Bihar Assembly Elections 2025:  चुनाव की दहलीज पर खड़े बिहार से लगातार उन लोगों की कहानियां सामने आ रही हैं, जो वोट तो डालना चाहते हैं लेकिन चुनाव आयोग की ओर से जारी किए गए नए दिशा-निर्देशों को लेकर काफी परेशान हैं। ऐसे ही एक शख्स दरभंगा के रहने वाले मोहम्मद फारूख और उनके भतीजे मोहम्मद दिलनवाज हैं। जब वे दोनों वोटर लिस्ट के वेरिफिकेशन को लेकर गांव के एक सरकारी स्कूल में जाते हैं तो उन्हें निराश होना पड़ता है।

फारूख कहते हैं कि अब तक उनके परिवार के किसी भी सदस्य को नया नामांकन फॉर्म नहीं मिला है और उन्हें यह भी नहीं पता है कि आगे क्या करना है।

फारूख ने कहा, ‘यह लोगों को परेशान करने का एक नया तरीका है…क्या यह एनआरसी नहीं है?’ उनका इशारा नेशनल रजिस्टर ऑफ सिटीजंस (National Register of Citizens) की ओर था।

 चुनाव आयोग ने मांगे हैं 11 डॉक्यूमेंट, एक भी बनवाना आसान नहीं… 

याद दिलाना जरूरी होगा कि साल 2019 में CAA कानून में संशोधन के बाद जब बड़े पैमाने पर विरोध प्रदर्शन हुए तो NRC को सरकार ने ठंडे बस्ते में डाल दिया लेकिन चुनाव आयोग के द्वारा जारी किए गए दिशा-निर्देशों के बाद बिहार में अल्पसंख्यक समुदाय के लोग सवाल उठा रहे हैं कि क्या यह पिछले दरवाजे से लागू की गई NRC है?

11 में से एक भी डॉक्यूमेंट नहीं

ऐसे ही 55 साल के मोहम्मद अकबर कहते हैं कि 2020 से उनका और उनकी पत्नी का नाम वोटर लिस्ट में नहीं है। वह कहते हैं कि चुनाव आयोग के द्वारा जिन 11 डॉक्यूमेंट की बात कही गई है उनमें से कोई भी उनके पास नहीं है और अब उनकी एक मात्र उम्मीद फैमिली रजिस्टर या ‘वंशावली’ है।

मोहम्मद अंसार ड्राइवर हैं उनके पास ड्राइविंग लाइसेंस और आधार कार्ड है। वह सवाल उठाते हैं कि कितने लोग जाति, निवास या फैमिली रजिस्टर के डॉक्यूमेंट तैयार करने के लिए दौड़-भाग कर सकते हैं? मोहम्मद अकबर, अंसार और उनके पड़ोसी मोहम्मद हाफिज को अभी तक नामांकन फॉर्म नहीं मिले हैं।

25 जुलाई तक पूरा होना है काम

बताना होगा कि चुनाव आयोग ने वोटर लिस्ट के वेरिफिकेशन का काम 25 जुलाई तक पूरा करने के लिए कहा है और 1 अगस्त तक वोटर लिस्ट का ड्राफ्ट प्रकाशित किया जाना है। मतदाता सूची का अंतिम प्रकाशन 30 सितंबर को होना है और बिहार में अक्टूबर-नवंबर में विधानसभा के चुनाव होने हैं।

दरभंगा में अभी भी कई लोगों से बूथ लेवल अफसरों (BLO) ने संपर्क नहीं किया है। ऐसी ही एक महिला रिजवाना खातून हैं, उनके पति सऊदी अरब में काम करते हैं। रिजवाना पूछती हैं, ‘जो लोग विदेश में हैं, उनके फार्म का क्या होगा?’

कुछ ऐसे भी लोग हैं जो चुनाव आयोग के दिशा-निर्देशों का समर्थन करते हैं। चतरा गांव में रहने वाले अशोक कुमार यादव कहते हैं, ‘सरकार को डॉक्यूमेंट मांगने का हक है, हमें सुरक्षित रखना उनका काम है, ऐसा नहीं हो सकता कि बिहार में कोई अवैध अप्रवासी ना हो।’

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…डर तो सभी को लगता है

सिमरी गांव के सरकारी स्कूल में शिक्षक मोहम्मद इरशाद कहते हैं, चुनाव आयोग को लोगों को कुछ और वक्त देना चाहिए था। इरशाद कहते हैं, ‘मेरे पास सभी डॉक्यूमेंट हैं, जब NRC की चर्चा थी तब मैंने अपने परिवार के 1965 के पहले के डॉक्यूमेंट ढूंढने शुरू कर दिए थे।’ वह कहते हैं कि डर तो सभी को लगता है।

चुनाव आयोग की ओर से जारी दिशा- निर्देशों के मुताबिक, बिहार में 7.8 करोड़ से ज्यादा मतदाताओं को नए फार्म जमा करने होंगे। ऐसे लोग जिनका नाम 2003 की मतदाता सूची में शामिल है, उन्हें प्रूफ के तौर पर वोटर लिस्ट को दिखाना होगा जबकि अन्य लोगों को बर्थ ऑफ़ डेट या बर्थ ऑफ़ प्लेस साबित करने के लिए 11 डॉक्यूमेंट में से कोई एक देना होगा और इनके जरिये अपनी नागरिकता साबित होगी।

खास बात यह है कि इन 11 डॉक्यूमेंट में आधार कार्ड और राशन कार्ड नहीं हैं और गरीब लोगों के पास डॉक्यूमेंट के नाम पर ज्यादातर ये ही कार्ड होते हैं।

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