गुवाहाटी हाई कोर्ट (Gauhati High Court) की फॉरेनर्स ट्रिब्यूनल बेंच ने कहा है कि एक बार ट्रिब्यूनल ने किसी को भारतीय घोषित कर दिया है, तो उसी व्यक्ति को दूसरी बार उसके सामने लाने पर गैर-भारतीय घोषित नहीं किया जा सकता है। कोर्ट की यह टिप्पणी असम में इसलिए महत्वपूर्ण है क्योंकि यहां ऐसे कई मामले देखे गए हैं जहां भारतीय घोषित किए गए व्यक्ति को दो या अधिक बार राष्ट्रीयता साबित करने के लिए नोटिस भेजे गए थे।

राष्ट्रीयता से जुड़े एक मामले की सुनवाई के दौरान, कोर्ट ने कहा कि किसी व्यक्ति की नागरिकता के संबंध में ट्रिब्यूनल की राय ‘रेस ज्यूडिकाटा’ के रूप में काम करेगी – जिसका अर्थ है कि मामला पहले ही तय हो चुका है और उसे फिर से अदालत में नहीं लाया जा सकता है।

नागरिकता से संबंधित कई याचिका पर इस सप्ताह की शुरुआत में सुनवाई करते हुए जस्टिस एन कोटिस्वर सिंह और जस्टिस नानी तागिया की बेंच ने कहा है कि यदि किसी व्यक्ति को पहले की कार्यवाही में भारतीय नागरिक घोषित किया गया है तो बाद की किसी भी कार्यवाही में उसे विदेशी घोषित नहीं किया जा सकता, जैसा कि ऐसे मामलों में न्यायिक निर्णय का सिद्धांत लागू होता है।

कोर्ट ने यह भी कहा कि 2018 अमीना खातून मामले में उच्च न्यायालय द्वारा निर्णय लिया गया था, लेकिन पीठ ने कहा कि यह अब्दुल कुड्डुस के मामले में सुप्रीम कोर्ट के फैसले के मद्देनजर ‘अच्छा कानून नहीं’ है।

उस मामले पर बहस करते हुए, राज्य ने जोर देकर कहा कि विदेशी अधिनियम, 1946 की धारा 3 के तहत, केंद्र सरकार को विदेशियों का पता लगाने और उन्हें निर्वासित करने की शक्ति निहित है। केंद्र सरकार ने यह शक्ति पुलिस अधीक्षकों को सौंप दी, जबकि निर्वासन को अधिकार खुद के पास रखा। फॉरेनर्स (ट्रिब्यूनल) ऑर्डर, 1964 के तहत, पुलिस अधीक्षक केवल फॉरेनर्स ट्रिब्यूनल से राय लेते हैं और अंतिम फैसला खुद लेते हैं।

अब, याचिकाकर्ताओं ने सुप्रीम कोर्ट के कई फैसलों का हवाला देते हुए तर्क दिया है कि अमीना खातून के मामले में दिया गया फैसला पालन करने के लिए एक अच्छा कानून नहीं है। तब कोर्ट ने कहा कि ट्रिब्यूनल की राय ‘रेस ज्यूडिकाटा’ के रूप में काम करेगी। इसका मतलब यह होगा कि एक बार ट्रिब्यूनल ने किसी को भारतीय घोषित कर दिया है, तो उसे दूसरी सुनवाई में विदेशी घोषित नहीं किया जा सकता है।