Jan Suraaj party Bihar by election 2024: बिहार में चार सीटों के लिए हुए विधानसभा उपचुनाव में आरजेडी, जेडीयू, बीजेपी के प्रदर्शन के अलावा नजर इस बात पर भी थी कि चुनाव रणनीतिकार प्रशांत किशोर की जन सुराज पार्टी इस उपचुनाव में कैसा प्रदर्शन करती है। उपचुनाव के नतीजे प्रशांत किशोर के लिए बेहद खराब रहे और चारों ही सीटों पर ना तो पार्टी का कोई उम्मीदवार चुनाव जीता और ना ही दूसरे नंबर पर रहा।

बिहार में बेलागंज, रामगढ़, इमामगंज (आरक्षित) और तरारी सीट पर उपचुनाव हुए और चारों ही सीटों पर एनडीए को जीत मिली।

अगले साल होने हैं विधानसभा चुनाव

बिहार में अगले साल नवंबर में विधानसभा के चुनाव होने हैं और उससे पहले इस उपचुनाव को सेमीफाइनल माना जा रहा था। बिहार में सरकार चला रहे एनडीए गठबंधन की ओर से बीजेपी ने दो सीटों पर, जेडीयू और हिंदुस्तानी अवाम मोर्चा (सेकुलर) ने एक-एक सीट पर उम्मीदवार उतारा था। विपक्षी महागठबंधन की ओर से तीन सीटों पर आरजेडी के और एक सीट पर भाकपा (माले) का प्रत्याशी चुनाव लड़ रहा था। इन चार सीटों पर कुल 38 प्रत्याशी चुनाव मैदान में थे।

प्रत्याशियों को कितने वोट मिले?

बेलागंज में जनसुराज पार्टी के उम्मीदवार मोहम्मद अमजद को 17,285 वोट मिले। इमामगंज में जितेंद्र पासवान को 37,103 वोट मिले। रामगढ़ में सुशील कुमार सिंह को केवल 6513 वोट और तरारी में किरण देवी को केवल 5622 वोट मिले।

लोगों ने नहीं किया पीके की बातों पर भरोसा

प्रशांत किशोर ने कुछ साल में पूरे बिहार का दौरा किया है और उन्होंने पूरी तैयारी के साथ उपचुनाव लड़ा था। प्रशांत किशोर ने बिहार के उपचुनाव में लोगों से अपील की थी कि वे जात और भात (राशन) पर वोट ना दें। उन्होंने एक रैली में कहा था कि वह बिहार को जात और भात के नाम पर होने वाले मतदान के कुचक्र से बाहर निकालना चाहते हैं। प्रशांत किशोर उर्फ पीके का कहना था कि लालू प्रसाद और नीतीश कुमार ने बिहार को 35 साल तक जात के दलदल में धकेले रखा और अब पिछले 10 साल से प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी 5 किलो भात (राशन) देते हुए आपको ठग रहे हैं। अगर आप अपने और अपने बच्चों के लिए बेहतर भविष्य चाहते हैं तो आपको जात और भात के नाम पर वोट देना बंद कर देना चाहिए।

प्रशांत किशोर दो साल तक जन सुराज यात्रा के जरिए बिहार के गांवों, गलियों, खेतों-खलिहानों, शहरों-कस्बों की खाक छान चुके हैं।

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प्रशांत किशोर ने जन सुराज यात्रा के दौरान बिहार की बदहाली को मुद्दा बनाया था। उन्होंने लोगों से कहा था कि बिहार के राजनीतिक दलों और नेताओं ने यहां की जनता का नहीं बल्कि अपने परिवारों का भला किया और अपनी सियासी महत्वाकांक्षाओं को पूरा किया। लेकिन उपचुनाव के नतीजों को देखकर ऐसा लगता है कि बिहार में लोगों ने उनकी बातों पर बहुत ज्यादा भरोसा नहीं किया है।

आसान नहीं पीके की राह?

बिहार में पिछले 35 सालों से आरजेडी और जेडीयू का दबदबा रहा है। आरजेडी ने लगातार 15 साल तक शासन किया तो जेडीयू ने कभी बीजेपी के साथ मिलकर और कभी आरजेडी के साथ मिलकर राज्य में सरकार चलाई। इसके अलावा बीजेपी भी राज्य में बड़ी राजनीतिक ताकत है। ऐसे में बिहार की बेहद कठिन सियासी पिच पर बैटिंग कर पाना प्रशांत किशोर के लिए आसान नहीं होगा। उपचुनाव के नतीजे भी उनके लिए अच्छे नहीं रहे हैं।

प्रशांत किशोर ऐलान कर चुके हैं कि उनकी पार्टी बिहार की सभी 243 सीटों पर चुनाव लड़ेगी। प्रशांत किशोर ने पिछले 2 सालों में आरजेडी के कोर वोट बैंक माने जाने वाले मुस्लिमों और यादवों को साधने की कोशिश की है। उन्होंने ऐलान किया था कि उनकी पार्टी बिहार में मुस्लिम समुदाय के 40 और महिलाओं और अति पिछड़ी जातियों (ईबीसी) के 70 प्रत्याशियों को टिकट देगी।

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कई राजनीतिक दलों के लिए चुनावी रणनीति बना चुके प्रशांत किशोर उर्फ पीके ने कहा है कि वह अगले साल होने वाले बिहार विधानसभा के चुनाव को पूरे दमखम के साथ लड़ेंगे। इस उपचुनाव के बाद प्रशांत किशोर की विधानसभा चुनाव में बड़ी परीक्षा होनी है। देखना होगा कि प्रशांत किशोर इस परीक्षा में कितने सफल होते हैं?