीन का निवेश बढ़कर लगभग डेढ़ अरब अमेरिकी डालर हो गया है। लगभग सात सौ चीनी कंपनियां बांग्लादेश में काम कर रही हैं। इससे स्थानीय स्तर पर लाखों लोगों को रोजगार मिला है। बांग्लादेश चीन की ‘वन बेल्ट वन परियोजना’ का प्रमुख साझीदार बन गया है और इसे ‘विजन 2041’ और ‘स्मार्ट बांग्लादेश’ के सपने के साकार होने का बड़ा कारण बताया जा रहा है।

बांग्लादेश से व्यापारिक संबंध मजबूत बनाने के लिए चीन ने वहां के बुनियादी ढांचे में बड़े निवेश के साथ उर्जा संसाधनों की आपूर्ति में मदद का प्रस्ताव दिया है। इसके साथ ही वह दोनों देशों की मुद्राओं के आसान आदान-प्रदान के लिए भी पहल कर रहा है। यह उसकी युआन कूटनीति का परिचायक है। शेख हसीना के ‘विजन 2041’ की शुरुआत करीब डेढ़ दशक पहले हुई, चीन इसमें प्रमुख भागीदार बनाया गया और इसके विभिन्न चरण निर्धारित किए गए। 2009 में, प्रधानमंत्री शेख हसीना ने डिजिटल बांग्लादेश की अवधारणा पेश की, जिसका उद्देश्य आर्थिक विकास को बढ़ावा देना और शासन में सुधार के लिए सूचना और संचार प्रौद्योगिकियों का लाभ उठाना था। यह विजन 2041 तक बांग्लादेश को ज्ञान आधारित अर्थव्यवस्था में बदलने और अग्रणी बनने के क्षमता निर्माण पर आधारित है।

इस विजन का मकसद आर्थिक विकास को गति देने और जीवन की गुणवत्ता में सुधार करने में नवाचार, उद्यमशीलता और डिजिटलीकरण पर जोर देना है। बांग्लादेश को डिजिटिल बनाने की दिशा में चीनी फोन निर्माता कंपनी ख्वावे लगातार काम कर रही है। अमेरिका ने कहा है कि 5जी उपकरणों के जरिए चीन ख्वावे का इस्तेमाल जासूसी के लिए कर सकता है। इसमें कंपनी के मालिक रेन के संबंध पीपुल्स लिबरेशन आर्मी से रहे हैं। वे चीन की कम्युनिस्ट पार्टी के सदस्य भी हैं। बांग्लादेश भारत के साथ लगभग 4100 किलोमीटर भूमि सीमा साझा करता है। इसकी सीमा भारतीय राज्यों- पश्चिम बंगाल, असम, मेघालय और त्रिपुरा के साथ लगी है।

भारत का पूर्वोत्तर क्षेत्र सिलीगुड़ी गलियारे के माध्यम से शेष भारत से जुड़ा हुआ है, सिक्किम और भूटान के रास्ते चीन से निकटता के कारण यह गलियारा भारत के लिए रणनीतिक रूप से अतिसंवेदनशील है। इस संकीर्ण रास्ते से नेपाल, बांग्लादेश और भूटान भी जुड़े हुए हैं। सिलीगुड़ी के जरिए पूर्वोत्तर के जुड़ाव की वजह से हमारी बांग्लादेश पर रणनीतिक निर्भरता काफी बढ़ गई है। डोकलाम में चीनी सक्रियता की वजह से भी बांग्लादेश पर हमारी निर्भरता काफी बढ़ जाती है। यह इलाका भूटान के नजदीक है। इससे हमारे लिए बांग्लादेश की भूमिका और बढ़ जाती है।
भारत की सामरिक सुरक्षा के लिए ख्वावे का सीमाई इलाकों में प्रभावशील रहना चिंताजनक है।

