मनोज कुमार मिश्र

लोकसभा चुनाव के बाद केंद्र में बीजेपी की अगुवाई में राजग की सरकार बन गई है। हालांकि, पिछली दो बार से उलट इस दफा बीजेपी को अपने दम पर बहुमत नहीं मिला है। अब विभिन्न राजनीतिक दलों की नजरें आगामी विधानसभा चुनावों पर हैं, जिनमें दिल्ली भी शामिल है। राष्ट्रीय राजधानी में अगले साल के शुरू में विधानसभा चुनाव होने हैं।

दिल्ली की सातों सीट पर बीजेपी ने लगातार तीसरी बार जीत हासिल की है

इसके लिए आम आदमी पार्टी (आप), बीजेपी और कांग्रेस ने अभी से तैयारियां शुरू कर दी हैं। बीजेपी की कोशिश है कि जिस तरह से लोकसभा चुनाव में दिल्ली में पार्टी की शानदार जीत हुई है, उसी तरह इस बार विधानसभा चुनाव में भी उसका प्रदर्शन बेहतर रहे। इस बार के लोकसभा चुनाव में दिल्ली की सभी सातों सीट पर लगातार तीसरी बार बीजेपी की जीत हुई है। इस चुनाव में दिल्ली की सभी सीट पर बीजेपी की जीत का औसत हालांकि कम रहा है।

पिछले लोकसभा चुनाव की तुलना में इस बार बीजेपी मत फीसद करीब 6.4 फीसद कम रहा। बीजेपी को पिछली बार 56 फीसद वोट मिले थे, जबकि इस बार 52 फीसद मिले हैं। कांग्रेस और आप इस बार मिलकर चुनाव लड़े थे। आप ने चार सीट पर और कांग्रेस तीन सीट पर उम्मीदवार उतारे थे। बावजूद इसके दोनों के वोट औसत में ज्यादा बदलाव नहीं हुआ। आप के संयोजक व दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल सुप्रीम कोर्ट से चुनाव प्रचार के लिए 21 दिन की जमानत की अवधि पूरी करके दो जून को वापस तिहाड़ जेल चले गए।

कांग्रेस और AAP अलग-अलग लड़ेंगे अगला दिल्ली विधानसभा चुनाव

उनकी गैर हाजिरी में उनकी पत्नी सुनीता केजरीवाल ने चुनाव नतीजों की समीक्षा बैठक ली। उस बैठक के बाद आप के दिल्ली संयोजक और दिल्ली सरकार के मंत्री गोपाल राय ने घोषणा कर दी कि कांग्रेस से आप का गठबंधन केवल लोकसभा चुनाव के लिए था। आप विधानसभा चुनाव अकेले लड़ेगी। उसके बाद दिल्ली कांग्रेस के नए अध्यक्ष देवेंद्र यादव ने भी इसी बात को दोहराया। यानी दिल्ली का विधानसभा चुनाव तिकोना होना तय है।

पिछले कई वर्षों से दिल्ली में लोकसभा, विधानसभा और नगर निगम चुनावों का जनादेश अलग-अलग रहा है। लोकसभा चुनाव 2014 से लगातार बीजेपी जीतती रही है, तो 2015 और 2020 के विधानसभा चुनाव में आप को जीत हासिल हुई है। नगर निगम का चुनाव लगातार तीन बार बीजेपी ने जीता, मगर वर्ष 2022 में निगम पर आप ने कब्जा कर लिया। लोकसभा चुनाव पर गौर करें तो दिल्ली विधान सभा की कुल 70 सीट में से 52 पर बीजेपी को बढ़त है।

हालांकि, 2019 के लोकसभा चुनाव में बीजेपी को 65 विधानसभा सीट पर बढ़त थी, मगर विधानसभा चुनाव में उसे केवल आठ सीट ही मिल पाईं। दरअसल, बीजेपी के लिए बड़ी चुनौती मुख्यमंत्री केजरीवाल के मुकाबले दिल्ली में नेता तैयार करने की है। दूसरी चिंता इस लोकसभा चुनाव में बीजेपी को नई दिल्ली, दिल्ली छावनी, राजौरी गार्डन, तिलक नगर आदि विधानसभा क्षेत्रों में बढ़त न मिलना है।

मुस्लिम बहुल विधानसभा सीटें- ओखला, बल्ली मरान, मटिया महल, सीलमपुर, सीमापुरी, मुस्तफाबाद, बाबरपुर और चांदनी चौक पर भाजपा विरोधी गठबंधन की बढ़त को ज्यादा अस्वाभाविक नहीं माना जा सकता है। अगर सिख मतदाताओं ने भाजपा को ज्यादा वोट नहीं दिया तो यह बीजेपी के लिए चिंताजनक है। उसी तरह से पूर्वांचल के प्रवासियों (बिहार, झारखंड और पूर्वी उत्तर प्रदेश के मूल निवासी) का पहली बार खुलकर अपने मूल राज्य की तरह जाति पर वोट करना नए राजनीतिक समीकरण बना रहा है।

इस बार दिल्ली की सभी सातों लोकसभा सीट पर लगातार भाजपा की जीत के कई कारण हो सकते हैं। इनमें आप के नेताओं पर लग रहे आरोपों का जनता पर प्रभाव भी एक कारण हो सकता है। माना जा रहा है कि चुनाव प्रचार के दौरान 21 मार्च को मुख्यमंत्री केजरीवाल की कथित शराब घोटाले में गिरफ्तारी, 10 मई को चुनाव प्रचार के लिए उनका तीन हफ्ते के लिए जमानत पर आना और आप की राज्यसभा सांसद स्वाति मालीवाल की केजरीवाल के सरकारी आवास पर कथित पिटाई के आरोप ने राजनीति के समीकरणों पर असर डाला है। वहीं, आप के वरिष्ठ नेता व दिल्ली के पूर्व मुख्यमंत्री मनीष सिसोदिया को शराब घोटाले में अभी तक जमानत नहीं मिल पाई है। आप नेता संजय सिंह भी इस मामले में जमानत पर हैं। भाजपा ने चुनाव के दौरान इन आरोपों को बड़ा मुद्दा बनाया।