Bihar Politics: बिहार में विधानसभा चुनाव के पहले वोटर लिस्ट के गहन पुनरीक्षण को लेकर राजनीतिक सरगर्मी बढ़ गई है। इस बीच कांग्रेस के वरिष्ठ नेता और सुप्रीम कोर्ट के वकील अभिषेक मनु सिंघवी ने कुछ अहम चिंताओं को रेखांकित किया। कोर्ट में बहस के दौरान इंडिया गठबंधन की ओर से पेश सिंघवी ने चुनाव आयोग के कदम की आलोचना की थी और इसे कानूनी तौर पर संवैधानिक रूप से संदिग्ध बताया है।

इस मुद्दे पर कांग्रेस नेता अभिषेक मनु सिंघवी ने एक प्रेस कॉन्फ्रेंस की। इसमें उन्होंने कहा कि चुनाव आयोग ने घोषणा की है कि वह 2003 से पहले मतदाता सूची में शामिल लोगों के नाम नहीं बदलेगा। हालांकि, 2003 के बाद जोड़े गए नामों को ‘संदिग्ध मतदाता’ के रूप में वर्गीकृत किया जाएगा। कांग्रेस नेता सिंघवी ने इसे पहली बड़ी आपत्ति बताते हुए कहा कि लोगों को अपनी नागरिकता साबित करनी होगी, ऐसा न करने पर उनके नाम हटा दिए जाएंगे, भले ही वे वर्षों से मतदाता सूची में हों।

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कांग्रेस नेता ने कौन-कौन से उठाए मुद्दे?

अभिषेक मनु सिंघवी ने कहा है कि नागरिकता साबित करने की जिम्मेदारी जनता की है, चुनाव आयोग की नहीं। सिंघवी का दूसरा बिंदु 2003 के बाद के मतदाताओं को तीन श्रेणियों में वर्गीकृत करने पर केंद्रित था, जिनमें से प्रत्येक के लिए अलग-अलग दस्तावेज़ आवश्यकताएंहैं। पहला, व्यक्तियों को अपना जन्म प्रमाण पत्र स्वयं प्रस्तुत करना होगा। दूसरा, उन्हें अपना या अपने माता-पिता का जन्म प्रमाण पत्र प्रस्तुत करना होगा। तीसरा, उन्हें अपना और अपने माता-पिता दोनों का जन्म प्रमाण पत्र प्रस्तुत करना होगा।

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‘नागरिकता की जांच कर रहा चुनाव आयोग’

अभिषेक मनु सिंघवी ने कहा है कि यदि कोई व्यक्ति इन मानदंडों को पूरा करने में विफल रहता है, तो उसे सूची से हटा दिया जाएगा। तीसरे बिंदु को लेकर सिंघवी ने जोर देकर कहा कि यह पूरी प्रक्रिया बिना किसी कानूनी संशोधन के एक प्रशासनिक आदेश के माध्यम से संचालित की जा रही है। उन्होंने कहा कि चुनाव आयोग नागरिकता की जांच कर रहा है – यह एक ऐसी शक्ति है जो कानून के तहत उसके पास नहीं है।

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सुप्रीम कोर्ट के फैसले का किया जिक्र

कांग्रेस का चौथा मुद्दा उठाते हुए सुप्रीम कोर्ट के एक पुराने फैसले का जिक्र किया। इसमें दो प्रकार के मतदाताओं के बीच अंतर किया गया है। एक वे जो नए सिरे से मतदाता सूची में शामिल होना चाहते हैं और दूसरे वे जो वर्षों से मतदाता सूची में हैं। सिंघवी ने कहा कि अदालत ने फैसला सुनाया था कि सूची में पहले से मौजूद नामों को उचित न्यायिक प्रक्रिया के बिना हटाया नहीं जा सकता। फिर भी बिहार में चुनाव आयोग एक प्रशासनिक आदेश के ज़रिए इस सुरक्षा उपाय को दरकिनार कर रहा है, और वह भी जल्दबाज़ी में।

वोटर्स के नाम काटने की चिंता

इसके अलावा अभिषेक मनु सिंघवी ने प्रभावित मतदाताओं की विशाल संख्या पर चिंता जताई है। उन्होंने कहा है कि करीब 5 करोड़ मतदाताओं को ‘संदिग्ध’ के रूप में चिह्नित किया गया है। अगर बिहार के 8 करोड़ मतदाताओं में से 2 करोड़ को भी मतदान करने से रोक दिया जाए, तो फिर स्वतंत्र और निष्पक्ष चुनाव कैसे हो सकते हैं? उन्होंने चेतावनी दी कि ऐसी प्रक्रिया लोकतंत्र के मूल सिद्धांतों को कमजोर करती है। उन्होंने कहा कि समान अवसर स्वतंत्र चुनावों की नींव हैं। यह प्रक्रिया न केवल खतरनाक है, बल्कि विचित्र भी है। यह हमारे संविधान के मूल ढांचे के लिए ख़तरा है।

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