अमेरिका अपने यहां ख्वावे के साथ व्यापार करने पर प्रतिबंध लगा चुका है और चाहता है कि उससे जुड़ी सहयोगी कंपनियों को भी 5जी नेटवर्क से हटाया जाए। आस्ट्रेलिया और न्यूजीलैंड ने भी ऐसे ही कदम उठाए हैं। चीन के 2017 के ‘राष्ट्रीय जासूसी कानून’ के अनुसार किसी भी संगठन को राष्ट्र के खुफिया काम में समर्थन और सहयोग देना आवश्यक है। इसका मतलब है कि चीन ख्वावे को किसी काम के लिए आदेश दे सकता है। इसलिए इसे लेकर अमेरिका और भारत की आशंका निर्मूल नहीं है।

चीन रक्षा क्षेत्र में बांग्लादेश का सबसे बड़ा आपूर्तिकर्ता है। दोनों देशों के बीच सहयोग सैन्य हार्डवेयर, समुद्री गश्ती जहाज, कोरवेट, टैंक, लड़ाकू जेट के साथ ही सतह से हवा में मार करने वाली और जहाज रोधी मिसाइलों तक बढ़ गया है। भारत की हिंद प्रशांत रणनीति की दृष्टि से बांग्लादेश बेहद महत्त्वपूर्ण है। वहीं पूर्वोत्तर में अलगाववादी विद्रोहियों पर दबाव बनाए रखने के लिए बांग्लादेश के सहयोग की भारत को सदा जरूरत होगी। बांग्लादेश के नौसैनिक मामलों में चीन की भागीदारी बढ़ रही है। इस तरह हिंद प्रशांत क्षेत्र में उसने अपनी स्थिति बेहद मजबूत कर ली है।

हाल ही में शेख हसीना की भारत यात्रा के दौरान दोनों देशों के बीच हरित साझेदारी, डिजिटल भागीदारी, समुद्री अर्थव्यवस्था और अंतरिक्ष जैसे क्षेत्रों में सहयोग पर सहमति तो बनी है, लेकिन बांग्लादेश के चीन के साथ भी ऐसे ही समझौते भारत को आशंकित करते हैं। आर्थिक और बैंकिंग क्षेत्र में सहयोग, व्यापार और निवेश, डिजिटल अर्थव्यवस्था, बुनियादी ढांचे के विकास, आपदा प्रबंधन से जुड़ी योजनाओं में चीनी कंपनियों की भूमिका लगातार बढ़ रही है। चिटगांव क्षेत्र में एक स्मार्ट सिटी बनाने की योजना समेत ऊर्जा आपूर्ति और नदी परियोजनाओं में चीन की दिलचस्पी से साफ है कि चीन बांग्लादेश के विकसित राष्ट्र बनने के सपने का प्रमुख भागीदार बन गया है। भारत और बांग्लादेश के बीच तीस्ता जल बंटवारे को लेकर चले आ रहे विवाद का समाधान नहीं हुआ है, अब चीन ने तीस्ता परियोजना को पूरा करने की इच्छा जताई है। तीस्ता परियोजना में चीन की भूमिका उसे भारतीय सीमा के बहुत करीब ले आएगी और उसका दायरा सिलीगुड़ी गलियारे के करीब तक होगा।

प्रधानमंत्री शेख हसीना बांग्लादेश को विकसित राष्ट्र बनाने के लिए जिस ‘विजन 2041’ पर काम कर रही हैं, उसमें उनकी कूटनीति चीन की तरफ झुकी नजर आती है। इस योजना के चार मुख्य आधार तय किए गए हैं- सुशासन, लोकतंत्रीकरण, विकेंद्रीकरण और क्षमता निर्माण। चीन की कर्ज नीति के चलते दुनिया के कई देशों में सुशासन और लोकतांत्रिक सरकारों को गहरी चोट पहुंची है। बेहद गरीबी से उबार कर शेख हसीना का अपने देश को विकसित देश बनाने का सपना तो अच्छा है, लेकिन उसमें चीन की व्यापक भागीदारी बांग्लादेश के भविष्य के लिए दुविधापूर्ण है ही, भारत की एकता और अखंडता के लिए भी समस्या बढ़ सकती है।