पश्चिम बंगाल की राजनीति में ममता बनर्जी और अभिषेक बनर्जी के बीच विवाद किसी से भी छिपा नहीं है। हालांकि, सिर्फ टीएमसी ही नहीं पश्चिम बंगाल में पारिवारिक कलह से भाजपा भी परेशान है। भाजपा विधायक और दो भाइयों शांतनु ठाकुर और सुब्रत ठाकुर के बीच मतभेद अब खुलकर सामने आ गया है।

राजनीतिक रूप से प्रभावशाली मतुआ दलित समुदाय इस बार भाइयों के बीच विभाजित दिखाई देता है, जो दोनों ही भाजपा विधायक हैं। बनगांव के सांसद शांतनु ठाकुर नरेंद्र मोदी सरकार में केंद्रीय बंदरगाह, जहाजरानी और जलमार्ग राज्य मंत्री हैं वहीं, उनके बड़े भाई सुब्रत बनगांव के एक विधानसभा क्षेत्र गायघाटा से विधायक हैं। दोनों भाई जहां पहले अपनी चाची और टीएमसी सांसद ममता बाला ठाकुर के साथ मतभेद रखते थे, यह पहली बार है जब वे आपस में झगड़ रहे हैं।

पश्चिम बंगाल बीजेपी के दो विधायकों के बीच छिड़ा विवाद

इस विवाद के केंद्र में अलग-अलग खेमे हैं, जिन्हें भाइयों ने ‘मतुआ कार्ड’ या ‘हिंदू कार्ड/प्रमाणपत्र’ जारी करने के लिए संगठित किया था क्योंकि समुदाय में मतदाता सूची के विशेष गहन पुनरीक्षण (एसआईआर) को लेकर चिंताएं थीं। उनके लिए, ये कागजात हासिल करना नागरिकता (संशोधन) अधिनियम के तहत नागरिकता हासिल करने की दिशा में पहला कदम है जो एसआईआर आने पर उन्हें सुरक्षा प्रदान करेगा।

लाखों मतुआ समुदाय के लोग 1950 से लेकर बांग्लादेश के अस्तित्व में आने के बाद तक, वर्तमान बांग्लादेश से पश्चिम बंगाल में आकर बसे थे और उनमें से कई के पास नागरिकता के दस्तावेज़ नहीं हैं। मतुआ आज राज्य का दूसरा सबसे बड़ा दलित समूह, सीएए और उसके बाद भाजपा के प्रति उनके समर्थन के कारण ही पार्टी ने 2019 के लोकसभा चुनावों में 18 सीटें जीतीं थीं। यह राज्य में संसदीय चुनावों में भाजपा का अब तक का सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन था।

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सगे भाई हैं बीजेपी विधायक शांतनु और सुब्रत ठाकुर

सबसे पहले, बड़े भाई सुब्रत ने ठाकुरबाड़ी के सामने एक शिविर लगाया। ठाकुरनगर स्थित उनका पारिवारिक घर अखिल भारतीय मतुआ महासंघ का मुख्यालय है, जिसके वर्तमान अध्यक्ष शांतनु हैं। यह देखकर केंद्रीय मंत्री ने भी उसी क्षेत्र में एक शिविर स्थापित किया। हालांकि, शांतनु द्वारा अपना शिविर पास के नट मंदिर में स्थानांतरित करने के बाद, जो मतुआओं का धार्मिक, आध्यात्मिक और सांस्कृतिक केंद्र है, दोनों भाइयों के बीच झगड़ा और बढ़ गया।

जब सुब्रत ने आपत्ति जताई और अपनी बुआ ममता बाला से मिले, जिन्होंने शांति स्थापित करने की कोशिश की तो शांतनु ने अपने बड़े भाई पर नाटक करने और टीएमसी में शामिल होने की साज़िश रचने का आरोप लगाया। जवाब में, गायघाटा विधायक ने बनगांव के सांसद पर मतुआ महासंघ में जबरन वसूली का गिरोह चलाने और पैसे हड़पने का आरोप लगाया।

नट मंदिर में शिविर स्थानांतरित करने पर छिड़ा विवाद

 सुब्रत ने आरोप लगाया, “नट मंदिर का इस्तेमाल ऐसे कामों के लिए नहीं किया जा सकता। भक्त वहां पूजा-अर्चना करने आते हैं। जब मैंने इस पर आपत्ति जताई तो शांतनु ने चेतावनी दी कि वह अगले साल होने वाले चुनावों में मुझे टिकट न देने के लिए अपने प्रभाव का इस्तेमाल करेंगे।”

हालांकि, शांतनु ने दावा किया कि समुदाय के कल्याण के लिए मंदिर परिसर का इस्तेमाल करने में कुछ भी गलत नहीं है, साथ ही उन्होंने आरोप लगाया कि उनका भाई ईर्ष्या से ऐसा कर रहा है। उन्होंने कहा, “सुब्रत मेरे केंद्रीय मंत्री बनने से ईर्ष्या करते हैं। यह महसूस करते हुए कि बंगाल में भाजपा विधायक के रूप में वह मंत्री नहीं बन सकते, वह तृणमूल में शामिल होना चाहते हैं।”

दोनों भाइयों के माता-पिता अलग-अलग पक्ष ले रहे

भाइयों के बीच मतभेदों ने ठाकुर परिवार को भी विभाजित कर दिया है, जहां भाइयों के माता-पिता अलग-अलग पक्ष ले रहे हैं। जहाँ उनकी माँ छविरानी और ममता बाला ने सुब्रत का समर्थन किया है, वहीं उनके पिता मंजुल कृष्ण ठाकुर, जो टीएमसी सरकार में पूर्व मंत्री थे और एक दशक से भी पहले पार्टी से अलग हो गए थे, शांतनु के बचाव में सामने आए हैं।

छविरानी ने शांतनु पर सुब्रत को वंचित करने और मतुआ महासंघ को निरंकुश तरीके से चलाने का आरोप लगाया। उन्होंने कहा, “मैं असहाय महसूस कर रही थी और परिवार की मुखिया होने के नाते मैंने ममता बाला से मदद माँगी। शांतनु सब कुछ संभाल रहे हैं और सुब्रत कहीं नहीं हैं।” पिता मंजुल कृष्ण ने कहा, “यह घटना दुर्भाग्यपूर्ण है। मुख्य ‘सेवयेत’ होने के नाते, मैंने शांतनु को नट मंदिर में शिविर लगाने की अनुमति दी थी। अगर सुब्रत को कोई समस्या है तो वह परिवार के भीतर बात कर सकते हैं। उन्होंने टीएमसी को इसमें क्यों शामिल किया? मैं इसकी अनुमति नहीं दे सकता।”

2014 में, मंजुल कृष्ण अपने बड़े भाई और तत्कालीन बनगांव सांसद कपिल कृष्ण ठाकुर (ममता बाला के पति) के निधन के बाद परिवार में टीएमसी का समर्थन करने को लेकर बनी राजनीतिक सहमति को तोड़ने वाले पहले व्यक्ति थे। हालाँकि वह बनगांव सीट सुब्रत के लिए चाहते थे, लेकिन टीएमसी ने ममता बनला को मैदान में उतारा और वह अपने बेटों के साथ पार्टी से अलग हो गए। इससे परिवार टीएमसी और भाजपा के समर्थकों के बीच बँट गया। परिवार का यह विभाजन अब तक जारी है, जब भाजपा खेमे के दोनों भाई एक-दूसरे के खिलाफ मैदान में हैं। पढ़ें- क्या खतरे में है टीएमसी सांसद अभिषेक बनर्जी की लोकसभा सदस्यता?