केंद्र में मोदी सरकार द्वारा बीते वर्ष नागरिकता संशोधन अधिनियम लागू करने की बात कही गई थी जिसके बाद भारत का अल्पसंख्यक समुदाय देश की सड़कों पर आंदोलन के लिए उतर गया था जिसका प्रदर्शन केंद्र दिल्ली का शाहीन बाग था। शाहीनबाग ने कई लोगों को अपने वजूद से मिलवाया और ख्याति प्राप्त कराई। शाहीनबाग प्रदर्शन में कई ऐसे लोग थे जो हज़ारों के प्रेरणास्रोत थे और हज़ारों लोग इनसे प्रभावित होते थे।

शाहीनबाग में प्रदर्शन करने वालों में एक बिलकिस बानो भी थी जो अपने बच्चों के हक छीने जाने के डर से सरकार के खिलाफ रोष में थी और अब यही बिलकिस बानों को हज़ारों ने प्रेरणास्रोत माना है। अपनी उम्र के आखरी पड़ाव में जी रही बिलकिस बानो देखने में घर-परिवार और मोहल्ले की दादी या नानी जैसी दिखती हैं। अब टाइम पत्रिका ने उन्हें दुनिया के 100 सबसे प्रभावशाली लोगों की सूची में शुमार किया है।

भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र भी टाइम्स की इस सूची में शुमार है। अपनी इस सफलता पर बिलकिस बानों ने कहा कि उन्होंने सपने में भी नहीं सोचा था कि एक दिन वह दुनिया में इतना ऊंचा मुकाम हासिल करेंगी।

नागरिकता संशोधन अधिनियम के आने की खबर से बिलकिस बानों नाराज़ तो है लेकिन फिर भी वह प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी को बधाई दे रही है। पीएम को बधाई देते हुए वह कहती हैं, ‘‘मोदी जी भी हमारी औलाद हैं। हमने उन्हें जन्म नहीं दिया तो क्या, उन्हें हमारी बहन ने जन्म दिया है। हम चाहते हैं कि वह हमेशा खुश और सेहतमंद रहें।’’

बिलकिस बानों मूल रूप से तो उत्तरप्रदेश के बुलंदशहर की है लेकिन फिलहाल दक्षिणी दिल्ली के शाहीनबाग इलाके में अपने बेटे बहु के साथ रहती है।

शाहीनबाग में किये गए अपने प्रदर्शन पर भी दादी से कई सवाल किए गए। बड़ी ही बेबाकी से सभी सवालों का जवाब देते हुए दादी ने बताया कि वह अंग्रेज़ी एवं हिंदी पढ़ना लिखना नहीं जानती, शिक्षा के नाम पर बस वह कुरान पढ़ना जानती है और उसकी सम्पूर्ण जानकारी है।

हालांकि अपने प्रदर्शन के दौरान पत्रकारों और अफसरों के सवालों का जवाब वे बड़ी बेबाकी से देती थी और जिस कानून का वे विरोध कर रही थी उसकी खामियां भी गिनवा देती थी।

नागरिकता संशोधन अधिनियम पर तंज़ कसते हुए उन्होंने इसे मनमानी का कानून भी बताया है और कहा कि उनके पास और भी कई लोगों के पास अपनी नागरिकता साबित करने के लिए भले ही हज़ारों कागज़ात होंगे लेकिन यह प्रदर्शन और लड़ाई उन लोगों के हक के लिए है जिनके पास भारत की अपनी नागरिकता साबित करने के लिए पर्याप्त दस्तावेज नहीं है।

दादी ने अपने प्रदर्शन के प्रारूप के बारे में मीडिया को बताया और कहा कि नागरिकता संशोधन अधिनियम की खिलाफत कर रहे जामिया मिल्लिया इस्लामिया के छात्रों पर जब अत्याचार हुए तो वह उस पुलिस कार्यवाही के खिलाफ आवाज़ बुलंद करने के लिए कालिंदी कुंज रोड के एक हिस्से में आ बैठ गई। फिर धीरे धीरे उन्हें सरकार के खिलाफ लड़ता देख दूसरे लोग भी उनसे जुड़ते चले गए। वे दिन रात कड़कड़ाती ठंड में भी प्रदर्शन करती एवं निर्धारित स्थान पर बैठी रहती। जब ऊनके प्रदर्शन की गूंज सरकार के कानों पर पड़ने लगी तो कुछ भले लोगों ने तिरपाल और थोड़े बहुत खाने पीने की भी व्यवस्था वहां कर दी। इतनी उम्र में भी ऐसे बुलंद हौसले देखते हुए लोगों ने उन्हें मसीहा मान लिया और वो हज़ारों की आवाज़ बन गई।

दादी कहती है के वह धर्मनिरपेक्ष पद्दति की है एवं कभी भी इस आंदोलन से जुड़ी नहीं रही। लेकिन जन उन्हें लगा कि उनके बच्चों का हक मारा जा रहा है तो वे प्रदर्शन करने सड़कों पर उतरी और अपनी आवाज़ बुलंद की।

उन्होंने यह भी कहा कि उनकी लड़ाई किसी व्यक्ति के खिलाफ नहीं है बल्कि उनकी लड़ाई पर इतनी सी है कि आने वाली पीढ़ी का जीवन इस देश में सुगम बने और बेहतर बने। उन्होंने यह भी कहा कि अगर प्रधानमंत्री मोदी उन्हें भेंट करने बुलाएंगे तो वे जरूर जाएंगी।