अठारह वर्ष से कम आयु के बच्चों का असामाजिक व्यवहार बाल या किशोर अपराध कहा जाता है। यह उम्र का एक ऐसा पड़ाव होता है, जिसमें कुछ बच्चे अपने जीवन और व्यवहार में संतुलन बिठा पाने में विफल हो जाते हैं। उन बच्चों के असामाजिक गतिविधियों में शामिल होने की संभावना बढ़ जाती है। यह एक बड़ी बहस और चर्चा का विषय है कि क्या परिवार अपने बच्चों का उचित समाजीकरण कर पाने में असमर्थ हो गए हैं। क्या हमारे शैक्षणिक संस्थान किशोरों को उचित शिक्षा और स्वस्थ परिवेश प्रदान करने में असमर्थ होते जा रहे हैं। अधिकांश मामलों में देखा गया है कि किशोर अपराधी शिक्षित होते हैं और अपने परिवार के साथ रह रहे होते हैं। समाज मनोवैज्ञानिक मानते हैं कि विखंडित परिवार, दूषित सामाजिक वातावरण, स्कूल और पड़ोस का अनुचित परिवेश, मित्रों का समूह और बचपन में यौन शोषण जैसे अपराध की त्रासदी आदि कारण बच्चों को अपराध की ओर धकेलते हैं। बचपन की अनेक नकारात्मक स्थितियां बच्चों में आत्मसम्मान का स्तर गिरा देती हैं और वे असामाजिक गतिविधियों में संलग्न हो जाते हैं।

परंपरागत समाजों में परिवार की भूमिका भी अब बदल चुकी है

बदलते परिदृश्य में वैश्वीकरण, औद्योगीकरण, शहरीकरण, आधुनिकीकरण के कारण परिवार प्रणाली में अनेक बड़े बदलाव देखे जा सकते हैं, जिससे आर्थिक संरचना और परिवार के सदस्यों की भूमिका में भी बदलाव आए हैं। इस बदलते आर्थिक और सामाजिक परिवेश में युवा पीढ़ी परिवार के भीतर और बाहर नई पहचान और आर्थिक स्वतंत्रता की तलाश कर रही है। परिवार प्रणाली में हो रहे इन परिवर्तनों ने बच्चों के व्यक्तित्व और नजरिए को बहुत प्रभावित किया है। परंपरागत समाजों में परिवार की भूमिका भी अब बदल चुकी है। अधिकांश परिवारों में माता-पिता दोनों के कामकाजी होने या परिवार की जिम्मेदारियों में व्यस्त रहने के कारण परिवार में अनेक तरह की समस्याएं उत्पन्न होने लगी हैं, जैसे माता-पिता की देखरेख का अभाव, माता-पिता के झगड़े, परिवार में उपेक्षित अनुभव करना, हिंसा या दुर्व्यवहार का सामना करना। स्वाभाविक है कि ऐसे बच्चे अपने माता-पिता और परिवारों से अधिक लगाव नहीं रखते और वे अनुचित गतिविधियों में संलग्न होने लगते हैं।

इसके आलावा भी ऐसे कई कारक हैं, जो किशोर अपराध को बढ़ावा देते हैं। मसलन, परिवार की निम्न सामाजिक-आर्थिक स्थिति, अशिक्षा, पारिवारिक संघर्ष, सहकर्मी समूह, मीडिया, शैक्षणिक विफलता, नशीली दवाओं की लत, बेरोजगारी, क्रोध आदि। ये सभी कारक किशोर के असामाजिक व्यवहार के लिए जिम्मेदार हैं। अनेक समाजशास्त्रीय अध्ययनों में पाया गया है कि ऐसे नाबालिग, जिन्हें बचपन में उचित प्यार, देखभाल और संस्कार नहीं मिलते उनके अपराधी बनने की संभावना अधिक होती है।

अब वैश्वीकरण और सूचना प्रौद्योगिकी के दौर में तो बच्चों का उचित समाजीकरण करना या उन्हें भटकाव के मार्ग पर जाने से रोक पाना और भी चुनौतीपूर्ण हो गया है। क्योंकि सभी के हाथ में कम उम्र में ही डिजिटल उपकरण आ जाते हैं, जिनसे वे हर तरह की जानकारी सरलता से ले लेते हैं। चाहे-अनचाहे सोशल मीडिया उनके सामने वह सब परोस रहा है, जिसको जानने या समझने की अभी उनकी उम्र नहीं है। उसी का दुष्प्रभाव है कि बच्चे और किशोर समय से पहले ही परिपक्व और ऐसे काम करने को प्रवृत्त होते हैं जिन्हें अपराध की श्रेणी में रखा जाता है।

