बढ़ता जल संकट न केवल पर्यावरण की दृष्टि से चिंता का विषय है, बल्कि यह देश के आर्थिक विकास में भी बाधक है। घटते जल स्रोत और पानी की बढ़ती मांग से मानव जीवन तथा आर्थिक विकास में अस्थिरता बढ़ रही है। इससे इंसानी जीवन और पशु पक्षियों का अस्तित्व भी संकट में आ गया है। बढ़ते जल संकट से अर्थव्यवस्था की रीढ़ कहे जाने वाले क्षेत्रों पर विशेष प्रभाव पड़ रहा है। इसका सामना सबसे ज्यादा कृषि उत्पादन, पर्यटन, पशुपालन, उद्योग, बागवानी, मत्स्य उद्योग, डेयरी उद्योग समेत अन्य क्षेत्रों पर पड़ रहा है।

पानी की गंभीर समस्या से जूझ रहा है हर दूसरा व्यक्ति

आज दुनिया की एक तिहाई आबादी के पास पीने के लिए स्वच्छ जल उपलब्ध नहीं है। संयुक्त राष्ट्र की ताजा रपट से पता चला है कि इस समय हर दूसरा व्यक्ति पानी की गंभीर समस्या से जूझ रहा है। दुनिया में लगभग 73.3 करोड़ लोग ऐसे क्षेत्रों में निवास करते हैं, जहां जल की समस्या बेहद गंभीर है। वैश्विक स्तर पर 2050 तक स्वच्छ जल की कुल मांग में 30 फीसद की बढ़ोतरी का अनुमान है।

स्वच्छ जल की कमी से हर वर्ष 260 अरब डालर का होता है नुकसान

विश्व बैंक ने अपनी एक रपट में बताया है कि स्वच्छ जल की कमी से हर वर्ष 260 अरब डालर का नुकसान होता है। विश्व की सबसे तेजी से बढ़ती भारतीय अर्थव्यवस्था में भी जल संकट अवरोधक है। यह नागरिकों के पेयजल के नैसर्गिक अधिकार को जोखिम में डाल रहा है, साथ ही देश के लाखों लोगों की जीविका का जोखिम पैदा कर रहा है। विभिन्न क्षेत्रों में नौकरियों को सीमित कर रहा है। वैश्विक स्तर पर कुल सृजित नौकरियों में चार में से तीन का आधार जल है। ऐसे में, बढ़ते जल संकट से नौकरियों पर बुरा प्रभाव पड़ेगा। देश में पहले से बेरोजगारी दर उच्च स्तर पर है, ऐसे में जल संकट से बेरोजगारी दर में बेतहाशा वृद्धि होगी।

उद्योगीकरण की ओर तेजी से बढ़ती भारतीय अर्थव्यवस्था और शहरीकरण की बढ़ती प्रवृत्ति से जल की मांग में तेजी से इजाफा हो रहा है। दूसरी ओर, जल की आपूर्ति बढ़ा पाने की संभावना बहुत सीमित है। भूजल स्तर लागतार घट रहा है। शहरों में जल संकट बढ़ने से वहां का आर्थिक विकास भी बाधित होता है। जल आधारित खाद्य पदार्थों के मूल्यों में वृद्धि होती है, जिससे महंगाई बढ़ती है। महंगाई बढ़ने से लोगों पर आर्थिक दबाव बढ़ता है, जिससे गरीबी, भुखमरी जैसी समस्याएं जन्म लेती हैं। शहरों और ग्रामीण क्षेत्रों में जल संकट के कारण स्वच्छ जल की उपलब्धता प्रभावित होती है और जलजनित बीमारियां तेजी से फैलती हैं। स्वच्छ जल की कमी से श्रमशक्ति की उत्पादकता पर प्रभाव पड़ता और स्वास्थ्य सेवाओं पर आर्थिक बोझ बढ़ता है। ‘वर्ल्ड रिसोर्स इंस्टीट्यूट’ की एक रपट ने दुनिया के गंभीर जल संकट का सामना करने वाले सत्रह देशों की सूची में भारत का भी जिक्र किया है।

कई बड़े शहरों में जल संकट एक गंभीर चुनौती है। भारत का तीसरा सबसे ज्यादा जनसंख्या वाला शहर बंगलुरु इन दिनों गंभीर जल संकट का सामना कर रहा है। वहां ‘डे जीरो’ जैसे हालात देखने को मिल सकते हैं। इसका स्कूल-कालेजों, रेस्तरां और होटलों के व्यवसाय पर बुरा असर पड़ रहा है। यह स्थिति केवल बंगलुरु की नहीं, बल्कि भारत के कई बड़े शहरों की है। यूनेस्को की एक रपट में कहा गया है कि 2025 तक उत्तर प्रदेश, मध्यप्रदेश, राजस्थान, बिहार, महाराष्ट्र जैसे कई और बड़े शहरों में जल संकट बढ़ेगा, कई शहर ‘ड्राई जोन’ में शामिल हो जाएंगे। ‘सेंटर फार साइंस एंड एनवायरमेंट’ की रपट ने भी भारत के तेरह राज्यों में ‘डे-जीरो’ की आशंका जताई है।

