भारत में हुई शंघाई सहयोग परिषद (एससीओ) की बैठक में आए पाकिस्तान के विदेश मंत्री बिलावल भुट्टो जरदारी आतंकवाद के मुद्दे पर ऐसा कुछ नहीं कह पाए, जिससे लगे कि उनका देश भारत के साथ बातचीत के लिए सही मायनों में इच्छुक है। ऊपर से उन्होंने कश्मीर और वहां धारा 370 हटाने का मुद्दा और उठा दिया।

ये मुद्दे पाकिस्तानी की सियासी मजबूरी हैं, लेकिन एससीओ के अंतरराष्ट्रीय मंच पर उन्होंने अच्छा- खासा एक मौका गंवा दिया। एससीओ की बैठक में चीन समेत सभी देशों के विदेश मंत्रियों के साथ भारतीय विदेश मंत्री एस जयशंकर ने द्विपक्षीय वार्ताएं कीं। चीनी मंत्री से बातचीत में उन्होंने सीमा विवाद को लेकर खुलकर मुद्दे उठाए।

कैसे गंवाया मौका

भारत और पाकिस्तान के बीच बीते कुछ सालों से रिश्ते तनावपूर्ण रहे हैं और पिछले 12 साल में यह पहला मौका था कि पाकिस्तान का कोई विदेश मंत्री भारत आया। एससीओ की बैठक के बाद दोनों मुल्कों के विदेश मंत्रियों के तीखे बयान सामने आए। जाहिर है, दोनों के बीच रिश्तों में जारी तनाव अभी तक कम नहीं हुआ है और हालात बेहतर होने की सूरत को लेकर भी संदेह जताया जा रहा है।

बीते साल दिसंबर में बिलावल ने संयुक्त राष्ट्र में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के बारे में विवादित बयान दिया था, जिसके बाद उनकी काफी आलोचना हुई थी। घाटी में आतंकवादी घटनाओं में कमी नहीं आई है और भारत मांग करता रहा है कि इस तरह की घटनाओं में कमी आने के बाद ही बातचीत की संभावना बन सकती है।

ऊपर से पाकिस्तान का यह आधिकारिक रवैया कि भारत सरकार को जम्मू कश्मीर से अनुच्छेद 370 को हटाए जाने का फैसला पलटना चाहिए। भारत पहले ही स्पष्ट कर चुका है कि कश्मीर हमारा आंतरिक मामला है। ऐसे में अनुच्छेद 370 का मुद्दा उठाने के पीछे पाकिस्तान की मंशा समझी जा सकती है। जम्मू-कश्मीर में भारत सरकार इसी साल के आखिर में चुनाव करवाने तैयारी में है। वहां राजनीतिक प्रक्रिया शुरू की जा रही है। जानकारों की राय में, जाहिर है 370 पर पीछे हटने का सवाल ही नहीं है।

राजनीतिक हालात

जानकारों की राय में दोनों ही मुल्कों के राजनीतिक हालात कुछ ऐसे हैं कि दोनों अभी एकदूसरे से न तो बातचीत करना चाहेंगे और न ही उलझना चाहेंगे। भारत में एक के बाद एक कई विधानसभा चुनाव होने हैं। कर्नाटक के बाद तेलंगाना, राजस्थान, छत्तीसगढ़ और मध्य प्रदेश में विधानसभा चुनाव हैं। इसके बाद अगले साल लोकसभा चुनाव होने हैं।

दूसरी ओर, पाकिस्तान आर्थिक परेशानी से तो जूझ ही रहा है, उसके सामने राजनीतिक अस्थिरता का संकट भी है। पाकिस्तान की मौजूदा सरकार का कार्यकाल इस साल अगस्त तक खत्म होना है। भारत वर्ष 2004 में हुए इस्लामाबाद घोषणा पर कायम है, जिसके अनुसार दोनों पक्ष आतंकवाद के लिए अपनी जमीन का इस्तेमाल नहीं होने देंगे।

पाकिस्तान के तत्कालीन प्रधानमंत्री नवाज शरीफ वर्ष 2014 में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के शपथग्रहण समारोह में भारत आए थे। उनके दौरे के बाद दिसंबर 2015 में प्रधानमंत्री मोदी अचानक उनसे मुलाकात करने लाहौर पहुंचे थे। इसके बाद से दोनों मुल्कों के बीच रिश्ते लगातार बिगड़ते गए। अगस्त 2016 में जम्मू कश्मीर के उरी में सैन्य शिविर पर हमला हुआ।

