बिहार में एक बार फिर से मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने बीजेपी के साथ सरकार बनाई है। नीतीश कुमार ने मुख्यमंत्री पद की शपथ ली। वहीं भाजपा की ओर से विजय सिन्हा और सम्राट चौधरी ने डिप्टी सीएम पद की शपथ ली। लेकिन इस बार पाला बदलने पर नीतीश कुमार पर काफी सवाल उठा रहे हैं।

सवाल बीजेपी को लेकर भी उठ रहे हैं। बीजेपी ने नीतीश कुमार को तो समर्थन दे दिया लेकिन क्या बिहार में उसकी ये बड़ी गलती भी हो सकती है। ऐसा इसलिए क्योंकि बीजेपी के वरिष्ठ नेता और केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने अपने पिछले बिहार दौरे के दौरान कहा था कि नीतीश कुमार को अब एनडीए में कभी नहीं लेंगे, उनके लिए सारे दरवाजे बंद हो चुके हैं।

पीएम मोदी ने साधा था निशाना

सिर्फ अमित शाह ने ही नहीं बल्कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भी 20 नवंबर को राजस्थान में नीतीश कुमार पर निशाना साधा था। नीतीश कुमार ने विधानसभा में महिलाओं को लेकर एक आपत्तिजनक बयान दे दिया था और उसके बाद पीएम मोदी ने उन पर निशाना साधा था। पीएम मोदी ने कहा था कि जब से महिलाओं को आरक्षण देने वाला कानून नारीशक्ति वंदन अधिनियम आया है, उसके बाद से तो नीतीश कुमार ने महिलाओं के विरुद्ध अभियान छेड़ दिया है। पीएम मोदी ने नीतीश कुमार का नाम तो नहीं लिया था लेकिन उन्होंने कहा था कि बिहार के मुख्यमंत्री ने महिलाओं के प्रति घोर अपमानजनक शब्दों का प्रयोग किया है।

अमित शाह ने भी साधा था निशाना

अमित शाह ने भी 5 नवंबर को बिहार का दौरा किया था और उन्होंने नीतीश कुमार पर जमकर निशाना साधा था। अमित शाह ने कहा था कि बिहार को पलटूराम से मुक्त करना है। अमित शाह ने नीतीश कुमार का नाम तो नहीं लिया था लेकिन उन्हें पलटूराम कहकर संबोधित किया था। अमित शाह ने नीतीश कुमार पर जनादेश का अपमान करने का आरोप लगाया था।

सारे दरवाजे बंद तो अचानक क्या मजबूरी आ गई?

इसके पहले भी बिहार के पूर्व उपमुख्यमंत्री और राज्यसभा सांसद सुशील मोदी कई बार कह चुके थे कि नीतीश कुमार के लिए सारे दरवाजे बंद हो चुके हैं। ऐसे में अब बड़ा सवाल उठ रहा है कि नीतीश कुमार तो कई बार पाला बदल चुके हैं लेकिन जिस प्रकार से भाजपा उनके लिए सारे दरवाजे बंद करके बैठी थी, अचानक ऐसी क्या बात आ गई कि दरवाजे खोलने पड़े।

कहीं बीजेपी की साख पर न लग जाए बट्टा

नीतीश कुमार इससे पहले 2013 में एनडीए छोड़कर गए थे। उसके बाद 2017 में उन्होंने वापसी की थी और कहा था कि अब हम यहीं पर रहेंगे और कहीं नहीं जाएंगे। 2020 का चुनाव भी साथ लड़ा। लेकिन 2022 में वह एनडीए छोड़कर आरजेडी के साथ चले गए और बीजेपी पर पार्टी को तोड़ने का आरोप लगाया था। आरजेडी के साथ जाने के बाद नीतीश कुमार ने कहा था कि अब हम मर जाएंगे लेकिन बीजेपी के साथ गठबंधन नहीं करेंगे। लेकिन अब नीतीश कुमार फिर से बीजेपी के साथ है। ऐसे में बीजेपी का एक बार फिर से नीतीश कुमार को समर्थन देने का फैसला कहीं पार्टी की साख पर बट्टा ना लगा दे।

अब इससे एक परसेप्शन जाएगा कि पहले बीजेपी को नीतीश ने धोखा दिया और अब एक बार फिर से जरूरत पड़ने पर बीजेपी और नीतीश एक साथ आ गए। लेकिन अब जनता में मैसेज जा रहा है कि नीतीश तो पलटी मार ही सकते हैं लेकिन बीजेपी के उसूल का क्या? वर्तमान स्थिति में तो ऐसा लग रहा है कि सत्ता में काबिज होने के लिए सभी सिद्धांतों को बीजेपी ताक पर रख सकती है। ये नेरेटिव पार्टी के लिए ज्यादा बड़ी चुनौती इसलिए भी है क्योंकि विपक्ष पहले से ही ऐसे कुछ दूसरे मुद्दों के जरिए पार्टी को घेरने का काम कर रहे हैं।

पिछले कई सालों से विपक्ष लगातार कह रहा है कि बीजेपी एक वॉशिंग मशीन पार्टी है जहां पर जो भी दागी जाता है, वो एकदम साफ हो जाता है। अजित पवार की जब एनडीए में एंट्री हुई, ये कहा गया, शिंदे साथ आए, तभी यही ताना रहा। अभी तक पार्टी इस नेरेटिव का एक ठोस जवाब नहीं ढूंढ पाई है, उस बीच बिहार में लिया फैसला उसे एक और धर्मसंकट में डालने का काम कर रहा है। तो सवाल उठना तो लाजिमी है कि नीतीश को दिया ये समर्थन शाह-नड्डा की सियासी साख पर बट्टा ना लगा दे?