बिहार में नीतीश कुमार के नेतृत्व में चल रही बीजेपी-जेडीयू की सरकार ने अपनी कैबिनेट का विस्तार किया है। कैबिनेट का यह विस्तार इसलिए ज्यादा अहम है क्योंकि बिहार में इस साल अक्टूबर-नवंबर में विधानसभा के चुनाव होने हैं। इसलिए कैबिनेट विस्तार के जरिए बीजेपी और जेडीयू ने एक स्पष्ट राजनीतिक संदेश देने की कोशिश की है। सबसे बड़ा सवाल यह है कि क्या इस कैबिनेट विस्तार का कोई असर विधानसभा चुनाव में होगा और इससे राज्य में आरजेडी की अगुवाई वाले विपक्षी महागठबंधन को कितनी चुनौती मिलेगी?

बिहार के विधानसभा चुनाव को लेकर एक बात पूरी तरह साफ है कि 2020 की ही तरह इस बार भी एनडीए और महागठबंधन के बीच जोरदार और कड़ी लड़ाई होने जा रही है।

नीतीश सरकार में शामिल होने वाले सात मंत्री- संजय सरावगी (दरभंगा), सुनील कुमार (बिहार शरीफ), जीवेश मिश्रा (जाले), राजू सिंह (साहेबगंज), मोती लाल प्रसाद (रीगा), कृष्ण कुमार मंटू (अमनौर) और विजय मंडल (सिकटी) हैं।

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जातीय समीकरणों का रखा ध्यान

निश्चित रूप से बिहार में कैबिनेट का यह विस्तार विधानसभा चुनाव को ध्यान में रखते हुए ही हो रहा है। बिहार की एनडीए सरकार में बीजेपी सबसे बड़ी पार्टी है। बीजेपी के पास राज्य में 80 और जेडीयू के पास 44 विधायक हैं। केंद्रीय मंत्री जीतनराम मांझी की पार्टी हिंदुस्तानी अवाम मोर्चा (सेक्युलर) के चार विधायक हैं। केंद्रीय मंत्री चिराग पासवान की पार्टी लोजपा (रामविलास) भी एनडीए गठबंधन में शामिल है।

जातियों की सियासत के लिए पहचाने जाने वाले बिहार में कैबिनेट का यह विस्तार भी जातियों को ध्यान में रखकर ही किया गया है। नीतीश कुमार की कैबिनेट में नए आने वाले सभी सात मंत्री बीजेपी से हैं और जेडीयू को इसमें कोई जगह नहीं मिली है।

नए बने मंत्रीजाति समुदाय
राजू सिंह राजपूत
कृष्ण कुमार मंटूकुर्मी
विजय मंडलकेवट
जीवेश मिश्राभूमिहार
डॉ. सुनील कुमारकुशवाहा
मोतीलाल प्रसाद तेली
संजय सरावगीवैश्य

कैबिनेट के विस्तार के साथ ही बिहार के मंत्रिमंडल में अब कोई जगह रिक्त नहीं है।

बिहार में किस समुदाय की कितनी आबादी।

बिहार में सबसे बड़ी जाति यादव है। इस समुदाय की कुल आबादी 14.26% है। बिहार की कुल आबादी में मुस्लिम समुदाय की आबादी 17.70% है। 

2005 से सीएम बने हुए हैं नीतीश

2005 के बाद से ही मुख्यमंत्री नीतीश कुमार बिहार की सियासत की धुरी बने हुए हैं। नीतीश कुमार चाहे महागठबंधन के साथ रहे या फिर बीजेपी की अगुवाई वाले एनडीए के साथ, वह जिस तरफ रहे हैं, उसी गठबंधन की सरकार बिहार में बनती रही है। पिछले कुछ दिनों में इस तरह की चर्चाओं को फिर से हवा मिली कि नीतीश कुमार पाल बदल सकते हैं। लेकिन नीतीश ने इस तरह की चर्चाओं को पूरी तरह बेबुनियाद बताया और सिरे से खारिज कर दिया। नीतीश ने बार-बार कहा है कि वह अब इधर-उधर नहीं जाएंगे और एनडीए के साथ ही बने रहेंगे।

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मोदी ने बताया था नीतीश को लाडला

2 दिन पहले ही प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी भागलपुर पहुंचे थे और वहां उन्होंने नीतीश कुमार को बिहार की जनता का लाडला बताया था। इसका स्पष्ट संदेश है कि बीजेपी और जेडीयू पूरी एकजुटता के साथ चुनाव लड़ने जा रहे हैं। बीजेपी के राष्ट्रीय अध्यक्ष जेपी नड्डा भी दो दिन के बिहार प्रवास पर आए और यहां उन्होंने मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के साथ ही बिहार बीजेपी के सभी बड़े नेताओं से मुलाकात कर पार्टी को एकजुटता के साथ चुनाव लड़ने का निर्देश दिया।

नीतीश के नेतृत्व में चुनाव लड़ेगा एनडीए

कैबिनेट के विस्तार से यह साफ हो गया है कि बीजेपी और जेडीयू की आपसी समझ बेहतर हुई है क्योंकि मुख्यमंत्री नीतीश कुमार इस बात पर राजी हुए हैं कि सभी मंत्री भाजपा के कोटे के बनेंगे जबकि बीजेपी ने भी बड़ा मन दिखाते हुए यह साफ संदेश दिया है कि विधानसभा के चुनाव में एनडीए की ओर से नीतीश कुमार ही मुख्यमंत्री का चेहरा होंगे।

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सीएम पद के लिए छटपटा रही आरजेडी

1990 से 2005 तक बिहार में अपने दम पर सरकार चलाने वाला राष्ट्रीय जनता दल (आरजेडी) राज्य में विपक्षी महागठबंधन की अगुवाई कर रहा है लेकिन तब से आरजेडी को मुख्यमंत्री का पद नहीं मिल सका है। हालांकि नीतीश कुमार के पाला बदलने की वजह से तेजस्वी यादव दो बार उप मुख्यमंत्री बन चुके हैं।

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भागलपुर की जनसभा में सीधे लालू प्रसाद यादव पर हमला बोला था। उन्होंने लालू प्रसाद यादव के हाल ही में महाकुंभ को फालतू बताने वाले बयान को लेकर उन्हें निशाने पर लिया था और कहा था कि राम मंदिर से चिढ़ने वाले लोग आज कुंभ को कोस रहे हैं। उन्होंने आरजेडी के शासनकाल को जंगलराज बताते हुए भी लालू को घेरा था। आरजेडी के साथ कांग्रेस, भाकपा, माकपा और भाकपा (माले) हैं।

देखना होगा कि बिहार के विधानसभा चुनाव में एनडीए को इस कैबिनेट विस्तार से कितना फायदा मिलता है।

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