उसी साल सितंबर में भारत ने पाकिस्तान के कब्जे वाले कश्मीर में आतंकी ठिकानों पर लक्षित हमले किए। सितंबर 2018 में इमरान खान पाकिस्तान के प्रधानमंत्री बने। इमरान और प्रधानमंत्री मोदी के बीच मुलाकात को लेकर चर्चा चल रही थी, लेकिन इस बीच जम्मू कश्मीर में आतंक की घटनाओं में इजाफा हुआ।

लकीर के फकीर

इन हालात में भारत आए बिलावल ने कोई ऐसी बात नहीं कही, जिससे लगे कि वे विश्वास बहाली के लिए यहां आए हैं। उनका एक बयान गौरतलब है, ‘हर मुसलमान आतंकवादी नहीं होता। मुझे लगता है कि यह जिम्मेदारी भारत की है कि वो ऐसा माहौल बनाए जिसमें बातचीत हो सके, नहीं तो दोनों मुल्क आतंक का शिकार होते रहेंगे।’ एससीओ की बैठक खत्म होने के बाद मीडिया वार्ता में जयशंकर ने भारत का सधा हुआ रुख प्रस्तुत करते हुए कहा, ‘पाकिस्तानी विदेश मंत्री ने जो मुद्दे उठाए उनका उत्तर दिया गया है।

तथाकथित चीन-पाकिस्तान आर्थिक गलियारे के बारे में बैठक में यह स्पष्ट किया गया है कि विकास के लिए संपर्क अच्छी बात है लेकिन किसी की संप्रभुता का उल्लंघन नहीं होना चाहिए। यही भारत का पक्ष रहा है और इस पर किसी को संशय नहीं होना चाहिए। आतंकवाद के मसले पर पाकिस्तान की विश्वसनीयता खत्म हो चुकी है, यह जयशंकर के बयान से स्पष्ट है।

तब और अब

बारह साल पहले जब हिना रब्बानी खार अपने भारतीय समकक्ष एसएम कृष्णा से दिल्ली में मिली थीं तब परिस्थितियां अलग थीं। तब भारत और पाकिस्तान रिश्तों में एक सीमित गर्माहट महसूस कर रहे थे, और व्यापार को बढ़ावा देने की कोशिश कर रहे थे। तब अमेरिका के साथ पाकिस्तान के रिश्ते संकट में थे

वर्ष 2019 में कश्मीर में भारतीय सैनिकों पर हमले के बाद भारत ने लक्षित हमले किए थे। तब के हालात को लेकर अमेरिका के पूर्व विदेश मंत्री माइक पोम्पियो दावा करते हैं कि इन हमलों के बाद भारत और पाकिस्तान परमाणु युद्ध करने के करीब आ गए थे। वर्ष 2021 में सीमा पर नए युद्धविराम समझौते से हालात नियंत्रण में हैं।

क्या कहते हैं जानकार

भारत और पाकिस्तान दोनों शंघाई सहयोग परिषद (एससीओ) को काफी महत्त्व देते हैं। पाकिस्तान के सम्मेलन में भाग न लेने से उसके एक ऐसे संगठन से अलग-थलग होने का खतरा बढ़ जाएगा जो उसके हितों को मजबूती से अपनाता है। बिलावल की ताजा यात्रा बड़े द्विपक्षीय संदर्भ में बेहद महत्त्वहीन है। संबंध पिछले दो साल से स्थिर हैं, लेकिन संबंधों का स्तर काफी नीचे है।
टीसीए राघवन, पाकिस्तान में भारत के पूर्व उच्चायुक्त

बिलावल भुट्टो भारत तो आए, लेकिन द्विपक्षीय मोर्चे पर किसी कूटनीतिक पहल के मामले में उनके हाथ पीछे बंधे हुए थे। पाकिस्तान की घरेलू राजनीति ने उन्हें किसी बड़े रास्ते पर नहीं चलने दिया। इसके बाद भी यह सच है कि उनका सम्मेलन के लिए भारत आना अहम है। जयशंकर के साथ शिष्टाचार की एक बातचीत भी भविष्य के लिए जमीन तैयार कर सकती थी।
अजय बिसारिया,पाकिस्तान में भारत के पूर्व उच्चायुक्त