Bangladeshi Infiltration: झारखंड हाई कोर्ट ने राज्य के आदिवासी संथाल परगना में बांग्लादेशी प्रवासियों की घुसपैठ की जांच के लिए एक स्वतंत्र तथ्य-खोज समिति (Independent Fact-Finding Committee) गठित करने का आदेश दिया है। कोर्ट ने कहा कि इस विषय पर केंद्र और राज्य द्वारा अपनाए गए “परस्पर विरोधी” रुख को देखते हुए यह जरूरी हो गया था।
एक्टिंग चीफ जस्टिस सुजीत नारायण प्रसाद और जस्टिस अरुण कुमार राय की खंडपीठ ने 12 सितंबर को अपने आदेश में कहा कि कोर्ट “परस्पर विरोधी” रुख को देखते हुए घुसपैठ के मुद्दे का स्वयं आकलन करने की स्थिति में नहीं है।
साल 2022 से कोर्ट जमशेदपुर निवासी की जनहित याचिका पर सुनवाई कर रहा है, जिसमें संथाल परगना क्षेत्र के अंतर्गत छह जिले शामिल हैं। उन जिलों में बांग्लादेशी घुसपैठ का आरोप लगाया गया है।
आदेश में कहा गया है, ‘राज्य की ओर से दाखिल हलफनामे पर गौर करने के बाद कि घुसपैठ का मुद्दा विवादित रहा है और अब केंद्र सरकार कह रही है कि यह शक्ति राज्य सरकार को सौंप दी गई है और जब राज्य का रुख यह है कि कोई घुसपैठ नहीं हुई है, तो यह कोर्ट इस मुद्दे का आकलन करने की स्थिति में नहीं है, जैसा कि वर्तमान जनहित याचिका में आरोप लगाया गया है।’ साथ ही कहा गया है कि एक निर्णायक निष्कर्ष पर पहुंचने के लिए Independent Fact-Finding Committee का गठन किया जाना है।’
कोर्ट के अनुसार, झारखंड राज्य ने पाकुड़, देवघर, दुमका, गोड्डा और जामताड़ा के उपायुक्तों की ओर से दायर हलफनामों के माध्यम से किसी भी घुसपैठ से इनकार किया है। कोर्ट ने यह भी कहा कि भारतीय विशिष्ट पहचान प्राधिकरण की ओर से दायर हलफनामे में कहा गया है कि 12 अंकों की आधार संख्या केवल पहचान के लिए है और यह नागरिकता का आधार नहीं बन सकती। कोर्ट ने कहा कि दूसरी ओर, केंद्र सरकार केंद्रीय गृह मंत्रालय (एमएचए) के माध्यम से घुसपैठ का दावा कर रही है।
हाई कोर्ट के आदेश में कहा गया है, “राज्य सरकार घुसपैठ के मुद्दे पर विवाद कर रही है, जबकि प्रस्तुत किए गए आंकड़े, जैसा कि आदेश (8 अगस्त) में उल्लेख किया गया है, जनजातीय जनसंख्या में वर्ष 1951 में 44.67% से वर्ष 2011 में 28.11% की कमी के संबंध में है, अन्यथा दर्शाते हैं।” महत्वपूर्ण बात यह है कि कोर्ट जिस कमी की बात कर रहा था, वह कुल गैर-आदिवासी जनसंख्या की तुलना में कुल आदिवासी जनसंख्या को दर्शाती है।
कोर्ट का यह आदेश केंद्र द्वारा न्यायालय के समक्ष यह दावा किए जाने के बाद आया है कि इस क्षेत्र में घुसपैठ हुई है। 12 सितंबर को दायर अपने हलफनामे में गृह मंत्रालय ने कहा था कि भारत के महापंजीयक कार्यालय, जो भारत में जनसंख्या की गणना करने और जनसांख्यिकीय डेटा का रिकॉर्ड रखने वाला सर्वोच्च प्राधिकरण है । उसने पुष्टि की है कि इस क्षेत्र में आदिवासी आबादी में गिरावट आई है।
गृह मंत्रालय के हलफनामे में कहा गया है, “हालांकि, बाहरी प्रवास, आदिवासियों में कम शिशु जन्म दर, ईसाई धर्म में धर्मांतरण और अन्य कारणों से जनजातीय आबादी में कमी का भी आकलन किया जाना चाहिए।” हलफनामे के अनुसार, संथाल परगना क्षेत्र में आजादी के बाद से बांग्लादेशी नागरिकों की घुसपैठ देखी गई है और हाल ही में साहिबगंज और पाकुड़ जिलों में कथित बांग्लादेशी बस्तियों की बात उजागर हुई है।
इसमें कहा गया है कि मौजूदा भूमि कानून में खामियों का दुरुपयोग करने के और भी उदाहरण सामने आए हैं, जैसे कि क्षेत्र में भूमि अधिग्रहण के लिए मुसलमानों द्वारा दानपत्र (उपहार विलेख) के माध्यम से आदिवासी भूमि को गैर-आदिवासी लोगों को हस्तांतरित करना। इसमें आगे कहा गया है कि ऐसे ही एक मामले में आदिवासियों और मुसलमानों के बीच विवाद हुआ (पाकुड़, 18 जुलाई, 2024) जब एक मुस्लिम परिवार ने दानपत्र के आधार पर ज़मीन का एक टुकड़ा हड़प लिया । हालांकि, इनमें से किसी भी ज़मीन से जुड़े मामले में बांग्लादेशी अप्रवासियों से संबंध अब तक स्थापित नहीं हुए हैं।
(अभिषेक अंगद की रिपोर्ट)