15 फरवरी का दिन मुंगेर के तारापुर के लिए ऐतिहासिक है। यह दिन यहां के शूरवीरों की शौर्य गाथा को याद करने का दिन है। अरसे बाद बिहार सरकार अब चेती है जब प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने इसी साल 31 जनवरी को मन की बात कार्यक्रम में तारापुर गोलीकांड का जिक्र किया। तब पूरा राष्ट्र अंग्रेजों की जुल्म की दास्तां से अवगत हुआ। तारापुर थाना परिसर के सामने शहीदों की याद में बने स्मारक का मुख्यमंत्री नीतीश कुमार 15 फरवरी को उदघाटन करने का कार्यक्रम है।

दरअसल 13 अप्रैल 1919 को हुए जालियांवाला बाग कांड से तो लोग वाकिफ हैं लेकिन 15 फरवरी 1932 को तारापुर में घटित इस घटना से लोग अवगत नहीं हैं, क्योंकि इसका जिक्र राष्ट्रीय स्तर पर उस तरह से नहीं हुआ। जबकि तारापुर के सैकड़ों युवकों के बलिदानी जत्थे ने ब्रिटिश हुकूमत के पुलिस थाने पर लगे ब्रिटिश यूनियन जैक को उतार तिरंगे को फहरा दिया था। फिलहाल तारापुर थाना उसी स्थल पर है, जिसे स्मारक के प्रतीक के रूप में विकसित किया जा रहा है।

हालांकि थाने पर झंडा फहराने में सरकारी अभिलेखों के अनुसार 34 लोगों को अपनी जान गंवानी पड़ी थी, जिसमें से मात्र 13 लोगों की ही शिनाख्त हो पाई। 21 लोगों की पहचान अब भी नहीं हो पाई है, क्योंकि अंग्रेजों ने सबके चेहरे पर काला रंग पोत कर शवों को वाहनों पर लादकर पुलिस थाने से 18 किलोमीटर दूर सुलतानगंज में प्रवाहित हो रही उत्तर वाहिनी गंगा की जलधारा में बहा दिया था।

अंग्रेजी हुकूमत का यह जुल्म ढहाने वाली घटना बेरहमी की मिसाल थी। इस क्रांति में अभिजात्य कुलीन वर्ग से लेकर समाज के अंतिम पायदान पर बैठे तबके की भी सहभागिता थी। सामाजिक समन्वय और समरसता के दम पर अंजाम दी गई इस घटना ने निकट भविष्य में ब्रिटिश शासन के खात्मे का उसी समय संकेत दे दिया था। ब्रिटिश शासन के खिलाफ असंतोष का प्रत्यक्ष प्रभाव अगस्त क्रांति के दौर में उस समय दिखा, जब तारापुर क्षेत्र के सभी सरकारी प्रतिष्ठान स्थानीय क्रांतिकारियों ने अपने कब्जे में लेकर कुछ दिनों के लिए समानांतर सरकार की स्थापना कर दी थी।

वाकई में तारापुर की यह क्रांति स्वतः स्फूर्त, स्वप्रेरित और सामाजिक समन्वय का अतुल्य उदाहरण थी, जो उत्तर में असरगंज के पास ढोलपहाड़ी गांव की पहाड़ियों के शिविर तो दक्षिण में संग्रामपुर प्रखण्ड के सुपौर जमुआ से निर्देशित होती थी। क्षेत्र में वर्तमान मुंगेर,भागलपुर, बांका,जमुई तथा झारखंड के देवघर जिले तक क्रांतिकारियों के समूह फैले हुए थे। महाभारत काल में जिस अंगराज कर्ण ने परिणाम को जानते हुए भी अपना कवच कुंडल दान कर दिया था, उसी दानवीर कर्ण की धरती के वीर सपूत स्वतंत्रता की बलिवेदी पर अपने प्राणों की आहुति देने को तत्पर होकर निकले थे। आजादी के दीवाने जांबाज करतल ध्वनि के बीच सामने खड़े अंग्रेजी सिपाहियों से बेपरवाह होकर थाने पर चढ़ बैठे।

सिपाहियों ने लाठियां भांजी तो प्रदर्शनकारियों ने पत्थर बरसाने शुरु कर दिए। जिसमें मौके पर मौजूद कलेक्टर ए.ओ. ली. घायल हो गए। इसके बाद गोली चलाने का आदेश दे दिया गया। लेकिन यह विस्मयकारी है कि कोई भी भागने या पीछे हटने तैयार नहीं था। बल्कि सीने पर गोलियां खाना ज्यादा मुफीद मान रहा था। यही वह जज्बा था जिसके कारण एक क्रांतिकारी मदन गोपाल सिंह अंततः तिरंगे को थाना भवन पर फहराने में कामयाब रहे।

4 अप्रैल 1932 को कांग्रेस के अखिल भारतीय अधिवेशन में तारापुर के अमर शहीदों को श्रद्धांजलि अर्पित की गई और यह प्रस्ताव पारित किया गया कि सम्पूर्ण भारत में प्रत्येक वर्ष 15 फरवरी को तारापुर शहीद दिवस का आयोजन किया जाएगा। 1932 से 1947 तक यह सिलसिला जारी भी रहा। लेकिन आजादी के बाद ही शहीदों की स्मृति पर इंतजार की परत चढ़नी शुरू हो गईं। इलाके के बुजुर्गों से पता चलता है कि बिहार के प्रथम मुख्यमंत्री श्री कृष्ण सिंह का ताल्लुक मुंगेर जिले से ही था, जिसके कारण पटना में 15 अगस्त 1947 को शहीद स्मारक की आधारशिला रखे जाने के बाद उम्मीद थी कि तारापुर की शहादत को सम्मान देने के लिए इस क्षेत्र में भी शहीद स्मारक बनेगा। लेकिन कोई सार्थक परिणाम नहीं दिखा।

साल 1984 में तत्कालीन मुख्यमंत्री चंद्रशेखर सिंह ने तारापुर थाना भवन के सामने शहीद स्मारक बनवाया गया। क्षेत्र के विधायक और पूर्व कैबिनेट मंत्री रहे शकुनी चौधरी के प्रयासों से इस शहीद स्मारक के आगे तिराहे पर एक प्रतिमा स्थल का शिलान्यास और विधायक निधि की धनराशि से प्रतिमा स्तंभ का निर्माण संभव हो पाया।

मुख्यमंत्री नीतीश कुमार से उम्मीद ज्यादा जगी है। यहां शहीद पार्क बनने और शहीद स्मारक भवन में शहीदों की प्रतिमा बनकर तैयार है। यह निर्माण कार्य भवन निर्माण विभाग करवाया है, जिसपर 1.46 करोड़ रुपए की लागत आने का अनुमान है। उधर, यहां के लोग केवल स्मारक बना देने से ही संतुष्ट नहीं है। वो चाहते हैं कि 15 फरवरी 1932 को हुए तारापुर गोलीकांड के शहीदों और शहादत की घटना को उचित सम्मान मिले। इस सिलसिले में भाजपा के पूर्व अध्यक्ष दिलीप कुमार रंजन ने मुख्यमंत्री को पत्र लिखा है।