गिरधारी लाल जोशी
झारखंड विधानसभा चुनाव के ऐलान होने से पहले राज्य में सियासी भगदड़ तेज हो गई है। ज्यादा चर्चा झारखंड मुक्ति मोर्चा (जेएमएम) छोड़कर बीजेपी में जा रहे चंपई सोरेन की है। पूर्व मुख्यमंत्री चंपई सोरेन को मौजूदा सीएम हेमंत सोरेन ने जेल जाने और अपना इस्तीफा देने पर राज्य का मुखिया बनाया था। असम के मुख्यमंत्री हिमंत सरमा ने मंगलवार को इनको गृहमंत्री अमित शाह से मिलवाया था। इसके बाद यह पुख्ता हो गया था कि वे 30 अगस्त को बीजेपी की सदस्यता लेंगे। इसके साथ ही चंपई सोरेन रांची आकर मंत्री पद और झारखंड मुक्ति मोर्चा पार्टी से अपना इस्तीफा सौंप दिया।
बीजेपी की राह चुनाव में आसान होगी या मुश्किलें बढ़ेंगी, जवाब अभी साफ नहीं
सवाल है कि इनके आने से बीजेपी की राह चुनाव में आसान होगी या और मुश्किलें बढ़ेंगी? इसका जवाब अभी साफ नहीं है, लेकिन वक्त के साथ यह साफ हो जाएगा। इनको लेकर बीजेपी में तीन पूर्व मुख्यमंत्रियों का जमावड़ा हो जाएगा। तीनों का अपना सपना है। बाबू लाल मरांडी, अर्जुन मुंडा पहले से अपने मंसूबों को लेकर झारखंड की लड़ाई लड़ रहे है। अब चंपई सोरेन के भी आने से उनका भी सपना दिखेगा। यह अलग बात है कि पूर्व मुख्यमंत्री रघुवर दास उड़ीसा के राज्यपाल है। इनको बीते चुनाव में पराजित करने वाले सरयू राय ने जनता दल (यू) का तीर थाम लिया है। हालंकि जदयू एनडीए का हिस्सा है, लेकिन बीजेपी के लिए यह परेशानी का कारण बन सकता है।
बहरहाल बीजेपी मे आ रहे चंपई सोरेन ने शिबू सोरेन को पत्र लिखा है। इसमें उन्होंने कहा, “पार्टी (झामुमो) रास्ते से भटक गई है। उन्होंने कभी सोचा नहीं था कि पार्टी से इस्तीफा देना पड़ेगा।” वहीं झामुमो नेताओं ने कहा कि चंपई सोरेन का पर्दाफाश हो गया है। यदि ये निर्दलीय लड़ते तो हो सकता है आदिवासी मतों का बंटवारा करके झामुमो को नुकसान पहुंचा सकते थे, लेकिन बीजेपी की सदस्यता लेकर हमारा रास्ता साफ कर दिया है। पूर्वी सिंहभूम, पश्चिमी सिंहभूम और सरायकेला – खरसावां की 14 विधानसभा सीटें कोल्हान कहलाती है। चंपई सात दफा इस इलाके से विधानसभा का चुनाव जीते है। समय बताएगा कि ये जेएमएम को कितना नुकसान पहुंचाते है। अभी कुछ कहना जल्दबाजी होगी।
झारखंड विधानसभा में कुल 81 सीटें है, 28 सीटें आदिवासियों के लिए सुरक्षित है
झारखंड विधानसभा में कुल 81 सीटें है, जिनमें 28 सीटें आदिवासियों के लिए सुरक्षित है। बीजेपी ने बांग्लादेशी घुसपैठियों का मुद्दा संसद में उठाकर झारखंड खासकर संताल परगना में छा जाने की कोशिश की है। इस इलाके में यह बीजेपी का पुराना मुद्दा है, लेकिन हाल में हुए संसदीय चुनाव में संताल परगना की तीन लोकसभा सीट में से दो दुमका और राजमहल सीटों पर झामुमो ने अपना परचम लहराया। दुमका संसदीय सीट बीजेपी से छीन ली। 2019 लोकसभा चुनाव में बीजेपी के सुनील सोरेन जीते थे। इस बार टिकट इन्हें न देकर शिबू सोरेन की बड़े बेटे की बहु सीता सोरेन को प्रत्याशी बनाया था। झामुमो से तोड़ का फायदा बीजेपी को नहीं मिला। यों गोड्डा संसदीय सीट पर बीजेपी को सफलता मिली। यहां से निशिकांत दुबे चौथी बार सांसद बने, लेकिन 2019 के मुकाबले मतों में गिरावट आई।
संताल परगना की विधानसभा में 18 सीटें है। इन क्षेत्रों में चंपई सोरेन से बीजेपी को कोई खास फायदा होता नजर नहीं आता। इधर कल तक केंद्रीय वित्त और विदेश मंत्री यशवंत सिन्हा ने अपनी क्षेत्रीय पार्टी अटल विचार मंच बना कर बीजेपी को झारखंड राज्य में सत्ता में आने से मुश्किल खड़ा करना शुरू कर दिया है! इसकी योजना करीब तीन साल से ये बना रहे थे। झारखंड के सभी विधान सभा चुनावी क्षेत्र में टिकट देकर उम्मीदवार उतारने की पूरी तैयारी कर ली है और काफी लोग उनसे अनुरोध कर रहे हैं कि उनको टिकट दिया जाए और वे चंदा भी देने लगे हैं।
उन्होंने हजारीबाग में प्रेस कॉन्फ्रेंस करके अपनी पार्टी के बारे में बताया। उन्होंने कहा कि रांची और अन्य विश्वविद्यालय में प्रोफेसर रहे बहुत से बुद्धिजीवी, पूर्व प्रशासनिक और पुलिस अधिकारी भी उनकी पार्टी के समर्थन में खुल कर आ गए हैं और झारखंड राज्य में परिवर्तन चाहते हैं। इस तरह बीजेपी के लिए मुश्किलें खड़ी हो रही हैं।