Babri Masjid: बाबरी मस्जिद का जिक्र आते ही अक्सर सियासत तेज हो जाती है। कुछ दिन पहले रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह ने पूर्व प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू पर निशाना साधते हुए कहा कि वो सरकारी फंड से बाबरी मस्जिद की मरम्मत करवाना चाहते थे। वहीं, कांग्रेस ने रक्षा मंत्री के दावों को सिरे से खारिज कर दिया। इसके बाद अब भाजपा सांसद सुधांशु त्रिवेदी ने राजनाथ सिंह के दावे के सही ठहराया है।

रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह के बयान पर भाजपा सांसद सुधांशु त्रिवेदी ने कहा कि मुझे लगता है कि कांग्रेस के नेताओं को अपने ही नेताओं के बारे में जानकारी लेने की आदत छूट गई है। पढ़ना-लिखना छोड़ दिया है। नेहरू–गांधी के बारे में भी उन्हें पता नहीं होता है।

भाजपा सांसद सुधांशु त्रिवेदी ने कहा कि रक्षामंत्री राजनाथ सिंह ने जो कहा है, कि नेहरु जी ने बाबरी मस्जिद बनवाने का प्रयास किया था और सरदार पटेल ने उसका विरोध किया था तब नेहरु रूके। उसका स्रोत है “The Inside Story of Sardar Patel – Diary of Maniben Patel” पृष्ठ संख्या 24 है, जिसमें 1936 से 1950 तक के उनके तमाम करेस्पॉन्डेंस का उल्लेख है। उन्होंने कहा कि ‘द ​​इनसाइड स्टोरी ऑफ सरदार पटेल, डायरी ऑफ मणिबेन पटेल’- पेज नंबर 24 पर लिखा है- नेहरू ने बाबरी मस्जिद का मुद्दा उठाया। सरदार पटेल ने उसका प्रतिरोध किया। पटेल ने कहा कि सोमनाथ के पुनर्निर्माण का विषय इससे बिल्कुल भिन्न है।

सुधांशु त्रिवेदी ने कहा कि 20 सितंबर 1950 के बाद नेहरू शांत हो गए। लेकिन जो लोग अभी भी कांग्रेस सदस्यों के मन में बेचैनी महसूस कर रहे हैं, मैं उन्हें बताना चाहता हूं कि नेहरू के मन में सिर्फ यही नहीं था। सोमनाथ मंदिर के उद्घाटन के समय उन्होंने 24 अप्रैल 1951 को जाम साहब को पत्र लिखा था। नेहरू ने उनसे (राजा जाम साहब से) साफ़ कह दिया था कि उन्हें सोमनाथ मंदिर के निर्माण में जाने या कोई भूमिका निभाने की ज़रूरत नहीं है…”

त्रिवेदी ने कहा कि नेहरू आगे कहते हैं, “17 मार्च 1959 के एक कार्यक्रम में नेहरू कहते हैं कि दक्षिण भारत के मंदिर चाहे कितने भी सुंदर क्यों न हों, उन्हें निराशा ही हाथ लगती है… तो इसका मतलब है कि तब से लेकर आज तक राम मंदिर के शिलान्यास समारोह में न जाना, राम मंदिर का झंडा फहराने का विरोध करना, बाबरी मस्जिद बनाने का संकल्प लेना… मैंने कांग्रेस नेताओं से ये बात साफ़-साफ़ कह दिया है, इस उद्धरण के साथ… कांग्रेस को अपना डीएनए ज़रूर चेक करना चाहिए। मैं किसी का व्यक्तिगत अपमान नहीं करना चाहता। यहां ‘डीएनए’ का मतलब राजनीतिक डीएनए है: जिस तरह का तिरस्कार उनमें था, वो पहले भी था, आज भी है और कल भी रहेगा…”।

राजनाथ सिंह ने क्या कहा था?

