अयोध्या में सुप्रीम कोर्ट कोर्ट द्वारा राम जन्मभूमि-बाबरी मस्जिद स्थल को राम मंदिर निर्माण के लिए केंद्र द्वारा गठित एक ट्रस्ट को ट्रांसफर करने वाले फैसले के दो दिन बाद इसके स्वरूप को लेकर बयानबाजियां शुरू हो चुकी हैं। 1990 के दशक में मंदिर आंदोलन के प्रमुख चेहरों में शुमार और राम जन्मभूमि न्यास के अध्यक्ष महंत नृत्य गोपाल दास ने सोमवार को ‘द इंडियन एक्सप्रेस’ को बताया कि नया ट्रस्ट बनाने की जरूरत नहीं है, क्योंकि राम मंदिर निर्माण के लिए ‘न्यास’ को ही एक ट्रस्ट बनाया गया है और निर्मोही अखाड़ा जैसे अन्य लोग इस काम को पूरा करने के लिए इसमें शामिल हो सकते हैं।
लेकिन, निर्मोही अखाड़ा के महंत दीनेंद्र दास इस बात से सहमत नहीं हैं। वह कहते हैं, “हम उनके खिलाफ लड़ रहे हैं यानी राम जन्मभूमि न्यास के खिलाफ। ऐसे में कोई कैसे सोच सकता है कि हम उनके ट्रस्ट का सदस्य हो सकते हैं? वे अपने ट्रस्ट को सरेंडर करके हमारे साथ ट्रस्ट का हिस्सा बन सकते हैं। हम निर्मोही हैं और उनका कभी भी हिस्सा नहीं बन सकते। यह सरकार के ऊपर है कि वह समाधान खोजे और सभी को एक साथ लाए।”
गौरतलब है कि शनिवार को 5-0 से दिए अपने फैसले में सुप्रीम कोर्ट की संविधान पीठ ने भगवान की सेवा और संपत्ति के प्रबंधन के अधिकार के दावे को खारिज कर दिया था। लेकिन, खंडपीठ ने विवादित स्थल पर “निर्मोही अखाड़े की ऐतिहासिक उपस्थिति और उनकी भूमिका” पर ध्यान देते हुए केंद्र को निर्देश दिया कि ट्रस्ट बनाने के लिए एक योजना तैयार करते हुए, अखाड़े को “प्रबंधन में एक उपयुक्त भूमिका” सौंपे।
इनके अलावा दिगंबर अखाड़े के प्रमुख मंहत सुरेश दास भी ट्रस्ट के मामले पर उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के साथ मुलाकात करने वाले हैं। गौरतलब है कि दिगंबर अखाड़ा एक वक्त में अयोध्या का सबसे प्रभावशाली अखाड़ा था। इसकी पहले मुखिया परमहंस रामचंद्र दास थे और वह न्यास के अध्यक्ष भी थे। परमहंस रामचंद्र दास न्यास के अध्यक्ष अपने देहावसान के वक्त तक (2003) बने रहे। दिगंबर अखाड़ा का कहना है कि राम मंदिर निर्माण के लिए किसी मौजूदा ट्रस्ट को जिम्मेदारी नहीं दी जानी चाहिए।
हालांकि, न्यास के प्रमुख महंत गोपाल दास नए ट्रस्ट की जरूरत पर सवाल उठाते हैं। उनका कहना है, “किसलिए बनाएंगे, कौन बनाएगा और कौन उसमें रहेगा? क्या जरूरत है?”