इन वाहकों में संघर्ष, जलवायु संकट और वैश्विक मंदी की आशंकाएं शामिल हैं। दुनिया में लगभग 82.8 करोड़ लोग भुखमरी का सामना कर रहे हैं। साल 2019 से गंभीर खाद्य असुरक्षा के शिकार लोगों की तादाद 13.5 करोड़ से बढ़कर 34.5 करोड़ हो गई है। विश्व के 49 अलग-अलग देशों के कुल 4.9 करोड़ लोगों के सामने भूखे पेट सोने के हालात पैदा हो गए हैं। दुनिया के एक बड़े इलाके में संघर्ष और जलवायु परिवर्तन से करोड़ों लोग भुखमरी की कगार पर पहुंच गए हैं।

दरअसल, भूख से जुड़ी इस समस्या की मुख्य वजह संघर्ष है। विश्व में भुखमरी की चपेट में आए 60 फीसद लोग हिंसा-प्रभावित और युद्धग्रस्त इलाकों में रह रहे हैं। हथियारबंद टकराव से लोग बेघरबार हो जाते हैं और उनकी आमदनी के रास्ते बंद हो जाते हैं। इससे भूख का संकट और संगीन हो जाता है। यूक्रेन संघर्ष इसकी जीती-जागती मिसाल है। दूसरी ओर, जलवायु संकट से जिंदगी, फसल और रोजी-रोजगार बर्बाद हो जाते हैं, नतीजतन लोगों की माली हालत विकट हो जाती है।

दुनिया के एक बड़े इलाके में संघर्ष और जलवायु परिवर्तन से करोड़ों लोग भुखमरी की कगार पर पहुंच गए हैं। मध्य अमेरिकी ड्राई कारिडोर, हैती से साहेल, मध्य अफ्रीकी गणराज्य, दक्षिणी सूडान, हार्न आफ अफ्रीका, सीरिया और यमन से लेकर अफगानिस्तान तक फैला ये इलाका रिंग आफ फायर के नाम से जाना जाता है। कोविड-19 महामारी के वित्तीय प्रभावों की वजह से भुखमरी की समस्या जबरदस्त ऊंचाई पर पहुंच गई है।

वर्ष 2021 में खाद्य पदार्थों की कीमतों में हुई बढ़ोतरी ने निम्न-आय वाले देशों में तीन करोड़ की अतिरिक्त आबादी को खाद्य असुरक्षा के दलदल में धकेल दिया। दुनिया की आबादी का करीब 80 फीसद हिस्सा सब-सहारा अफ्रीका, दक्षिण एशिया और दक्षिण पूर्व एशिया में निवास करता है। यहां खेतीबाड़ी के काम में लगे परिवार तंगहाल हैं और बेहद नाजुक हालात में जी रहे हैं।

ये इलाके जलवायु परिवर्तन के चलते फसल खराब होने और अकाल से जुड़े खतरों की जद में हैं। मौसम के अल-नीनो रुझान से पैदा भयंकर सूखे की वजह से करोड़ों लोगों के गरीबी के मकड़जाल में फंसने की आशंका है। फिलीपींस और वियतनाम जैसे अपेक्षाकृत ऊंची आय वाले देशों में भी अल नीनो के चलते जीडीपी, उपभोग और पारिवारिक आय में गिरावट का खतरा है। कई इलाकों में पानी की जबरदस्त किल्लत के चलते सीमित जल संसाधन से गुजारा हो रहा है। यहां जलवायु परिवर्तन का कृषि उत्पादन पर धीरे-धीरे ऐसे ही नकारात्मक प्रभाव पड़ता रहेगा।

मौसम के उग्र तेवर, पौधों में लगने वाली बीमारियों और वैश्विक जल संकट की वजह से हाल के वर्षों में मक्के और गेहूं की उत्पादकता में गिरावट आई है। खाद्य और कृषि संगठन के मुताबिक अफ्रीका के साहेल क्षेत्र में खाद्यान्नों की पैदावार में उतार-चढ़ाव की 80 फीसद वजह जलवायु में होने वाला परिवर्तन है। बांग्लादेश और वियतनाम जैसे देशों में खाद्य सुरक्षा के मोर्चे पर एक और चुनौती समुद्र-जल का बढ़ता स्तर है। वियतनाम के मेकांग डेल्टा क्षेत्र के पानी में डूबने का असर विनाशकारी हो सकता है। इस देश में चावल के कुल उत्पादन का आधा हिस्सा यहीं उपजता है।
जिन पौधों में कार्बनडायआक्साइड का स्तर ऊंचा होता है, उनमें प्रोटीन, जिंक और लोहे की मात्रा कम हो जाती है।

अनुमान के मुताबिक 2050 तक दुनिया की 17.5 करोड़ आबादी को जिंक की कमी का सामना करना पड़ सकता है। इसके अलावा 12.2 करोड़ लोगों में प्रोटीन की भी कमी हो सकती है। जलवायु परिवर्तन का पेड़-पौधों पर आधारित आहार व्यवस्था की गुणवत्ता के साथ-साथ पशुओं पर भी प्रभाव पड़ता है। खाने-पीने, तगड़े होने और मांस, अंडे और दूध के उत्पादन के लिए ये पशु उन्हीं संसाधनों का प्रयोग करते हैं, जिनपर खुद इंसान भी निर्भर हैं। सूखे से जुड़े तमाम तरह के नुकसानों में गाय-भैंस, बकरियों और दूसरे पालतू पशु-पक्षियों का हिस्सा 36 फीसद और फसलों का 49 फीसद है। इसी तरह मौसम के उग्र तेवरों (दक्षिणपूर्व एशिया जैसी जगहों में) से मछलियों की आबादी पर भी खतरा मंडरा रहा है।

जलवायु परिवर्तन आपदा कीमत

बीमा और आपदा से संबंधित कंपनी स्विस रे के अनुसार, जलवायु संबंधी आपदा से लोगों की मौत और क्षति के बावजूद 2022 में जलवायु आपदा से संबंधित क्षतिपूर्ति 2021 से कम है। साल 2020 में जलवायु परिवर्तन की यह स्थिति है कि वैश्विक आपदा लागत में 268 अरब डालर पिछले वर्ष की तुलना में 12 फीसद कम है, जबकि क्षति 300 अरब डालर से अधिक थी।नेशनल ओशनिक एंड एटमास्फेरिक एडमिनिस्ट्रेशन (एनओएए) के अनुसार, अमेरिकी मौसम आपदाएं कम से कम एक अरब डालर की क्षति का कारण बनी। हालांकि, तूफान इयान की वजह से समग्र क्षति राशि शायद अमेरिकी इतिहास में शीर्ष तीन में शामिल होने जा रही है।