Bihar Elections 2020: भागलपुर का परिणाम क्या होगा, यह तो मतगणना के दिन ही साफ होगा, लेकिन हवा का रुख देखकर भाजपा के रणनीतिकारों के माथे पर पसीने आने लगे हैं। सीट हाथ से निकलती देख पार्टी ने बनिया वोटों को साधने के लिए वैश्य नेताओं की फौज उतार दी है। इसको और मजबूत करने के लिए बनिया चेहरा संतोष कुमार को पार्टी का कार्यकारी जिलाध्यक्ष बनाया गया है। आरएसएस पृष्ठभूमि के संतोष पूर्व पार्षद हैं और खुद भी टिकट के लिए कोशिश में जुटे थे। पार्टी ने बांका विधानसभा चुनाव में इन्हें चुनाव प्रभारी बनाया है। इन सबके बावजूद भाजपा के रोहित पांडे की जीत अब भी आसान नहीं है। महागठबंधन के कांग्रेस उम्मीदवार अजित शर्मा से उनकी कांटे की टक्कर मिल रही है। ये दो दफा से भागलपुर के विधायक है। रोहित पांडे पार्टी के जिलाध्यक्ष भी हैं। पार्टी ने इन्हें अध्यक्ष रहते चुनाव मैदान में उतारा है। यह भाजपा की परंपरा के खिलाफ है। इन पर केंद्रीय मंत्री नित्यानंद राय और प्रदेश भाजपा संगठन मंत्री नागेंद्र पांडे की मेहरबानी है।
दरअसल भागलपुर शहरी सीट पर भाजपा ने फिर ब्राह्मण उम्मीदवार उतार दिया है। इसका वैश्य समाज कई बैठकें करके कड़ा विरोध जताया है। पार्टी दलील दे रही है कि ब्राह्मणों के 7 फीसदी वोट हैं तथा कोशी और अंग क्षेत्र में आखिर कहीं तो ब्राह्मण उतारना ही था। इलाके की भागलपुर और सहरसा सीट दो पर ही भाजपा ने ब्राह्मण उम्मीदवार उतारे है। भागलपुर सीट से बीजेपी के अश्विनी चौबे पांच दफा चुनाव जीते है। उनसे पहले कांग्रेस के शिवचंद्र झा दो बार चुनाव जीते चुके है।
वैसे भागलपुर सीट को जातपात में बांटने को लेकर बीजेपी के प्रदेश कार्यसमिति सदस्य और चुनाव में टिकट चाहने वाले अभय वर्मन कहते है कि भागलपुर सीट चाहे लोकसभा की हो या विधानसभा की जातपात से ऊपर है। तभी भागवत झा आजाद चार दफा लोकसभा और बीजेपी के विजय कुमार मित्रा तीन बार विधानसभा में प्रतिनिधित्व कर चुके हैं। जबकि उस वक्त पूरे संसदीय क्षेत्र में ब्राह्मणों की आबादी 50 हजार के आसपास थी। उसी तरह विजय मित्रा राड़ी कायस्थ जाति के थे, इनके मतों की संख्या कुछ हजार ही थी।
भागलपुर से निवर्तमान विधायक अजित शर्मा भूमिहार हैं। इनके मतों की तादाद यहां दस हजार भी नहीं है, फिर भी ये दो दफा से विधायक हैं। वैश्य समाज इस बार खुलकर लामबंदी कर विरोध कर रहा है। इससे बीजेपी प्रत्याशी रोहित पांडे असहज महसूस कर रहे हैं। इनकी जीत सुनिश्चित करने के लिए झारखंड गोड्डा के सांसद निशिकांत दुबे जमे हैं। ये खुलकर वंशवाद का विरोध कर रहे हैं। इनका इशारा केंद्रीय मंत्री अश्विनी चौबे की तरफ है, जिनके बेटे अर्जित सारस्वत चौबे पार्टी में अंदरूनी विरोध की वजह से टिकट नहीं ले सके। वे 2015 का चुनाव हार गए थे। इन्होंने कुल 59856 वोट यानी 39.25 फीसदी मत हासिल किए थे।
