BJP Dalit Votes Delhi elections 2025: नया साल आने के साथ ही देश की राजधानी दिल्ली में चुनावी मैदान पूरी तरह सज जाएगा। आम आदमी पार्टी एक बार फिर दिल्ली में सरकार बनाने की जी तोड़ कोशिश कर रही है तो दूसरी ओर विपक्षी दल बीजेपी और कांग्रेस सरकार के कामकाज और तमाम दूसरे मुद्दों को लेकर उसे घेर रहे हैं। दिल्ली की राजनीति में दलित मतदाताओं की एक बड़ी राजनीतिक हैसियत है। इस खबर में हम बात करेंगे कि दिल्ली में दलित समुदाय के लिए आरक्षित विधानसभा सीटों पर बीजेपी, कांग्रेस, आप व बीएसपी का प्रदर्शन पिछले कुछ चुनावों में कैसा रहा है।

बीते दिनों केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह के द्वारा संविधान निर्माता डॉक्टर बीआर अंबेडकर को लेकर दिए गए एक बयान पर देशभर की सियासत में अच्छा खासा राजनीतिक शोर-शराबा हो चुका है। इसलिए माना जा रहा है कि दिल्ली की आरक्षित सीटों पर इस बार भी चुनावी मुकाबला जोरदार होगा।

अमित शाह के बयान को आम आदमी पार्टी ने जोर-शोर से उठाया और आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस के द्वारा बनाया गया एक वीडियो भी जारी किया। इस वीडियो में डॉक्टर अंबेडकर के द्वारा अरविंद केजरीवाल को आशीर्वाद देते हुए दिखाया गया है।

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स्वाति मालीवाल ने छेड़ा AAP के खिलाफ अभियान। (Source-PTI & ANI)

दिल्ली में 12 सीटें हैं आरक्षित

2008 तक दिल्ली में 13 विधानसभा सीटें आरक्षित थीं लेकिन उसके बाद इन सीटों की संख्या 12 हो गयी। दिल्ली के पिछले विधानसभा चुनाव के नतीजों की बात करें (1993 को छोड़कर) तो ज्यादातर आरक्षित सीटों पर या तो कांग्रेस को जीत मिली है या फिर आम आदमी पार्टी को। 1993 का चुनाव आखिरी विधानसभा चुनाव था जब बीजेपी ने दिल्ली में सरकार बनाई थी और उसे उस वक्त 70 सीटों में से 49 सीटों पर जीत मिली थी। तब बीजेपी ने 8 आरक्षित सीटों पर जीत दर्ज की थी।

1998 में कांग्रेस ने बीजेपी को हराया और उसके बाद 2013 तक वह लगातार दिल्ली की सत्ता में बनी रही लेकिन 2013 में दिल्ली की राजनीति में आम आदमी पार्टी का उदय हुआ। 2013 के विधानसभा चुनाव में किसी भी दल को बहुमत नहीं मिला था। तब बीजेपी सबसे बड़े राजनीतिक दल के रूप में उभरी थी। बीजेपी को 32, कांग्रेस को 8 और आप को 28 सीटें मिली थी।

2015 और 2020 के विधानसभा चुनाव में आम आदमी पार्टी ने दिल्ली की सभी 12 आरक्षित सीटों पर जीत दर्ज की। इन दोनों ही विधानसभा चुनाव में आम आदमी पार्टी ने बीजेपी को एक तरह से ध्वस्त कर दिया और दोनों ही बार कांग्रेस का खाता नहीं खुला।

दिल्ली की आरक्षित सीटों पर राजनीतिक दलों का प्रदर्शन

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दिल्ली में आरक्षित सीटों पर कौन जीता।

वोट शेयर के लिहाज से भी देखें तो दलित समुदाय के लिए आरक्षित विधानसभा सीटों पर पिछले तीन विधानसभा चुनाव में बीजेपी को आम आदमी पार्टी के मुकाबले कम वोट मिला है जबकि उससे पहले 1998, 2003 और 2008 के विधानसभा चुनाव में कांग्रेस ने बीजेपी से ज्यादा वोट हासिल किए थे। सिर्फ 1993 के विधानसभा चुनाव में बीजेपी आरक्षित सीटों पर वोट शेयर के मामले में थोड़े से अंतर से आगे रही थी।

अगर आप आंकड़ों को देखें तो 2015 और 2020 के विधानसभा चुनाव में आम आदमी पार्टी ने आरक्षित सीटों पर बीजेपी के मुकाबले कहीं ज्यादा वोट शेयर हासिल किया।

आरक्षित सीटों पर राजनीतिक दलों को मिले वोट (प्रतिशत में)

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आरक्षित सीटों पर राजनीतिक दलों को मिले वोट।

गिरता जा रहा बीएसपी का वोट शेयर

2003 और 2008 के विधानसभा चुनाव में बीएसपी ने भी कुछ सीटों पर अच्छा प्रदर्शन किया था। 2003 में आरक्षित सीटों में से तीन और 2008 में 6 सीटों पर बीएसपी को हार-जीत के अंतर से ज्यादा वोट मिले थे। हालांकि अब बीएसपी दिल्ली में बड़ी ताकत नहीं है। 2003 और 2008 के विधानसभा चुनाव में आरक्षित सीटों पर बीएसपी को क्रमशः 11.2% और 18.6% वोट मिले थे 2008 में बीएसपी एक सीट जीती थी लेकिन उसके बाद से उसका वोट शेयर लगातार गिरता जा रहा है।

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AAP-BJP आए आमने-सामने। (Source-PTI)

लोकसभा चुनाव में आरक्षित सीटों पर आगे रही बीजेपी

पिछले तीन लोकसभा चुनावों में बीजेपी ने दिल्ली की सभी 7 सीटों पर जीत दर्ज की और अगर आप 2024 के लोकसभा चुनाव में विधानसभा सीटों के लिहाज से देखेंगे तो बीजेपी ने आरक्षित सीटों में से कुल 9 सीटों पर बीजेपी आगे थी, जबकि कांग्रेस को दो और आम आदमी पार्टी को एक सीट पर बढ़त मिली थी।

आम आदमी पार्टी का यह दावा है कि वह संविधान के रास्ते पर चलती है। पार्टी का कहना है कि गृहमंत्री अमित शाह को डॉक्टर अंबेडकर पर की गई टिप्पणी के लिए माफी मांगनी चाहिए। बीजेपी का कहना है कि दिल्ली के लोग अच्छी तरह जानते हैं कि अरविंद केजरीवाल ने 10 साल में अंबेडकर की याद में दिल्ली में एक भी काम नहीं किया।

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किसान नेता जगजीत सिंह डल्लेवाल। (Source-Screenshot via PTI video)

दिल्ली में लंबे वक्त तक सरकार चला चुकी कांग्रेस का कहना है कि आम आदमी पार्टी केवल घोषणाएं कर रही है और उसने दलित समुदाय के लिए कुछ नहीं किया है।