पिछले सात सालों के दौरान केंद्र में अपनी स्थिति मजबूत करने वाली भाजपा ने बीते कुछ समय में बड़ी संख्या में राज्यों में भी जीत हासिल की है। मौजूदा समय में भी भाजपा अलग-अलग राज्यों में सरकार के जरिए देश की करीब 49 फीसदी जनता पर शासन कर रही है। हालांकि, कई राज्य इकाइयों और केंद्रीय स्तर के नेतृत्व में हालिया समय में उभरे मतभेदों ने पार्टी की राहें मुश्किल की हैं। उत्तर प्रदेश और कर्नाटक से लेकर त्रिपुरा और मध्य प्रदेश तक। पार्टी अपने शासन वाले राज्यों में ही तनाव को कम करने में जुटी है।

वहीं, महाराष्ट्र, राजस्थान, छत्तसीगढ़ और पश्चिम बंगाल जैसे राज्य, जहां पार्टी विपक्ष में है, वहां भी कोरोना की दूसरी लहर के जाते-जाते पार्टी अब अंदरुनी कलह को खत्म करने के लिए जूझ रही है। इसकी एक वजह 2014 से ही पार्टी की भारी-भरकम जीत रही हैं, जिससे एक तरफ तो पार्टी लोकप्रियता के जरिए अपराजेय होने की सोच के साथ आगे बढ़ने लगी। हालांकि, इसी दौरान भाजपा की राज्य इकाइयों में तनाव भी पैदा होने लगे।

इसकी एक वजह राज्य के नेतृत्व चुनाव में केंद्र का हस्तक्षेप भी माना जाता है। दरअसल, भाजपा के नए हाई-कमांड कल्चर ने ही महाराष्ट्र में एक गैर-मराठा (देवेंद्र फडणवीस), हरियाणा में एक गैर-जाट (मनोहर लाल खट्टर) और झारखंड में एक गैर-आदिवासी नेता (रघुबर दास) को मुख्यमंत्री बनाने का फैसला किया था। पिछले सात सालों में पार्टी के इस तरह के एक्सपेरिमेंट अब पटरी से उतरते दिखाई दे रहे हैं। क्योंकि बाकी तीनों मुख्यमंत्रियों में सिर्फ मनोहर लाल खट्टर ही अपनी सत्ता बचाने में कामयाब रहे हैं, वह भी एक गठबंधन के कारण।

राज्यों में केंद्रीय नेतृत्व की तरफ से लिए जा रहे इन फैसलों का एक असर यह भी हुआ है कि राज्य इकाइयों में कई नेताओं में असंतुष्टि की भावना पैदा होने लगी है। खासकर ऐसे नेताओं में जिन्हें अब तक पार्टी में बड़ा पद नहीं दिया गया। पिछले महीन ही असम में भाजपा ने हेमंत बिस्व सरमा को मुख्यमंत्री बनाकर उनकी महत्वाकांक्षाओं को पूरा किया। पर बाकी राज्यों में पार्टी के सामने अभी यह समस्या बनी हुई है।

उधर पार्टी की राज्य इकाइयों में असंतुष्टि बढ़ने का एक कारण कोरोनावायरस की दूसरी लहर भी रही, जिससे पार्टी की छवि को काफी नुकसान पहुंचा। भाजपा के तीन वरिष्ठ नेताओं का कहना है कि अप्रैल और मई के दौरान लोगों का गुस्सा और विधानसभा चुनाव में पार्टी का बेहतर प्रदर्शन न कर पाना भी राज्य इकाइयों में नेताओं के बीच चिंता का एक विषय रहा।

इतना ही नहीं कहा तो यहां तक जा रहा है कि इस महामारी की वजह से भाजपा प्रमुख जेपी नड्डा के हाथ भी बंध गए, जिन्होंने कुछ साल पहले ही अमित शाह से पार्टी के नेतृत्व को हासिल किया था। भाजपा के राष्ट्रीय परिषद के एक नेता ने कहा कि नड्डा के लिए अमित शाह की जगह लेना हमेशा से कठिन रहा और महामारी के चलते वे राज्यों के दौरे पर नहीं जा सके और राज्य इकाइयों के नेताओं से निजी तौर पर नहीं मिल सके। इससे उनकी स्थिति पर भी असर पड़ा है।