‘डे-जीरो’ शहरों में जल आपूर्ति की निर्भरता अन्य साधनों पर हो जाती है। भारत में शुद्ध पेयजल की पर्याप्त आपूर्ति न होने से काफी संख्या में लोगों की मृत्यु हो जाती है। नीति आयोग की रपट से जाहिर होता है कि भारत में हर वर्ष लगभग दो लाख लोगों की पर्याप्त जल की आपूर्ति न होने से मृत्यु हो जाती है। विश्व की कुल जनसंख्या का 18 फीसद भारत में निवास करती है, जबकि भारत के पास चार फीसद जनसंख्या के लिए जल की उपलब्धता है। विश्व बैंक की रपट से पता चलता है कि पिछले वर्ष भारत में करीब 9.1 करोड़ लोग स्वच्छ जल तक पहुंच से वंचित रहे। विश्व बैंक ने अपने 2016 की ‘क्लाइमेट चेंज: वाटर ऐंड इकोनामी’ नामक रपट में दुनिया को आगाह किया था कि जल संकट से जूझ रहे देशों को 2050 तक आर्थिक विकास में संकट का सामना करना पड़ सकता है।

जल संकट के पीछे कई कारण हैं। जलवायु परिवर्तन से वर्षा चक्र में हुए बदलाव, अनियोजित शहरीकरण में तीव्र वृद्धि, बढ़ती जनसंख्या, शीतल पेय पदार्थों की निर्माता कंपनियों द्वारा अत्यधिक भूजल का दोहन, जलविद्युत परियोजनाओं की बढ़ती संख्या, नदियों पर बांधों का निर्माण, जल सिंचित कृषि में समुचित प्रबंधन का न होना, पेड़ों की अत्यधिक कटाई, इसके अलावा अन्य कारण भी हैं, जो जल संकट को बढ़ावा दे रहे हैं। जल के बिना मानव का विस्तार और आर्थिक विकास संभव नहीं है। जल से उत्पन्न समस्या सबसे ज्यादा कृषि को प्रभावित करती हैं, खाद्य उत्पादकता घटती है, किसानों की आय में गिरावट आती है, खाद्य सुरक्षा पर संकट बढ़ जाता है।

इससे देश में गरीबी, असमानता और सामाजिक अस्थिरता बढ़ती है, देश में राजनीतिक अस्थिरता की आशंकाएं बढ़ती हैं। साथ ही, ग्रामीण और शहरी अर्थव्यवस्था बुरी तरह प्रभावित होती है। जल संकट पर्यटन स्थलों को प्रभावित करते हैं, जिससे स्थानीय लोगों के रोजगार और क्षेत्रीय अर्थव्यवस्था को नुकसान होता है। देश के औद्योगिक विकास और उत्पादन में गिरावट तथा इस क्षेत्र से जुड़े रोजगार घटते हैं। बाह्य और आंतरिक व्यापार के साथ कई सामाजिक कल्याण से जुड़ी नीतियां और योजनाओं में बाधा आती है।

जल आर्थिक विकास के लिए मौलिक स्रोत उपलब्ध कराता है, यह मानव और देश की अर्थव्यवस्था की जीवनधारा है। जल संकट और घटते जल स्रोत दुनिया भर के सभी समुदायों के अस्तित्व को संकट में डाल रहे हैं। आवश्यकता इस बात की है कि जितना जल्दी हो सके जल के अतार्किक दोहन को रोका जाए। नए कानून बना कर जल के दोहन को सीमित करना होगा। जल संसाधनों को बढ़ाने के लिए केंद्र और राज्य सरकारों को आजादी के समय से वर्तमान तक के सभी तालाबों, कुओं और छोटी नदियों को शहरों और ग्रामीण क्षेत्रों में चिह्नित करते हुए उनका जीर्णोद्धार करने की योजना बनानी चाहिए।

जल आधारित उद्योग, कारखानों, शहरी क्षेत्रों में कृषि और बागवानी हेतु अवशिष्ट जल के पुनर्चक्रण को बढ़ावा देना चाहिए। सांसदों, विधायकों को अपने-अपने क्षेत्र में कुओं, तालाबों, छोटी नदियों को गोद लेने की पहल करनी चाहिए, जल संरक्षण प्रहरी नियुक्त करके लोगों में जल संरक्षण के प्रति जागरूकता पैदा करनी होगा। समुचित जल प्रबंधन के लिए बजटीय प्रावधान करना चाहिए। अगर जल संकट को समय पर रोका नहीं गया तो आर्थिक विकास बाधित हो जाएगा।