राष्ट्रीय अपराध रेकार्ड ब्यूरो यानी एनसीआरबी की रपट के अनुसार वर्ष 2022 में महिलाओं के खिलाफ अपराध के कुल 4,45,256 मामले दर्ज किए गए, जो वर्ष 2021 की तुलना में चार फीसद अधिक हैं। बच्चों के विरुद्ध अपराध के मामलों में वर्ष 2021 की तुलना में सात फीसद की वृद्धि देखी गई। कुछ अध्ययन यह भी बताते हैं कि यौन हिंसा इन किशोर अपराधियों के व्यवहार को कहीं ज्यादा निर्देशित करती है, क्योंकि इनमें से कई किशोरों ने अपने बचपन में यौन हिंसा या दुर्व्यवहार झेला होता है। ऐसे बच्चों में भय, अविश्वास और असुरक्षा की भावनाएं उत्पन्न हो जाती हैं, उनका सामाजिक संबंधों पर से विश्वास समाप्त हो जाता है, उनमें एकाकीपन की भावना बढ़ जाती और सामुदायिक सहभागिता में कमी आती है। एनसीआरबी की नवीनतम रपट के अनुसार राष्ट्रीय राजधानी में बच्चों द्वारा किए गए अपराधों की दर सबसे अधिक दर्ज की गई। किशोरों द्वारा किए गए अपराधों की सबसे अधिक संख्या महाराष्ट्र (4,406) में दर्ज की गई, उसके बाद मध्य प्रदेश (3,795) और राजस्थान (3,063) का स्थान है।

शिक्षा के नाम पर प्रतिवर्ष बजट में नए विद्यालय और विश्वविद्यालय खोलना पर शिक्षकों, आधारभूत सुविधाओं के अभाव में उनका समुचित संचालन न हो पाना, स्वास्थ्य के क्षेत्र में अनेक नई निशुल्क स्वास्थ्य योजनाओं को शुरू करना, पर चिकित्सकों और सुविधायुक्त अस्पताल के अभाव में उन योजनाओं का दम तोड़ देना। विभिन्न सरकारी या गैर-सरकारी संस्थानों में भ्रष्टाचार का विस्तार होना, प्रतियोगी परीक्षाओं में पर्चाफोड़ होना, विकसित तकनीक के विस्तार के कारण नौकरी से हाथ धो बैठना और बेरोजगारी के दलदल में गिर जाना, बढ़ती महंगाई के कारण परिवार की जरूरतों और इच्छाओं को पूरा न कर पाना, परिवार और समाज में अनेक प्रकार की विघटनमूलक स्थितियों को जन्म देते हैं। ऐसे में कुछ ऐसे किशोर और युवा अपराध की राह पर चल निकलते हैं, क्योंकि उन्हें सफलता का छोटा रास्ता दिखाई देता है। आज अधिकांश युवा और किशोर आसान रास्ते से ही सफलता पाना चाहते हैं, बिना यह सोचे कि जिंदगी कोई डिजिटल डिवाइस या कंप्यूटर नहीं है, जिसमें एक क्लिक पर सब कुछ हासिल हो जाता है। किसी ने सही कहा है कि बदलती दुनिया का ऐसा असर होने लगा कि ‘आदमी पागल और फोन स्मार्ट होने लगा’!

एक सुरक्षित समाज के निर्माण और आर्थिक समृद्धि को बढ़ावा देने के लिए इस तरह की चुनौतियों से निपटना आवश्यक है। आज जब हम स्वयं को एक तेजी से उभरती अर्थव्यवस्था कहते हैं, तो क्या ये आंकड़े हमें चुनौती देते नजर नहीं आते? विकास का यह कैसा पक्ष है, जिस पर चिंतन करने के बजाय समाज, प्रशासन और राज्य उसकी उपेक्षा करते नजर आते हैं। केवल कानून बना देना या सजा निर्धारित कर देना राज्य का दायित्व नहीं होता। नई पीढ़ी को सही राह दिखाना, उनकी ऊर्जा को सही कार्यों में लगाना, उनके लिए उपयोगी शिक्षा और रोजगार विकसित करना भी एक कल्याणकारी राज्य का दायित्व होता है।

आज किशोर और युवा पीढ़ी नशे, अपराध और निराशा के जिस अंधकार में जीने को बाध्य है, उसके लिए परिवार, समाज और राज्य का दोष कुछ कम नहीं है। अब्राहम लिंकन का कहना था कि शिक्षा का मतलब लोगों को वह सिखाना नहीं है, जो वे नहीं जानते। इसका अर्थ है उन्हें वैसा व्यवहार करना सिखाना जैसा वे व्यवहार नहीं करते। यह सच है कि ज्ञान शक्ति है, लेकिन केवल शिक्षा या ज्ञान देना ही पर्याप्त नहीं है, उसका सही उपयोग करना भी सिखाना होगा, ताकि बच्चों में विश्लेषण और विमर्श करने की सामर्थ्य भी उत्पन्न हो सके।