2024 के लोकसभा चुनाव को लेकर अभी से ही तैयारियां शुरू कर दी गई हैं। बीजेपी तो इस रेस में काफी तेजी से आगे बढ़ते दिख रही है, चुनाव में अभी भी एक साल से ज्यादा का वक्त है, लेकिन जिस स्पीड से नेरेटिव सेट किया जा रहा है, ये साफ है कि एक बार फिर विपक्ष पर पूरी तरह हावी होने की तैयारी है। वहीं दूसरी तरफ विपक्षी कुनबा इंडिया अभी तक ना चेहरे पर कोई फैसला ले पाया है, ना सीट शेयरिंग पर कोई सहमति बनी है और ना ही संयोजक अभी तक चुना गया है।
अब इंडिया गठबंधन जरूर अभी भी मंथन मोड में चल रहा है, लेकिन पिछले कुछ महीनों का ट्रेंड बताता है कि बीजेपी ने गेयर चेंज कर लिया है, वो पूरी तरह एक्शन मोड में नजर आ रही है। साफ पता चल रहा है कि किन मुद्दों पर बीजेपी 2024 की लड़ाई लड़ने जा रही है। इन मुद्दों के जरिए हिंदुत्व की पिच पर खेलने की तैयारी है, राष्ट्रवाद को धार देने का प्रयास है और रीफॉर्म पॉलिटिक्स वाले नेरेटिव पर जोर दिया जा रहा है। अब ये कोई कयास नहीं है, बल्कि पिछले कुछ दिनों में जिस तरह से बीजेपी ने कई कदम उठाए हैं, वो बताने के लिए काफी हैं कि किन मुद्दों पर आगामी लोकसभा चुनाव लड़ा जाना है।
हिंदुत्व की पिच फिर हुई हरी
बीजेपी को आज भी हिंदी पट्टी वाले राज्यों में ज्यादा स्वीकृति मिलती है, इसके अलावा हिंदू वोटरों के बीच में भी पार्टी की विचारधारा ज्यादा सहमति पाती दिख जाती है। इसका सबसे बड़ा कारण ये है कि बीजेपी हार्ड हिंदुत्व खेलती है, उसे किसी भी मुद्दे से परहेज नहीं है, वो अपने स्टैंड में एकदम स्पष्ट रहती है। उसे बाबरी मस्जिद की जगह राम मंदिर चाहिए था, उसके लिए ये क्लियर था। अब सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बाद वो विवाद तो सुलझ गया, लेकिन अभी तक राम मंदिर का उद्घाटन नहीं हुआ है। ऐसे में 2024 के लोकसभा चुनाव के करीब ही उस बड़े उद्घाटन की भी तैयारी है। यानी कि बीजेपी राम मंदिर मुद्दे को फिर भुनाने को पूरी तरह तैयार दिख रही है। सीएम योगी आदित्यनाथ ने तो पीएम मोदी को अभी से निमंत्रण पत्र भी दे दिया है।
अब हिंदुत्व की पिच इस बार बीजेपी के लिए सीएम एमके स्टालिन के बेटे उदयनिधि ने भी कर दी है। उनकी तरफ सनातन को लेकर एक ऐसा बयान दिया गया जिसने राजनीतिक गलियारों में सियासी भूचाल लाने का काम कर दिया। उन्होंने सनातन की तुलना डेंगू-मलेरिया से कर दी। उसे खत्म करने तक की बात हो गई। अब सनातन का सीधा मलतब हिंदू धर्म से होता है और बीजेपी करती है हिंदुत्व की राजनीति, ऐसे में इस मुद्दे ने पार्टी को चुनावी मौसम में एक बड़ा नेरेटिव सेट करने का मौका दे दिया। बयान डीएमके नेता का रहा, लेकिन बीजेपी ने कुछ ही देर में उसे इंडिया गठबंधन का स्टेटमेंट बता दिया। सफाई भी डीएमके या उदयनिधि से नहीं, बल्कि इंडिया गठबंधन के तमाम नेताओं से मांगी गई।
बीजेपी की पिच क्लियर है, वो विपक्ष को हिंदू विरोधी दिखाना चाहती है, बताना चाहती है कि पूरा इंडिया गठबंधन हर मौके पर बस सनातन का अपमान कर रहा है। वैसे इस हिंदुत्व की पिच पर ही बीजेपी को एक और बड़े मुद्दे का सहारा मिल गया है। कुछ दिन पहले ही इंडिया बनाम भारत की बहस शुरू हो गई है। कयास लगने लगे हैं कि इंडिया का नाम बदल भारत किया जा सकता है। ये कयास भी इसलिए शुरू किए गए क्योंकि जी20 समिट के लिए विदेशी मेहमानों को जो निमंत्रण पत्र गए, उनमें प्रेसिडेंट ऑफ भारत लिखा गया, ना कि प्रेसिडेंट ऑफ इंडिया। अब इस समय आधिकारिक तौर पर कोई भी मोदी सरकार का मंत्री इस मुद्दे पर खुलकर नहीं बोल रहा है, लेकिन बीजेपी प्रवक्ताओं ने नेरेटिव सेट कर दिया है कि भारत देश की संस्कृति से जुड़ा हुआ है, जबकि इंडिया गुलामी का प्रतीक है।
इस समय इंडिया गठबंधन जरूर तर्क दे रहा है कि मोदी सरकार उन्हीं की एकजुटता से डरकर नाम बदलना चाहती है, लेकिन जिस तरह से बीजेपी ने इंडिया शब्द को गुलामी का प्रतीक बता दिया है, विपक्ष के लिए भी उस नेरेटिव से पार पाना मुश्किल रहने वाला है।