रक्षामंत्री राजनाथ सिंह ने दावा करते हुए कहा था कि भारत के पहले प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू सरकारी पैसों से अयोध्या में बाबरी मस्जिद बनवाना चाहते थे। लेकिन सरदार वल्लभभाई पटेल ने उनकी योजना सफल नहीं होने दी। सिंह ने यह भी दावा किया कि नेहरू ने सुझाव दिया था कि पटेल की मृत्यु के बाद उनके स्मारक के निर्माण के लिए आम लोगों द्वारा एकत्रित धन का उपयोग कुओं और सड़कों के निर्माण के वास्ते किया जाना चाहिए।

सरदार पटेल की 150वीं जयंती के उपलक्ष्य में आयोजित ‘एकता मार्च’ के तहत वडोदरा के पास साधली गांव में एक सभा को संबोधित करते हुए सिंह ने पटेल को एक सच्चा उदारवादी और धर्मनिरपेक्ष व्यक्ति बताया। उन्होंने कहा कि वह कभी तुष्टीकरण में विश्वास नहीं करते थे।

पीटीआई के मुताबिक सिंह ने कहा, “पंडित जवाहरलाल नेहरू सार्वजनिक धन से (अयोध्या में) बाबरी मस्जिद का निर्माण कराना चाहते थे। अगर किसी ने इस प्रस्ताव का विरोध किया था, तो वह सरदार वल्लभभाई पटेल थे। उन्होंने सार्वजनिक धन से बाबरी मस्जिद का निर्माण नहीं होने दिया।”

उन्होंने कहा कि जब नेहरू ने गुजरात में सोमनाथ मंदिर के जीर्णोद्धार का मुद्दा उठाया तो पटेल ने स्पष्ट किया कि मंदिर एक अलग मामला है, क्योंकि इसके जीर्णोद्धार के लिए आवश्यक 30 लाख रुपये आम लोगों द्वारा दान किए गए थे।

भारतीय जनता पार्टी के वरिष्ठ नेता सिंह ने कहा, “एक ट्रस्ट का गठन किया गया था और इस (सोमनाथ मंदिर) कार्य पर सरकार का एक भी पैसा खर्च नहीं किया गया। इसी तरह, सरकार ने अयोध्या में राम मंदिर निर्माण के लिए एक भी रुपया नहीं दिया। पूरा खर्च देश की जनता ने वहन किया। इसे ही असली धर्मनिरपेक्षता कहते हैं।”

राजनाथ सिंह ने कहा कि सरदार पटेल प्रधानमंत्री बन सकते थे, लेकिन उन्होंने अपने पूरे करियर में कभी किसी पद की लालसा नहीं की। रक्षा मंत्री ने कहा कि नेहरू के साथ वैचारिक मतभेदों के बावजूद, उन्होंने उनके साथ काम किया क्योंकि उन्होंने महात्मा गांधी को एक वचन दिया था। उन्होंने दावा किया कि 1946 में नेहरू कांग्रेस के अध्यक्ष इसलिए बने क्योंकि पटेल ने गांधी की सलाह पर अपना नामांकन वापस ले लिया था।

रक्षामंत्री ने कहा, “1946 में कांग्रेस के अध्यक्ष का चुनाव होना था। कांग्रेस कमेटी के अधिकांश सदस्यों ने वल्लभभाई पटेल के नाम का प्रस्ताव रखा। जब गांधीजी ने पटेल से अनुरोध किया कि वे नेहरू को अध्यक्ष बनने दें और अपना नामांकन वापस ले लें, तो पटेल ने तुरंत अपना नाम वापस ले लिया।”

सिंह ने किसी का नाम लिए बिना कहा कि कुछ राजनीतिक ताकतें पटेल की विरासत को मिटाना चाहती थीं। उन्होंने कहा, “प्रधानमंत्री नरेंन्द्र मोदी की महत्वपूर्ण भूमिका ने पटेल को इतिहास के पन्नों में एक चमकते सितारे के रूप में फिर से स्थापित किया।” सिंह ने दावा किया कि कुछ लोगों ने पटेल की विरासत को छिपाने और मिटाने की कोशिश की। लेकिन जब तक बीजेपी सत्ता में है, वे इसमें कामयाब नहीं होंगे।

