गलवान घाटी के इलाके भारत और चीन के बीच सीमा विवाद में नाजुक मुद्दा हैं। उन इलाकों में से अधिकांश में तनाव किस कदर है, वह अब सामने आ गया है। दरअसल, इन इलाकों में भारत की पहल पर सीमा की हदबंदी कराने की कई बार कोशिश हुई, लेकिन चीन मुकर जाता रहा।
20 साल पहले हदबंदी के प्रयासों की शुरुआत की गई थी, लेकिन आधे रास्ते में चीन पीछे हट गया। इन इलाकों में मौसम सुधरने पर मई से सितंबर के बीच दोनों सेनाएं गश्त बढ़ा देती हैं। इलाकों पर दावेदारी में विवाद होते हैं। विवादों के निपटारे के लिए स्टैंडर्ड आपरेशन प्रॉसीड्योर (एसओसी) का चीन की ओर से लगातार उल्लंघन होता रहा है। भारत-चीन सीमा के कई इलाकों को दोनों ने विवादास्पद और संवेदनशील माना है। उन्हीं इलाकों में अक्सर झड़प होती है।
2007 से सिक्किम में कुछ मसले सामने आने लगे हैं। चीनी सेना ने नवंबर 2007 में जनरल एरिया डोकाला में अस्थायी बंकर तोड़ डाले थे। राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार परिषद के सदस्य और रक्षा विशेषज्ञ लेफ्टिनेंट जनरल (रिटायर) एसएल नरसिम्हन के मुताबिक, इसके बाद उत्तरी सिक्किम और पूर्वी लद्दाख के कई क्षेत्र (फिंगर एरिया) दोनों सेनाओं के लिए गले की हड्डी बन गए। वे सिक्किम के नाथुला में बतौर ब्रिगेड कमांडर तैनात रह चुके हैं।
वे बताते हैं कि उनकी तैनाती के दौर में वास्तविक नियंत्रण रेखा (एलएसी) पर जमीन की हदबंदी की कोशिश शुरू की गई थी। भारत ने पहल की थी, लेकिन बीच में ही चीन पीछे हट गया। उन इलाकों में सर्दियों के दौरान तनाव नहीं रहता। मई से सितंबर के बीच भारत और चीन के सैनिक गश्त बढ़ा देते हैं, इसलिए ज्यादा विवाद सामने आते हैं।
लेफ्टिनेंट जनरल नरसिम्हन का मानना है कि पूर्वी लद्दाख का मौजूदा विवाद और गलवान घाटी की आज की घटना के पीछे कहीं न कहीं जम्मू कश्मीर और लद्दाख को केंद्र शासित प्रदेश में बदलने का भी मामला है, जो भारत का अंदरूनी मामला है। लेकिन चीन को यह सही नहीं लगा। पूर्वी लद्दाख पर अपना दावा करनेवाला चीन इसे अपने लिए खतरा मान रहा है। पाकिस्तान से नजदीकियों के चलते चीन की यह मजबूरी है कि वह जम्मू कश्मीर के मसले को संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद में बार-बार उठाए। चीन की इन्हीं हरकतों ने दोनों देशों के बीच द्विपक्षीय रिश्तों की रफ्तार को प्रभावित किया है।
एलएसी 1962 के युद्ध के बाद अस्तित्व में आई। जमीन पर अब तक उसकी हदबंदी नहीं हुई है। यही वजह है कि दोनों देशों की सरहद को लेकर अपनी-अपनी धारणाएं हैं। भारत और चीन के बीच सरहद पर शांति बनाए रखने को लेकर तमाम समझौते हुए हैं। इन्हीं समझौतों के आधार पर कई एसओपी पर दोनों ओर से सहमति बनी है। दोनों देशों के बीच नाथुला, बुमला, किबिथू और केपांगला में सैन्य कमांडरों की बैठक का खाका बनाया गया है। जब भी कोई एक पक्ष एसओपी को नहीं मानता, जिसपर सहमति बनी थी तो विवाद होता है और ज्यादातर इस एसओपी को नहीं माननेवाला चीन ही होता है।