Supreme Court: देश की सबसे बड़ी अदालत ने बुधवार को एक बार कहा कि ‘जमानत नियम और जेल अपवाद है’ का सिद्धांत PMLA के तहत धन शोधन के मामलों पर लागू होता है। शीर्ष अदालत यह निर्णय तब आया, जब उसने धन शोधन के मामले में झारखंड के सीएम हेमंत सोरेन के कथित सहयोगी प्रेम प्रकाश को जमानत दी और हाई कोर्ट के फैसले को खारिज कर दिया।

शीर्ष अदालत ने एक बार फिर दोहराया कि भारतीय न्याय प्रक्रिया में जमानत नियम है और हिरासत यानी कैद अपवाद है। यह नियम धन शोधन निवारण अधिनियम (PMLA) में भी लागू होगा। इसका अर्थ- ‘जमानत नियम, जेल अपवाद’ का सिद्धांत संविधान के आर्टिकल 21 के तहत मौलिक अधिकारी का हिस्सा है।

‘अधिकारी के सामने आरोपी का बयान कोर्ट में सबूत नहीं माना जाएगा’

सुप्रीम कोर्ट के जस्टिस भूषण आर गवई, जस्टिस प्रशांत कुमार मिश्र और जस्टिस केवी विश्वनाथन की पीठ ने कहा कि कानून की समुचित प्रक्रिया का पालन करते हुए ही किसी नागरिक को आजादी के बुनियादी अधिकार से वंचित नहीं किया जा सकता है। PMLA के तहत हिरासत के दौरान कोई आरोपी जांच अधिकारी के सामने कोई अपराध स्वीकार कर बयान देता है तो उसे कोर्ट में सबूत नहीं माना जाएगा।

शीर्ष अदालत ने झारखंड के मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन के कथित सहयोगी प्रेम प्रकाश को भी जमानत पर रिहा करने का आदेश दिया है। प्रेम प्रकाश को जमानत देते हुए सुप्रीम कोर्ट ने उनकी लंबी कैद और बड़ी संख्या में गवाहों के कारण मुकदमे में हुई देरी को भी ध्यान में रखा।

जस्टिस बीआर गवई और जस्टिस केवी विश्वनाथन की बेंच ने कहा कि AAP नेता मनीष सिसोदिया मामले में दिए गए फैसले पर भरोसा करते हुए हमने कहा है कि पीएमएलए में भी जमानत एक नियम है और जेल अपवाद है। व्यक्ति की आजादी हमेशा नियम है और कानून द्वारा स्थापित प्रक्रिया के तहत बचना अपवाद है।

शीर्ष अदालत ने कहा कि हमारा मानना ​​है कि अगर अपीलकर्ता के बयान अपराध सिद्ध करने वाले पाए गए तो उन पर धारा 25 के तहत कार्रवाई की जाएगी। बयान को केवल इसलिए स्वीकार्य बनाना हास्यास्पद होगा, क्योंकि वह उस समय एक अन्य ECIR (प्रवर्तन मामला सूचना रिपोर्ट) के लिए हिरासत में था। ऐसे बयानों को स्वीकार्य बनाना गलत होगा, क्योंकि यह न्याय के सभी सिद्धांतों पर सटीक नहीं बैठते, बल्कि उसके खिलाफ हैं।