शनिवार को वीडी सावरकर की पुण्यतिथि पर प्रधानमंत्री मोदी समेत कई भाजपा नेताओं ने ट्वीट कर उन्हें श्रद्धांजलि दी। भाजपा प्रवक्ता संबित पात्रा ने ट्वीट कर वीडी सावरकर का मतलब तेज त्याग और तप बता दिया। जिसके बाद उन्हें सोशल मीडिया यूजर्स ट्रोल करने लगे।
भाजपा प्रवक्ता संबित पात्रा ने शनिवार को ट्वीट करते हुए लिखा कि सावरकर माने तेज, सावरकर माने त्याग, सावरकर माने तप, सावरकर माने तत्व। भारतीय स्वाधीनता आंदोलन के महानायक, प्रखर राष्ट्रवादी चिंतक, मां भारती के अमर सपूत स्वातंत्र्यवीर विनायक दामोदर सावरकर की पुण्यतिथि पर शत् शत् नमन।
संबित पात्रा के इस ट्वीट के बाद सोशल मीडिया यूजर्स के प्रतिक्रियाओं की बाढ़ आ गई। ट्विटर हैंडल @royalranu95 ने लिखा कि जितना आपने लिख दिया इस माफीवीर के बारे में इतना तो बेचारे को खुद नहीं पता होगा। ट्विटर यूजर @Ialapandit ने लिखा कि सावरकर अंग्रेजों से 60 रुपए पेंशन लेते थे। मजेदार बात कि माफीवीर इतने में संतुष्ट नहीं, इसलिए उन्होंने रत्नागिरी के कलेक्टर से इसमें मेरा गुजारा नहीं चलता का याचनापत्र देकर पेंशन बढ़ाने की गुहार लगाई थी।
रजत नाम के यूजर ने लिखा कि सावरकर माने माफीवीर, सावरकर माने जयचंद, सावरकर माने अंग्रेजों का मुखबिर। वहीं ट्विटर हैंडल @ms_rana ने लिखा कि अंग्रेज़ों से माफ़ी मांगने वाला, अंग्रेजों से पेंशन लेने वाला, खुद को वीर घोषित करने वाला, ये है सावरकर! अवधेश मौर्य ने लिखा कि सावरकर वीर और देशभक्त तभी तक थे जब तक कि वह जेल नहीं गए थे। जेल जाने के बाद वह अंग्रेजों के कथित तौर पर जासूस और वफादार की भूमिका में आ गए थे।
बता दें कि सावरकर का जन्म 28 मई 1883 को एक मराठी ब्राह्मण परिवार में हुआ था। सावरकर को नासिक के कलेक्टर की हत्या के मामले में 25 साल कैद की सजा सुनाई गई थी और उन्हें अंडमान की सेल्युलर जेल में भेज दिया गया था। इतिहासकार बताते हैं कि सेल्युलर जेल में 9 साल रहने के दौरान उन्होंने 6 बार अंग्रेजों को माफ़ीपत्र लिखे थे। इसके बाद उन्हें 1924 में अंग्रेजों ने दो शर्तों के साथ छोड़ा था। अंग्रेज जेल से निकलने के बाद उनको 60 रुपए महीने की पेंशन भी दिया करते थे।
सावरकर को महात्मा गांधी की हत्या के मामले में 1949 में गिरफ्तार भी किया गया था। लेकिन थोड़े समय के बाद वे सबूतों के अभाव में बरी हो गए। पिछले दिनों जब रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह ने कहा कि सावरकर को साज़िश के तहत बदनाम किया गया है और उन्होंने महात्मा गांधी के कहने पर अंग्रेज़ों के सामने दया याचिकाएं दायर की थीं। तो राजनीतिक जगत में भयंकर बवाल मचा हुआ था।