केंद्र सरकार ने बुधवार को लोकसभा में कहा कि सरकारी महिला कर्मचारियों के प्रति अपमानजनक व्यवहार भी यौन उत्पीड़न के बराबर हो सकता है। कार्मिक और लोक शिकायत एवं पेंशन मामलों के राज्यमंत्री जितेंद्र सिंह ने एक सवाल के लिखित जवाब में बताया कि रोजगार में विशेष या निर्णायक व्यवहार, मौजूदा या भावी रोजगार को लेकर धमकी और ऐसा अपमानजनक व्यवहार जिससे महिला कर्मचारी का स्वास्थ्य या सुरक्षा प्रभावित हो सकती है, यौन उत्पीड़न के समान हो सकता है। उन्होंने कहा कि इसके अलावा, उसके कामकाज में बाधा या आक्रामक या डराने धमकाने वाला या उत्पीड़क कार्य माहौल बनाना भी यौन उत्पीड़न के समान हो सकता है।
कार्मिक व लोक शिकायत मंत्रालय ने कार्य स्थलों पर यौन उत्पीड़न पर रोक लगाने के लिए 19 नवंबर को सेवा नियमों में संशोधन किया था। केंद्रीय लोक सेवा (आचरण) नियम की नई परिभाषा के अनुसार यौन उत्पीड़न में शारीरिक संपर्क और इशारा करना, यौन आग्रह, अश्लील टिप्पणियां, अश्लील साहित्य दिखाना और कोई भी अन्य शारीरिक, मौखिक या इशारे वाला व्यवहार यौन प्रताड़ना माना जाता है।
एक अन्य सवाल के लिखित जवाब में उन्होंने बताया कि अनुसूचित जाति, जनजाति और अन्य पिछड़ा वर्ग के लिए आरक्षित पदों को सामान्य श्रेणी के उम्मीदवारों से भरने का कोई प्रस्ताव नहीं है। उन्होंने बताया कि अप्रैल 2012 से अक्तूबर 2014 के बीच एससी-एसटी और ओबीसी श्रेणी के 9151 पद खाली थे जिन्हें कुछ विभागों और मंत्रालयों ने भरा था। सिंह ने स्पष्ट किया कि अनुसूचित जाति, जनजाति और अन्य पिछड़ा वर्ग के लिए आरक्षित पदों को सामान्य श्रेणी के उम्मीदवारों से भरने का कोई प्रस्ताव नहंी है।
उन्होंने बताया कि जून 2013 में विभाग ने सभी संबंधित विभागों को निर्देश जारी किए थे कि आरक्षित श्रेणी की पिछली रिक्तियों को भरने के प्रयास किए जाएं। एक सवाल के जवाब में सिंह ने बताया कि केंद्र सरकार विभिन्न संस्थानों से अपनी प्रमाणन प्रक्रिया को सरल बनाने और प्रशासनिक सुधार के रूप में स्व: प्रमाणन की प्रक्रिया को स्वीकार करने की अपील कर रही है। उन्होंने बताया कि विभिन्न संगठन सांविधिक और कानूनी प्रावधानों के अनुसार प्रमाणन के लिए अलग अलग मापदंड अपना रहे हैं। कार्मिक मंत्री ने कहा कि सरकार स्व प्रमाणन को पेश कर इस प्रक्रिया को सरल बनाने की लगातार कोशिश कर रही है। इसके लिए सभी केंद्रीय मंत्रालयों, विभागों, राज्य सरकारों, संघ शासित प्रदेशों से अपील की गई है कि वे इस संबंध में मौजूदा जरूरतों की समीक्षा करें और जहां संभव हो वहां स्व प्रमाणन की व्यवस्था करें। उन्होंने बताया कि 20 राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों ने अपने जवाब में संकेत दिए हैं कि वे इस पर कार्यवाही कर रहे हैं।