यहां तीन नवंबर को मतदान है। भाजपा के बागी बन बनिया समाज के विजय साह फिर इस बार निर्दलीय तौर पर डटे हैं। बीते चुनाव में 15 हजार से ज्यादा वोट लाकर इन्होंने भाजपा उम्मीदवार का खेल बिगाड़ दिया था। दूसरी तरफ लोजपा के राजेश वर्मा हैं तो स्वर्णकार, लेकिन व्यापारी वर्ग के वार्ड 38 के पार्षद और उपमहापौर भी हैं था वह ज्वेलरी व्यापारी के बेटे हैं। लोजपा ने भागलपुर सीट पर भाजपा के सामने उम्मीदवार उतारकर चिराग पासवान के इस दावे को झुठला दिया है कि लोजपा भाजपा के सामने उम्मीदवार नहीं उतारेगी। वैसे राजेश की सुनार जाति के लोग ही खेमों में बंटे हैं। इनके एक धड़े के नेता शिवकुमार कंडेल ने सांसद निशिकांत दुबे को चांदी का कमलफूल भेंट कर भाजपा के प्रति अपनी आस्था जताई है।
इधर, विजय और राजेश का असर कम करने और वैश्यों के विरोध को शांत करने के लिए शनिवार शाम उपमुख्यमंत्री और भाजपा नेता सुशील मोदी ने रोहित पांडे के साथ रोड शो किया। भाजपा एमएलसी राजेन्द्र गुप्ता क्षेत्र में घूम रहे है। मंत्री रामनारायण मंडल (बनिया) भी यहीं डेरा डाले हैं। प्रदेश के कार्यालय प्रभारी सुरेश रूंगटा भागलपुर में जमे हैं। इस बीच झारखंड के पूर्व मुख्यमंत्री रघुबर दास रविवार को यहां पहुंच गए और स्थानीय एक होटल में कई बैठकें कर बनिया वोटरों को मनाने में लगे रहे।
भाजपा के लिए यह सीट निकालने में एक रोड़ा और है। पूर्व उपमहापौर प्रीति शेखर को पार्टी ने निष्काषित कर दिया है। इन पर आरोप है कि इन्होंने अपने पति मृणाल शेखर के लिए बांका के अमरपुर जाकर वोट मांगे हैं। मृणाल शेखर भाजपा छोड़ लोजपा का दामन थाम लिए थे और अमरपुर से लोजपा प्रत्याशी हैं। प्रीति शेखर भी भागलपुर सीट से टिकट चाह रही थी। वे कहती हैं उन्होंने पार्टी के खिलाफ कोई काम नहीं किया है। बोलीं कि पार्टी की दो दशक तक तन-मन-धन से सेवा की, जिसके इनाम के तौर पर मुझे पार्टी से निकाल दिया गया। अपनी नाराजगी को उन्होंने सोशल मीडिया पर भी साझा किया, जिस पर उनके सैकड़ों शुभचिंतकों और पार्टी से जुड़े व्यापारी वर्ग के लोगों ने उनके पक्ष में अपनी प्रतिक्रिया दी। सभी ने उनके साथ नाइंसाफी होने की बात कही।
इससे ऐसा लगता है कि भाजपा उम्मीदवार रोहित पांडे घिर गए है। उनके इर्द गिर्द की चौकड़ी उन्हें वोटरों तक पहुंचने नहीं दे रही है। नतीजतन मतदाताओं की उदासी भी इन्हें झेलनी पड़ सकती है। बड़ी बात यह है कि कोरोना काल में शहरी मध्यवर्गीय मतदाता घर से निकलता नहीं है। अब देखना है कि भाजपा के लिए प्रतिष्ठा बनी भागलपुर सीट साढ़े सात साल बाद उसकी झोली में आती है या कांग्रेस का पंजा उस पर कब्जा जमाए रहता है।

