हाल ही में महाराष्ट्र के विदर्भ क्षेत्र में एक रैली में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कहा कि अगर लोग अपनी एकता खो देते हैं, तो कांग्रेस उनके आरक्षण लाभ छीन लेगी। चंद्रपुर जिले के चिमूर में जनसभा में पीएम मोदी ने कहा कि ये मेरा आग्रह है, हम एक रहेंगे तो सेफ रहेंगे। प्रधानमंत्री पिछले हफ़्ते से महाराष्ट्र में इस नारे और इसके दूसरे रूपों का इस्तेमाल कर रहे हैं।

8 नवंबर को महाराष्ट्र में अपनी पहली चुनावी रैली में उन्होंने कहा, “एक हैं तो सेफ हैं।” प्रधानमंत्री मोदी ने पहली बार अपने नारे का इस्तेमाल गुजरात के केवड़िया में 31 अक्टूबर को सरदार पटेल की जयंती पर किया था, जिसे राष्ट्रीय एकता दिवस के रूप में मनाया जाता है। इस नारे का उद्देश्य अनुसूचित जातियों (एससी), अनुसूचित जनजातियों (एसटी) और अन्य पिछड़ा वर्गों (ओबीसी) को अलग-अलग समूहों के बजाय एकसाथ लाना था।

प्रधानमंत्री के भाषण से यह संकेत मिलता है कि कांग्रेस के इस आरोप के बावजूद कि वह संविधान और आरक्षण के लिए खतरा है, भाजपा मंडल की सामाजिक न्याय की राजनीति को कमंडल के साथ जोड़ने की अपनी योजना पर अड़ी हुई है, जिसका मतलब है ऊंची जातियों, ओबीसी, एससी और एसटी में हिंदू पहचान बनाने की राजनीति। इस रणनीति के तहत भाजपा ने विपक्षी पार्टी पर ओबीसी, एससी और एसटी कोटे का हिस्सा अल्पसंख्यक समुदाय को देने के लिए रूढ़िवादी मुस्लिम तत्वों का साथ देने का भी आरोप लगाया है।

झारखंड की रैली में क्या बोले पीएम मोदी

सोमवार को झारखंड में भाजपा स्वयंसेवकों के साथ एक वर्चुअल संवाद में पीएम मोदी ने कांग्रेस के पतन को एससी, एसटी और ओबीसी के एकजुट गठबंधन के रूप में उभरने से जोड़ने की कोशिश की। उन्होंने कहा, “जब आजादी के बाद कांग्रेस पूरी तरह से शक्तिशाली थी तो लोग आरक्षण के बारे में बात करने की हिम्मत नहीं करते थे क्योंकि जवाहरलाल नेहरू से लेकर राजीव गांधी तक शाही परिवार इससे नफरत करता था।”

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पीएम ने कहा, “नतीजतन उस समय एससी, एसटी और ओबीसी छोटी-छोटी जातियों में बंट गए और उनमें ताकत की कमी हो गई। धीरे-धीरे वे समझने लगे कि बाबासाहेब अंबेडकर क्या कह रहे थे और एससी और एसटी के रूप में खुद को मजबूत किया। परिणामस्वरूप कांग्रेस को चुनौतियों का सामना करना पड़ा। जब 1990 के आसपास ओबीसी एकजुट हो गए तो कांग्रेस बिखर गई।”

‘एक हैं तो सेफ हैं’

पीएम मोदी ने आरोप लगाया कि कांग्रेस इन समुदायों को कमजोर करने और फिर उनका आरक्षण छीनने की उम्मीद रखती है। आप जानते हैं कि इसलिए मैं कहता हूं कि एक रहेंगे तो सेफ रहेंगे।

1990 के आसपास जाति एक महत्वपूर्ण राजनीतिक मुद्दा बन गई और कांग्रेस ने उत्तर प्रदेश में अपना दलित वोट खो दिया। नब्बे के दशक में उत्तर भारत के राजनीतिक क्षेत्र में दो प्रतिस्पर्धी उभर कर सामने आए, राम मंदिर की लहर पर सवार भाजपा या कमंडल की राजनीति और जाति की लहर पर सवार समाजवादी पार्टी और बहुजन समाजवादी पार्टी की राजनीति। जाति को हिंदुत्व के प्रतिपक्ष के रूप में देखा जाने लगा और इसके विपरीत भी।

बीजेपी की सोशल इंजीनियरिंग

इस समय तक भाजपा जिसे जनसंघ के समय में शहरी बनिया-ब्राह्मण पार्टी के रूप में जाना जाता था ने केएन गोविंदाचार्य के नेतृत्व में शुरू किए गए सोशल इंजीनियरिंग प्रयोग के तहत ओबीसी और दलितों के वर्गों तक पहुँचना शुरू कर दिया था। दलित कामेश्वर चौपाल ने राम मंदिर के शिलान्यास समारोह की पहली ईंट रखी तो ओबीसी लोध नेता कल्याण सिंह, एक अन्य लोध राजनेता उमा भारती और विनय कटियार गैर-यादव ओबीसी के बीच हिंदुत्व चेहरे के रूप में उभरे।

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सुशील मोदी बिहार में पार्टी का चेहरा बन गए और पार्टी ने जनता दल (यूनाइटेड) के नीतीश कुमार जैसे ओबीसी कुर्मी नेता को सीएम के रूप में समर्थन देने का फैसला किया। अगले दशक में भाजपा के ओबीसी क्षेत्रीय क्षत्रपों का उदय हुआ- गुजरात में नरेंद्र मोदी और मध्य प्रदेश में शिवराज सिंह चौहान।

भाजपा ने “हिंदू एकता” पर किया काम

राष्ट्रीय राजनीति में मोदी के उदय के साथ ही, भाजपा ने यूपी और बिहार में अपने पत्ते पूरी तरह से खोले और ओबीसी का प्रतिनिधित्व बढ़ाया। 2014 के बाद से हिंदी हार्टलैंड राज्यों में जीत और पूर्वी क्षेत्रों में विस्तार के साथ, भाजपा ने “हिंदू एकता” पर काम किया। पार्टी को उच्च जातियों से मुख्य वैचारिक समर्थन मिला और ओबीसी, दलितों और आदिवासियों से अधिक प्रतिनिधित्व की मांगों को पूरा करना और यह प्रवृत्ति 2019 में भी जारी रही।

पार्टी ने वंचित जातियों के बड़े वर्गों के समर्थन से कई राज्यों में जीत हासिल की और इसने ओबीसी और दलित नेताओं के लिए मंत्री पद का प्रतिनिधित्व बढ़ाकर और भारत के राष्ट्रपति पद के लिए एक दलित और फिर एक आदिवासी महिला को चुनकर जवाब दिया।

यह गठबंधन अपराजेय लग रहा था लेकिन विपक्ष ने इस साल एक मजबूत जवाबी बयान दिया जब उसने भाजपा और एनडीए के 400 से अधिक के नारे को संविधान को बदलने और भारी बहुमत के साथ आने पर आरक्षण को समाप्त करने के एक छिपे हुए प्रयास के रूप में पेश किया। यह सफल साबित हुआ और बीजेपी लोकसभा में 303 से 240 सीटों पर आ गई। अब, “एक रहेंगे,सेफ रहेंगे’ नारे के साथ, भाजपा हिंदुत्व की छत्रछाया में सभी वंचित समूहों को एकजुट करने की अपनी परियोजना को पटरी पर रखने के लिए गंभीरता से जवाबी हमला करती दिख रही है।