राष्ट्रवाद-आतंकवाद और अमृतकाल
अब हिंदुत्व अगर बीजेपी का पुराना मुद्दा रहा है तो 2014 के बाद हाईपर नेशन्लिजम ने भी पार्टी के लिए एक नया वोटबैंक तैयार करके दिया है। आतंकवाद के खिलाफ हमेशा से ही बीजेपी ने जीरो टॉलरेंस की बात की है, पाकिस्तान से बात ना करना, हुर्रियत का बहिष्कार करना, ये कुछ ऐसे स्टैंड रहे हैं जिन्होंने बीजेपी को कांग्रेस और जम्मू-कश्मीर की दूसरी क्षेत्रीय पार्टियों से अलग करने का काम किया। अब पिछले 9 सालों में इस देश ने पाकिस्तान के खिलाफ सर्जिकल स्ट्राइक देखी है, एयर स्ट्राइक देखी है और कई आतंकवादियों का जम्मू-कश्मीर में भी खात्मा किया गया है।
पार्टी की इस अप्रोच ने देश के एक तबके में ये नेरेटिव सेट कर दिया है कि पाकिस्तान को अगर करारा जवाब देना है तो केंद्र में बीजेपी सरकार रहनी चाहिए। इसी नेरेटिव पर पार्टी एक बार फिर खेलने जा रही है। इसके ऊपर जिस तरह से आजादी के 75 वर्षों को पूरे देश में मनाया गया है, जिस तरह उसे अमृतकाल का नाम दिया गया है, इसने भी देश के एक बड़े तबके पर गहरा प्रभाव छोड़ने का काम किया है। तिरंगा यात्रा निकालना, हर घर तिरंगा जैसे अभियान शुरू करना, ये सभी कहने को सरकारी कार्यक्रम हैं, लेकिन नेरेटिव पूरी तरह बीजेपी और पीएम मोदी के पक्ष में तैयार करने की कवायद रहती है।
रीफॉर्म पॉलिटिक्स वाला नेरेटिव
देश में आजादी के बाद से कई बड़े रीफॉर्म देखने को मिल गए हैं, लेकिन कई ऐसे भी हैं जिन पर बस बहस चल रही थी, एक्शन कभी नहीं हुआ। ऐसा ही एक रीफॉर्म था जम्मू-कश्मीर से अनुच्छेद 370 का हटना। जिस मुद्दे को उठाने से भी पहले बचा जाता था, 2019 के जनादेश ने मोदी सरकार को ऐसी ताकत थी कि एक झटके में आजाद भारत का एक सबसे अहम कदम उठा दिया गया। मैसेज ये दिया गया कि पूर्ण बहुमत की जब-जब सरकार बनेगी, ऐसे बड़े फैसला लेने से भी गुरेज नहीं किया जाएगा।
अब 370 वाले मुद्दे को तो बीजेपी उठा ही रही है, इसके साथ अचानक से यूनिफॉर्म सिविल कोड पर उसने चर्चा तेज कर दी है। लागू होगा या नहीं होगा, किसी को नहीं मालूम, लेकिन नेरेटिव ये सेट हो रहा है कि देशहित में ये जरूरी है। इसके लागू होने से महिलाओं को समान अधिकार मिल जाएंगे। देश का एक तबका ऐसा है जिसके लिए ‘मुद्दा क्या है’ ज्यादा मायने नहीं रखता, उसके लिए उस मुद्दे को लेकर नेरेटिव क्या सेट हो रहा है, वो महत्वपूर्ण हो जाता है। ऐसे ही वोटर्स को अपने पाले में बीजेपी लाना चाहती है, उसका जमीन पर तेज प्रचार भी इसकी तस्दीक करता है।
एक और रीफॉर्म जो शायद अभी लागू भी ना हो, लेकिन उसे लेकर भी नेरेटिव का खेल शुरू हो चुका है- एक देश एक चुनाव। ये मुद्दा भी कोई अभी का नहीं है, ये भी नहीं कह सकते हैं कि पीएम मोदी ने अपनी तरफ से कोई मुहिम शुरू की हो। लेकिन टाइमिंग का सारा खेल है जहां पर एक देश एक चुनाव को भी देशहित से जोड़कर दिखाया जा रहा है। परसेप्शन ये क्रिएट हो रहा है कि बीजेपी बड़े रीफॉर्म कर रही है, वो फैसले ले रही है जो किसी दूसरी सरकार ने नहीं लिए। कई ऐसे वोटर्स हैं जो सिर्फ इस बात से खुश होकर भी अपना वोट पीएम मोदी के चेहरे पर दे आएंगे।
विपक्ष किस डिपार्टमेंट में बीजेपी से पिछड़ रहा?
यानी कि बीजेपी के मुद्दे साफ समझ आ रहे हैं, पहले सबकुछ सेट हो चुका है, ऐसे में प्रचार के लिए भी काफी वक्त बचा है। ये वहीं डिपार्टमेंट है जहां पर विपक्ष पिछड़ रहा है। उसने कहने को खुद को एकजुट कर लिया है, लेकिन जब तक सीट शेयरिंग पर बात नहीं हो जाती, जब तक जमीन पर उम्मीदवारों की सूची स्पष्ट नहीं हो जाती, किसी भी पार्टी का कार्यकर्ता दूसरी पार्टी के कार्यकर्ता के साथ काम नहीं कर पाएगा। उस स्थिति में असमंजस की स्थिति बनेगी और गठबंधन का कन्फ्यूजन वोटर को भी कन्फ्यूज करेगा और उसका सीधा फायदा बीजेपी ले जाएगी।