सुशील कुमार सिंह
प्रशासनिक चिंतक डानहम ने कहा है कि ‘अगर हमारी सभ्यता नष्ट होती है, तो ऐसा प्रशासन के कारण होगा।’ लोक प्रशासन एक ऐसी आवश्यकता है, जिसकी उपस्थिति में समानता और स्वतंत्रता को कायम रखना आसान होता है। भारत जैसे विशाल और विविधतापूर्ण समाज में संसाधनों और सेवाओं का न्यायपूर्ण वितरण ही सभी की समृद्धि का मूल मंत्र है। सिविल सेवा परीक्षा पाठ्यक्रम में इसी दृष्टि से दस साल पहले बदलाव किए गए थे।
वह समावेशी और सतत विकास के साथ सुशासन के मापदंडों को भी बेहतरीन स्वरूप देता है। सामान्य अध्ययन के प्रथम प्रश्नपत्र में जहां भारतीय समाज को समझना आवश्यक है वहीं द्वितीय प्रश्नपत्र सामाजिक न्याय और शासन को विस्तृत रूप से एक नए अंदाज और स्वरूप में प्रतियोगियों के लिए परोसा गया। जहां समता, स्वतंत्रता, सशक्तीकरण और वर्ग विशेष को एक नई ताकत देने की चिंता निहित है, वहीं भुखमरी और गरीबी से जुड़े तमाम दशकों पुराने संदर्भ सामाजिक न्याय के अंतर्गत एक नए चिंतन की ओर युवा पीढ़ी को ले जाते हैं।
सिविल सेवक प्रशासन का आधार होते हैं, उन पर कई महत्त्वपूर्ण जिम्मेदारियां होती हैं। उनके कार्यों को समाज से प्रेरणा मिलती है। सिविल सेवा परीक्षा के पाठ्यक्रम में बदलाव के पीछे कई महत्त्वपूर्ण कारक रहे हैं, जिनमें बदलते वैश्विक संदर्भ को संतुलित करने हेतु कइयों का परिमार्जन स्वाभाविक था। आचरण और अभिवृद्धि की दृष्टि से देखा जाए तो इस परीक्षा में चयनित होने वाले से यह उम्मीद होती है कि वह देश के चेहरे को विकासमय बनाए।
मगर, भ्रष्टाचार एक ऐसी जड़ व्यवस्था है, जिसमें यह सेवा फंसी हुई है। आंकड़े बताते हैं कि भारतीय प्रशासनिक सेवा समेत कई सेवाओं में कई अधिकारी ऊपर से नीचे तक कमोबेश रिश्वत और लेनदेन के मामले में लिप्त रहे हैं। ‘करप्शन परसेप्शन इंडेक्स 2022’ में चालीस अंक के साथ भारत दुनिया में पचासीवें स्थान पर बरकरार है, जो सूरीनाम, गुयाना, मानदीव समेत कई अन्य देशों के समकक्ष खड़ा है, जबकि डेनमार्क, फिनलैंड, न्यूजीलैंड और नार्वे क्रमश: पहले से चौथे स्थान पर हैं।
सिविल सेवा परीक्षा पाठ्यक्रम में सामान्य अध्ययन का चौथा प्रश्नपत्र नीतिशास्त्र से संबद्ध है। यहां प्रतियोगी के मानस पटल और कार्मिक तथा सामाजिक दृष्टि से एक संतुलित अधिकारी होने की धारणा का समावेशन दिखता है। व्यक्ति उदार हो, आचरण से भरा हो, ज्ञान की अविरल धारा लिए हो तथा स्वतंत्रता और समानता का सम्मान करता हो, तो सिविल सेवक के रूप में समाज और देश को तुलनात्मक रूप से अधिक लाभ मिलना तय है।
ऐसी ही सदिच्छा से यह प्रश्नपत्र युक्त देखा जा सकता है, जहां नैतिकता और ईमानदारी का पूरा लेखा-जोखा है। मानव स्वभाव से दयाशील हो, तो दंड का वातावरण कमजोर होता है और अगर मानव एक प्रशासक के रूप में निहायत कठोर और सहानुभूति से परे हो, तो विकास और सामाजिक संतुलन बिगड़ सकते हैं।
सार्वजनिक जीवन के सात सिद्धांत नोलन समिति ने भी दिए थे, जिनमें निस्वार्थता, सत्यनिष्ठा, निष्पक्षता, जवाबदेही, खुलापन, ईमानदारी और नेतृत्व शामिल है। सुशासन लोक सशक्तीकरण का पर्याय है, जिसमें लोक कल्याण, संवेदनशील शासन और पारदर्शी व्यवस्था के साथ खुला दृष्टिकोण और सामाजिक-आर्थिक विकास शामिल है। यह समावेशी ढांचे को त्वरित करता, सतत विकास को महत्त्व देता और जन-जीवन को सुजीवन में तब्दील करता है।
सिविल सेवा परीक्षा के पाठ्यक्रम और सिविल सेवकों के प्रशिक्षण के पूरे ताने-बाने को देखें तो एक अच्छे प्रशासक की तलाश हर दृष्टि से इसमें है। प्रशिक्षण के दौरान पाठ्यक्रमों का अनुपालन, संरचनात्मक तौर पर एक मजबूत तैयारी की ओर ले जाता है। देश की विविधता को समझने का मौका मिलता है। भारत दर्शन का दृष्टिकोण इसमें शामिल है। ‘मिशन कर्मयोगी’ के संदर्भ से भी यह ओत-प्रोत है।