हालांकि, कोरोना की दूसरी लहर थमने के साथ ही भाजपा के महासचिव बीएल संतोष जल्दी-जल्दी उत्तर प्रदेश, हिमाचल प्रदेश, उत्तराखंड और त्रिपुरा का दौरा कर चुके हैं। माना जा रहा है कि वे और कुछ अन्य महासचिव भी जल्द और राज्यों का दौरा करेंगे। इसे लेकर भाजपा महासचिव पी मुरलीधर राव का कहना है कि कोरोनाकाल के दौरान पार्टी के संगठन से जुड़े मुद्दे पीछे हो गए थे और हमारा ध्यान सिर्फ जनता की सेवा पर था। लेकिन अब स्थिति नियंत्रण में आने के साथ ही हम फिर से राज्यों के संगठन से जुड़े काम पूरे करने निकले हैं।

किन राज्यों में पार्टी नेताओं के बीच उभरे मतभेद?: सार्वजनिक तौर पर भाजपा अलग-अलग राज्यों में मजबूत पार्टी के तौर पर ही नजर आती है। हालांकि, कई नेताओं के बयान और कार्यशैली अलग ही कहानी कह रहे हैं। इनमें सबसे पहला उदाहरण उत्तर प्रदेश है, जहां अगले साल विधानसभा चुनाव होने हं। यहां पार्टी के वरिष्ठ नेताओं में सीएम योगी आदित्यनाथ के काम करने के तरीके को लेकर असंतुष्टि पैदा हुई है। हालिया पंचायत चुनाव और कोरोना के प्रबंधन में हुई आलोचना के चलते डिप्टी सीएम केशव प्रसाद मौर्या जैसे चेहरों की नाराजगी भी सामने आई है।

इसके अलावा यूपी में गैर-ठाकुर उच्च जातियों की तरफ से भी राज्य सरकार से मोहभंग होने की बात बृजेश पाठक और दिनेश शर्मा जैसे नेताओं के जरिए पहुंचाई गई है। इसके बावजूद राज्य में चुनाव के मद्देनजर सभी नेता एक साथ दिखने की कोशिश में हैं। खासकर केंद्र सरकार ने तो अब योगी को पूरा समर्थन दिया है। पीएम नरेंद्र मोदी ने भी जिला पंचायत के चुनावों में सफलता के लिए योगी को बधाई देकर आगे की तैयारियों पर गौर करने के लिए जोर दिया है।

उधर मध्य प्रदेश में दमोह उपचुनाव में भाजपा उम्मीदवार की हार ने राज्य में पार्टी के बीच चल रही कलह को सामने ला दिया। मध्य प्रदेश भाजपा के अध्यक्ष वीडी शर्मा और मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान, दोनों अलग-अलग कैंप के नेता कहे जाते हैं और दोनों ने ही कुछ समय पहले जेपी नड्डा से मुलाकात की है। इसके अलावा शिवराज सिंह चौहान के लिए नरोत्तम मिश्रा और केंद्रीय मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर पहले ही चुनौती के तौर पर देखे जाते रहे हैं। इसके अलावा ज्योतिरादित्य सिंधिया के समर्थन वाला एक तीसरा कैंप भी भाजपा में राजनीति को प्रभावित कर सकता है।

उधर कर्नाटक में तो मुख्यमंत्री बीएस येदियुरप्पा को विपक्ष के साथ-साथ पार्टी के अंदर से भी चुनौती मिल रही है। बताया गया है कि मोदी और शाह ने साफ कर दिया है कि वे कर्नाटक में बदलाव की तरफ नहीं देख रहे और संतोष और भाजपा प्रदेशाध्यक्ष नलिन कुमार कतील को भी सख्त संदेश दिया गया है। हालांकि, इससे पार्टी में जारी अंदरुनी कलह शांत नहीं हुई है।

हिमाचल प्रदेश में भी फिलहाल सब कुछ ठीक नहीं चल रहा। यहां विधायक रमेश धवाला के साथ-साथ संगठन सचिव पवन राणा के गुट बन गए हैं। सोशल मीडिया पर कई ऐसे वीडियो सामने आ चुके हैं, जिनमें इन गुटों के बीच नाराजगी खुलकर जाहिर हुई है। ऐसे में पार्टी महासचिव बीएल संतोष को राज्य पहुंचकर अगले साल होने वाले चुनाव से पहले नेताओं को एकजुट होने के लिए कहना पड़ा है।