नेहरू पर लगाया गंभीर आरोप

राजनाथ सिंह कहा, “पटेल के निधन के बाद आम लोगों ने उनके स्मारक के निर्माण के लिए धन इकट्ठा किया, लेकिन जब यह जानकारी नेहरू जी तक पहुंची तो उन्होंने कहा कि सरदार पटेल किसानों के नेता थे। इसलिए यह धन गांव में कुएं और सड़कें बनाने पर खर्च किया जाना चाहिए।” उन्होंने कहा, “क्या ढोंग है। कुएं और सड़कें बनवाना सरकार की जिम्मेदारी है। स्मारक निधि का इस्तेमाल इसके लिए करने का सुझाव बेतुका था।” उन्होंने कहा कि इससे पता चलता है कि उस समय की सरकार पटेल की महान विरासत को हर कीमत पर छिपाना और दबाना चाहती थी।

सिंह ने कहा, “नेहरूजी ने खुद को भारत रत्न प्रदान किया, लेकिन सरदार वल्लभभाई पटेल को उस समय भारत रत्न से सम्मानित क्यों नहीं किया गया? प्रधानमंत्री मोदीजी ने स्टैच्यू ऑफ यूनिटी का निर्माण करके सरदार पटेल को उचित सम्मान देने का फैसला किया। यह हमारे प्रधानमंत्री का सचमुच सराहनीय कार्य है।” रक्षा मंत्री ने इस दलील को भी खारिज कर दिया कि प्रधानमंत्री बनने के लिए पटेल की आयु बहुत अधिक थी। सिंह ने कहा, “यह पूरी तरह गलत है। मोरारजी देसाई 80 वर्ष से अधिक के थे। अगर वे भारत के प्रधानमंत्री बन सकते थे, तो सरदार पटेल, जो 80 वर्ष से कम थे, क्यों नहीं बन सकते थे?”

कश्मीर मुद्दे का उल्लेख करते हुए राजनाथ सिंह ने कहा कि यदि कश्मीर के विलय के समय पटेल द्वारा उठाए गए सुझावों को माना गया होता, तो भारत को लंबे समय तक कश्मीर समस्या से जूझना नहीं पड़ता। उन्होंने कहा कि पटेल हमेशा समस्याओं का समाधान संवाद के माध्यम से करने में विश्वास करते थे। सिंह ने कहा, “हालांकि जब सभी रास्ते बंद हो गए, तो वह कठोर रुख अपनाने में हिचकिचाये नहीं। जब हैदराबाद के विलय की आवश्यकता पड़ी, तो पटेल ने वही रुख अपनाया। यदि उन्होंने कठोर रुख नहीं अपनाया होता, तो शायद हैदराबाद भारत का हिस्सा नहीं बन पाता।”

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उन्होंने यह बात पटेल के भारत के पहले गृहमंत्री के रूप में कार्यकाल का हवाला देते हुए कही। सिंह ने कहा कि मोदी सरकार ने भी ‘ऑपरेशन सिंदूर’ के माध्यम से इस मूल्य को कायम रखा है। उन्होंने कहा कि ऑपरेशन सिंदूर के जरिए भारत ने दुनिया को यह दिखाया कि वह उन लोगों को उचित जवाब देने में सक्षम है जो शांति और सद्भाव की भाषा नहीं समझते। उन्होंने कहा कि ऑपरेशन सिंदूर ना केवल भारतीय जमीन पर, बल्कि विश्व के अन्य देशों में भी चर्चा का विषय बन गया है।

राजनाथ के बयान पर कांग्रेस नेता ने क्या कहा था?

राजनाथ सिंह के बयान पर कांग्रेस नेता मणिकम टैगोर ने कहा था कि भाजपा झूठ बोल रही है। इसे लेकर कोई भी दस्तावेज या डॉक्यूमेंट्री सबूत के तौर पर मौजूद नहीं है। मणिकम टैगोर ने सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म एक्स पर पोस्ट शेयर करते हुए कहा, “नेहरू जी धार्मिक कार्यों के लिए सरकरी पैसे का इस्तेमाल करने के सख्त खिलाफ थे। उनका मानना था कि यह काम जनता के सहयोग से होना चाहिए।”

मणिकम टैगोर के अनुसार, अगर नेहरू जी ने सोमनाथ मंदिर, जो लाखों लोगों की आस्था का प्रतीक है, उसके लिए सरकारी पैसा देने से मना कर दिया था, तो वो बाबरी मस्जिद पर जनता का पैसा क्यों खर्च करने की सलाह देते?

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