विश्व बैंक ने अपने अध्ययन में पाया है कि जहां कहीं भी सिविल सेवा को राजनीतिक नेतृत्व द्वारा सशक्त किया गया, वहां बदलाव के लगभग हर मामले का नेतृत्व एक सिविल सेवक ने किया था। भारत की संविधान सभा में अखिल भारतीय सेवाओं के बारे में चर्चा के दौरान सरदार पटेल ने कहा था कि ‘प्रशासनिक प्रणाली का कोई विकल्प नहीं है।
संघ चला जाएगा अगर आपके पास ऐसी अच्छी अखिल भारतीय सेवा नहीं है, जिसे अपनी राय देने की आजादी हो, जिसे यह विश्वास हो कि आप उसके काम में उसका साथ देंगे, तो अखंड भारत नहीं बना सकते। अगर आप इस प्रणाली को नहीं अपना सकते, तो मौजूदा संविधान का पालन न करें, इसकी जगह कुछ और व्यवस्था करें। यह लोक औजार हैं, इन्हें हटाने पर और मुझे देश भर में उथल-पुथल की स्थिति के सिवा कुछ नजर नहीं आता।’
ब्रिटिश काल में प्रशासनिक सेवा (नौकरशाही) की प्रवृत्ति भारतीय दृष्टि से लोक कल्याण से मानो परे रही है। मैक्स वेबर ने अपनी पुस्तक सामाजिक-आर्थिक प्रशासन में इस बात को उद्घाटित किया था कि नौकरशाही प्रभुत्व स्थापित करने से जुड़ी एक व्यवस्था है। जबकि, अन्य विचारकों की राय रही है कि यह सेवा की भावना से युक्त एक संगठन है।
इतिहास गवाह है कि मौजूदा अखिल भारतीय सेवा यानी आइएएस और आइपीएस सरदार पटेल की ही देन है, जिसका उद्भव 1946 में हुआ था, जबकि आइएफएस 1966 में विकसित हुई। समय, काल और परिस्थिति के अनुपात में नौकरशाही से भरी ऐसी सेवाएं मौजूदा समय में सिविल सेवकों के रूप में कायाकल्प कर चुकी हैं। ब्रिटिश काल की यह इस्पाती सेवा अब ‘प्लास्टिक फ्रेम’ ग्रहण कर चुकी है। जनता के प्रति लोचशील हो गई है और सरकार की नीतियों के प्रति जवाबदेह, मगर इसकी हकीकत इससे परे है।
सरकार पुराने भारत की पहचान से बाहर आकर ‘नए भारत’ की क्रांति लाना चाहती है, जो बिना लोक सेवकों के मानस को बदले पूरी तरह संभव नहीं है। प्रधानमंत्री लोक सेवकों को नैतिकता का पाठ पढ़ाते रहे हैं। कुछ हद तक कह सकते हैं कि भ्रष्ट अधिकारियों के खिलाफ सरकार ने बड़े और कड़े कदम उठाए हैं, मगर सामाजिक बदलाव के लिए प्रशासन में काफी कुछ परिवर्तन करना होगा।
जनवरी 2022 में सरकार ने आइएएस कैडर नियम 1954 में संशोधन का प्रस्ताव दिया था। देश में 1 मई, 2017 से लालबत्ती गायब है। नीति आयोग के पास 2018 की ऐतिहासिक रपट में लोकसेवा में सुधार को लेकर निहित अध्याय में ‘न्यू इंडिया एट दि रेट 75’ हेतु रणनीति रपट में जनसेवाओं को और अधिक प्रभावी और कुशल बनाने के लिए लोक सेवकों की भर्ती, प्रशिक्षण सहित कार्य निष्पादन के मूल्यांकन में सुधार करने जैसे तंत्र को स्थापित करने पर जोर दिया गया, ताकि ‘नए भारत’ के लिए परिकल्पित और संदर्भित विकास को हासिल किया जाना आसान हो।
सितंबर 2020 से ‘मिशन कर्मयोगी’ कार्यक्रम में सृजनात्मक, रचनात्मक, कल्पनाशील, नव प्रवर्तनशील, प्रगतिशील और सक्रिय तथा पेशेवर सार्मथ्यवान लोकसेवक विकसित करने के लिए एक घोषणा दिखाई देती है। राष्ट्रीय लोकसेवा क्षमता निर्माण कार्यक्रम इस तरह से बनाया गया है कि यह भारतीय संस्कृति और संवदेना की परिधि में रहने के साथ-साथ दुनिया भर की सर्वश्रेष्ठ कार्य पद्धतियों और संस्थानों से अध्ययन संसाधन प्राप्त कर सके।
सरकार पांच खरब डालर की अर्थव्यवस्था बनने की चाहत रखती है, मगर यह तभी संभव है, जब लोकसेवा में बेहतरीन और बड़ा सुधार किया जाए, जहां भ्रष्टाचार पर पूरी तरह लगाम हो और जनता तक बकाया विकास पहुंचाया जाए। यह एक बड़े ढांचागत सुधार से ही संभव है। जाहिर है, ‘नए भारत’ की जिस महत्त्वाकांक्षा ने नई उड़ान भरी है, उसे धरातल पर नई लोकसेवा के जरिए ही उतारा जा सकता है।