साइबर ठगों ने लोगों को अपने चंगुल में फंसाने के लिए इन दिनों एक और नया तरीका अपनाया है, जिसका नाम है ‘डिजिटल अरेस्ट’। इसमें ठगी करने वाले लोगों को फंसाने के लिए ‘ब्लैकमेलिंग’ या भयादोहन का खेल खेलते हैं और लोग उनके जाल में फंस जाते हैं। इसमें ठग पुलिस, सीबीआइ या आबकारी अधिकारी बनकर लोगों को फोन करते और डराकर उन्हें घर पर ही बंधक बना लेते हैं। सबसे पहले, ठग फोन करके बताते हैं कि आपका आधार कार्ड, सिम कार्ड, बैंक खाता आदि का उपयोग किसी गैरकानूनी काम के लिए हुआ है। यहां से लोगों को डराने-धमकाने का खेल शुरू होता और फिर ठगी का लक्ष्य पूरा किया जाता है।
ठग ‘वीडियो काल’ में अपनी तस्वीर के पीछे के दृश्य को किसी पुलिस स्टेशन की तरह बना लेते हैं, जिसे देखकर पीड़ित डर कर उनकी बातों में आ जाता है। ठग जमानत की बात कहकर लोगों से ठगी शुरू करते हैं। वे व्यक्ति को ‘वीडियो काल’ से न तो हटने देते हैं और न ही किसी को फोन करने देते हैं।
नोएडा की एक महिला से ठगों ने 5.20 लाख रुपए ऐंठ लिए थे
एक घटना की पीड़ित नोएडा में रहने वाली एक महिला का कहना था कि एक अंतरराष्ट्रीय कूरियर कंपनी के कर्मचारी ने उन्हें फोन करके बताया कि उनके नाम से भेजे गए पार्सल में नशीला पदार्थ मिला है। महिला ने जब इस तरह के किसी भी पार्सल की जानकारी न होने की बात कही, तो फोन करने वाले ने बताया कि वह इसकी शिकायत मुंबई साइबर अपराध शाखा में दर्ज करवा रहा है। उसके बाद महिला के पास एक ‘वीडियो काल’ आया, जिसमें फोन करने वाले व्यक्ति के पीछे का दृश्य किसी पुलिस स्टेशन का था। पुलिस अफसर बनकर बात कर रहे व्यक्ति ने वीडियो काल पर महिला को रात भर सोने नहीं दिया और उसे डरा-धमका कर करीब 5.20 लाख रुपए अलग-अलग खातों में जमा करवा लिए। महिला को चौबीस घंटे से अधिक समय तक ‘डिजिटल अरेस्ट’ रखा गया।
बंगलुरु की एक महिला वकील भी हो चुकी है ठगों की शिकार
इसी तरह का एक और मामला बंगलुरु की एक उनतीस वर्षीय महिला वकील द्वारा हाल ही में पुलिस में शिकायत दर्ज कराने के बाद सामने आया, जिसमें कहा गया कि एक व्यक्ति ने फोन करके उसे दो दिनों तक डिजिटल रूप से ‘गिरफ्तार’ कर रखा था। उसने खुद को एक अंतरराष्ट्रीय कूरियर कंपनी का कार्यकारी अधिकारी बताया था। आनलाइन जालसाजों ने न केवल उससे 14.57 लाख रुपए ठग लिए, बल्कि मादक पदार्थ परीक्षण करने के बहाने उसे कैमरे के सामने नग्न होकर खड़े होने को भी कहा। बाद में उन्होंने धमकी दी कि अगर उसने उन्हें दस लाख रुपए नहीं दिए तो वे उसके वीडियो सार्वजनिक कर देंगे। वहीं, फरीदाबाद की तेईस वर्षीय महिला से साइबर ठगों ने फर्जी सीमा शुल्क अधिकारी बनकर ग्यारह लाख रुपए की ठगी कर ली। ठगों ने घटना के समय महिला को गिरफ्तारी का डर दिखाकर डराया और उसे लगभग आठ घंटे तक ‘डिजिटल अरेस्ट’ करके रखा।
इसी तरह जयपुर में रहने वाली एक महिला बैंक मैनेजर के पास साइबर ठग का फोन आया। उउने खुद को दूरसंचार विनियामक प्राधिकरण का अधिकारी बताते हुए कहा कि आपके आधार कार्ड पर ली गई एक सिम का उपयोग अवैध कार्यों के लिए किया जा रहा है। मैनेजर यह सुनकर हैरान रह गई। इसी दौरान एक दूसरे व्यक्ति का फोन आया, जिसने खुद को मुंबई पुलिस का अधिकारी बताया। गिरफ्तारी से बचने के लिए उसने महिला को वीडियो काल पर आने को कहा। इस तरह करीब पांच घंटे तक उसे ‘डिजिटल अरेस्ट’ करके रखा गया। इस दौरान उसे गिरफ्तारी से बचने के लिए रुपए भेजने का कहा। डर के मारे मैनेजर ने अपनी एफडी तोड़कर 17 लाख रुपए ठग द्वारा बताए खाते में डाल दिए।
