मोदी सरकार का दावा है कि हाथ से मैला ढोने यानि मैनुअल स्केवेंजिंग के कारण किसी व्यक्ति की मृत्यु होने की कोई रिपोर्ट नहीं है। सरकार ने बुधवार को संसद में ये बात कही। लेकिन तस्वीर का दूसरा पहलू काफी भयावह है। एक रिपोर्ट के मुताबिक पिछले तीन सालों में सीवर टैंकों की सफाई करते समय हुई दुर्घटनाओं के कारण 161 लोगों की मौत हुई है।

सामाजिक न्याय व अधिकारिता मंत्री वीरेंद्र कुमार ने राज्यसभा में यह जानकारी दी। उन्होंने कहा कि अभी कोई भी व्यक्ति हाथ से मैला ढोने का कार्य नहीं कर रहा है। मंत्री ने कहा कि 1993 से लेकर 31 मार्च 2022 तक सेप्टिक टैंकों की सफाई के दौरान 791 लोगों की मौत हुई। इन मामलों कोलेकर 536 केस दर्ज किए गए। 703 पीड़ितों के आश्रितों को मुआवजा दिया गया है। उन्होंने कहा कि अब मशीनों से सफाई पर जोर दिया जा रहा है। हाथ से सीवर न साफ करना पड़े इसके लिए 15 लाख रुपये तक लोन के साथ पांच लाख रुपये की सब्सिडी दी जाती है।

तस्वीर का दूसरा पहलू देखें तो सरकार का दावा बेसिरपैर का नजर आता है। इंडियन एक्सप्रेस की खबर के मुताबिक मार्च में मुंबई के एक इलाके में सीवर की सफाई के लिए टैंक में उतरे तीन मजदूरों की मौकत हो गई थी।

जनवरी 2019 में मीरा रोड पर ऐसे ही वाकये में तीन मजदूरों की मौत हुई तो मई में नालासोपारा में तीम मजदूर तब मारे गए जब वो प्राइवेट सोसायटी के सैप्टिक टैंक में सफाई के लिए उतरे थे। 11 मई को ऐसा ही वाकया थाने में हुआ। वहां भी तीन युवक मारे गए। मुंबई के ही मालवानी में 2017 में तीन मजदूर सैप्टिक टैंक में उतरने के बाद दम तोड़ गए तो डोंबीवली में पिता-पुत्र की जान से हाथ धोना पड़ा। एक बीएमसी वर्कर भी मारा गया था।

क्या है मैनुअल scavenging

किसी सीवरेज या सैप्टिक टैंक से मानव अपशिष्ट को हाथों से साफ करना मैनुअल scavenging माना जाता है। हालांकि 2013 के एक एक्ट के तहत ऐसे काम को गैरकानूनी घोषित किया गया था। फिलहाल सीवर व सेप्टिक टैंक की सफाई किसी व्यक्ति से कराना दंडनीय है और इसके लिए पांच साल तक की कैद या पांच लाख जुर्माना या दोनों का प्रावधान है। लेकिन बावजूद उसके ये काम धड़ल्ले से चल रहा है, क्योंकि सीवरेज की सफाई के लिए कोई आधारभूत ढांचा नहीं है।

हालांकि बीएमसी सीवरेज की सफाई की पेशकश करती है लेकिन ये बहुत खर्चीला होता है। सिविक बॉडी एक सैप्टिक टैंक या सीवरेज की सफाई के लिए 20 से 30 हजार रुपये लेती है। जबकि अप्रशिक्षित मजदूर ये काम 300 से 500 में कर देते हैं। बीएमसी का दावा है कि उसने मशीनों का इंतजाम कर लोगों को इस बारे में नोटिस के जरिए आगाह भी किया है। इसके लिए कारपोरेशन ने हाईटेक मशीनों की खरीद विगत में की थी।