बंगाल विधानसभा चुनाव को लेकर चुनाव प्रचार जारी है। सभी पार्टियों की तरफ से मतदाताओं को पक्ष में लाने का प्रयास किया जा रहा है। इस चुनाव में सबसे अधिक मुखर लड़ाई मुस्लिम वोट के लिए देखने को मिल रही है। जनगणना 2011 के अनुसार प्रदेश में मुस्लिमों की आबादी 27 प्रतिशत है। लेकिन एक और समुदाय है जो 23.51% आबादी के साथ इस चुनाव में निर्णायक भूमिका में है, वो है एससी समुदाय। प्रदेश में 127 सीटों पर दलित मतदाताओं का प्रभाव देखने को मिलता है।

वामपंथी शासन के दौरान प्रदेश की राजनीति में लंबे समय तक नजर अंदाज किए गए अनुसूचित जाति के मतदाताओं पर पहली नजर बीजेपी की रही, बाद में अब टीएमसी की तरफ से भी एससी वोट को अपनी तरफ लाने का प्रयास जारी है। बंगाल में एससी मतदाताओं की आबादी देश में तीसरे स्थान पर है। राज्य के नौ जिलों में इनकी आबादी 25 प्रतिशत से भी अधिक है। इन नौ जिलों में आने वाले 127 सीटों पर इनका व्यापक प्रभाव रहा है। इसके अलावा, छह जिलों की 78 विधानसभा सीटों पर भी एससी मतदाताओं की 15-25% तक आबादी है। इन 78 सीटों में से पिछले लोकसभा चुनाव के दौरान बीजेपी को 33 सीटों पर बढ़त मिली थी।

इसके अलावा, छह जिलों की 78 विधानसभा सीटों पर भी एससी मतदाताओं की 15-25% तक आबादी है। 78 सीटों में से पिछले लोकसभा चुनाव के दौरान बीजेपी को 33 सीटों पर बढ़त मिली थी। टीएमसी को 34 सीटों पर और लेफ्ट-कांग्रेस गठबंधन को महज तीन सीटों पर बढ़त मिली थी। जिन 33 पर बीजेपी को बढ़त मिली थी उनमें 26 सीट मतुआ समुदाय बहुल है। वहीं अगर इसकी तुलना 2016 के विधानसभा चुनाव से की जाए तो उस चुनाव में बीजेपी को किसी भी सीट पर बढ़त नहीं मिली थी। टीएमसी को 50 सीटों पर और लेफ्ट-कांग्रेस गठबंधन को 10 सीटों पर बढ़त मिली थी।

राजबंशी का भी है प्रभाव: बंगाल की राजनीति में राजबंशी और नामसुद्रों का प्रभाव है। राजबंशी (18.4%) है वहीं नामसुद्रों मतदाता (17.4%) हैं। भाजपा नामसुद्रों (मतुआ के सबसे बड़े समूह ) को लुभाने में लगी है, जिसमें 42 सीटों पर उपस्थिति के साथ लगभग 1.5 करोड़ मतदाता हैं। कुछ ही दिन पहले बंग्लादेश में प्रधानमंत्री ने मटुआ समुदाय के आध्यात्मिक गुरु हरिचंद ठाकुर के जन्मस्थान का दौरा किया था।

बीजेपी ने नागरिकता देने का किया है वादा: मूल रूप से पूर्वी पाकिस्तान के रहने वाले मतुआ समुदाय के लोग बांग्लादेश के निर्माण के बाद भारत आ गए थे। हालांकि, नागरिकता प्राप्त करने के लिए एक बड़ी संख्या अभी बाकी है। बीजेपी उन्हें नागरिकता देने की बात करती रही है। 2019 के चुनाव में बीजेपी को मतुआ समुदाय के लोगों ने जमकर वोट भी दिए थे। ममता बनर्जी सरकार ने अपनी ओर से नामसुद्रों के लिए विकास बोर्ड गठित किए हैं और उत्तर 24 परगना, नादिया, दक्षिण 24 परगना, कोलकाता और कूच बिहार में फैली 244 शरणार्थी कॉलोनियों को मान्यता दिया है। इस विधानसभा चुनाव में, तृणमूल ने कुल 79 एससी उम्मीदवारों को टिकट दिया है।

ममता सरकार ने उत्तर बंगाल में राजबंशियों के लिए नारायणी बटालियन का गठन किया है। बटालियन का नाम कूचबिहार की तत्कालीन रियासत की नारायणी सेना के नाम पर रखा गया था। वहीं अमित शाह ने अब नारायणी सेना CAPF बटालियन बनाने वादा किया है। पश्चिम बंगाल में, राजबंशी कूचबिहार, जलपाईगुड़ी और दार्जिलिंग मालदा, मुर्शी-दबाद (उत्तर बंगाल में 54 सीटें) में कुछ क्षेत्रों पर पकड़ रखते हैं।ममता सरकार के द्वारा ममता सरकार ने राजबंशी के लिए एक अलग विकास बोर्ड भी स्थापित किया गया है, इसके अलावा कुर्मी, कामी और बगदी समुदायों के लिए भी बोर्ड बनाए गए हैं।