ऐसी अनेक घटनाएं देश के अलग-अलग शहरों में घटित हो चुकी हैं। आए दिन ऐसी खबरें अखबारों में छपती और सोशल मीडिया से लेकर टीवी चैनलों पर प्रसारित होती रहती हैं। इसके बावजूद लोग साइबर ठगों के जाल में फंस जा रहे हैं। ये ठग इतने शातिर होते हैं कि लोगों पर मनोवैज्ञानिक प्रभाव डाल कर जैसा चाहते हैं, वैसा उनसे कराने में कामयाब हो जाते हैं। हालांकि, इस तरह के अपराधों पर रोक लगाने के लिए सरकार भी कार्रवाई कर रही है। हाल ही में सरकार ने तेजी से बढ़ रही ‘डिजिटल अरेस्ट’ और भयादोहन की घटनाओं के खिलाफ बड़ी कार्रवाई करते हुए एक हजार ‘स्काइप’ खातों को प्रतिबंधित किया है। बावजूद इसके, इस तरह की घटनाएं कम नहीं हो रही हैं।
भारतीय रिजर्व बैंक की एक रपट के मुताबिक वित्तवर्ष 2022-2023 में तीस हजार करोड़ रुपए से ज्यादा की बैंक धोखाधड़ी की शिकायतें देश में दर्ज की गई हैं। पिछले एक दशक में एक जून, 2014 से लेकर 31 मार्च, 2023 तक भारतीय बैंकों में 65,017 ठगी के मामले सामने आए हैं, जिनमें 4.69 लाख करोड़ रुपए की ठगी की जा चुकी है। अभी तक साइबर अपराधी यूपीआई धोखाधड़ी, क्रेडिट कार्ड धोखाधड़ी, ओटीपी धोखाधड़ी, नौकरी के नाम पर ठगी, सामान आपूर्ति ठगी आदि के जरिए लोगों को चूना लगाते आ रहे हैं। अब ‘डिजिटल हाउस अरेस्ट’ भी साइबर अपराधियों का हथियार बन रहा है।
दरअसल, ये सब साइबर ठगों के लोगों को डराने-धमकाने के फर्जी तरीके हैं। कोई भी जांच एजंसी या पुलिस किसी को फोन करके धमकी नहीं देती है। हर जांच एजंसी के अधिकारी और पुलिसकर्मी कानूनी प्रक्रिया के तहत ही कार्रवाई करते हैं। इसलिए अगर किसी व्यक्ति के पास डराने-धमकाने के लिए इस तरह के फोन आते हैं, तो तुरंत इसकी सूचना स्थानीय पुलिस को देनी चाहिए या फिर ‘राष्ट्रीय साइबर अपराध सहायता सेवा’ (1930) पर फोन करके शिकायत दर्ज करानी चाहिए। साथ ही सोशल मीडिया साइट ‘एक्स’ पर ‘साइबर पोस्ट’ के माध्यम से भी शिकायत दर्ज कराई जा सकती है। अगर कोई संदेश या ई-मेल आता है तो उसे सबूत के तौर पर पुलिस को देना चाहिए। अगर किसी कारण फोन उठा लिया गया और वीडियो काल पर कोई धमकी देने लगा, तो ‘स्क्रीन रिकार्डिंग’ के जरिए वीडियो काल को रिकार्ड करके शिकायत करानी चाहिए। किसी भी तरह डरना और पैसे नहीं भेजना चाहिए।
अगर कोई झांसे में लेने का प्रयास करे तो उसके नंबर को तत्काल ‘ब्लाक’ कर देना चाहिए। अगर कोई संशय हो तो पुलिस विभाग की वेबसाइट पर तमाम जानकारियां और उसके अफसरों के नंबर रहते हैं, उनसे भी जानकारी ली जा सकती है। प्राथमिकी की धमकी देने वाले को नजरअंदाज करना चाहिए। इसके अलावा, किसी के साथ अपनी निजी जानकारियां जैसे कि आधार कार्ड, पैन कार्ड या फिर अन्य बैंकिंग ब्योरे साझा न करनी चाहिए। कोई भी बैंक या सरकारी-गैर सरकारी संस्थान पिन, ओटीपी आदि की जानकारी नहीं पूछता है। ऐसे में, किसी से अपनी निजी जानकारियां गलती से भी साझा नहीं करनी चाहिए। साथ ही अपने सोशल मीडिया और बैंक अकाउंट आदि के पासवर्ड समय-समय पर बदलते रहना चाहिए, ताकि साइबर ठगी से बचा जा सके।