असम और अरुणाचल प्रदेश के बीच लंबे समय से चल रहा सीमा विवाद जल्द सुलझ सकता है। दोनों पूर्वोत्तर राज्यों की सरकार सीमा विवाद को समाप्त करने के लिए गुरुवार (20 अप्रैल) को केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह की उपस्थिति में नई दिल्ली में एक समझौता ज्ञापन (MoU) पर हस्ताक्षर करेंगी।
समितियों की सिफारिशों को असम कैबिनेट की मंजूरी
न्यूज एजेंसी ANI की खबर के अनुसार असम कैबिनेट ने अरुणाचल प्रदेश के साथ दशकों से चल रहे सीमा विवाद के मुद्दे को हल करने के लिए राज्य सरकार द्वारा गठित 12 क्षेत्रीय समितियों द्वारा दी गई सिफारिशों को बुधवार को मंजूरी दे दी। असम के मुख्यमंत्री हिमंता बिस्वा सरमा की अध्यक्षता में गुवाहाटी में आयोजित राज्य मंत्रिमंडल की बैठक के दौरान यह फैसला लिया गया।
असम ने दिया एमओयू को अंतिम रूप
मंत्री अतुल बोरा ने बताया कि असम ने अपनी ओर से एमओयू को अंतिम रूप दे दिया है और इसे मंजूरी के लिए पड़ोसी राज्य को भेज दिया जाएगा। उन्होंने कहा, “एमओयू के मसौदे पर गहन चर्चा की गई और इसे अंतिम रूप दिया गया। अब इसकी कॉपी अरुणाचल प्रदेश की सरकार के साथ साझा की जाएगी और अगर वे सहमत हैं, तो हम उम्मीद करते हैं कि एमओयू पर इस महीने में हस्ताक्षर हो जाएंगे। हालांकि, उन्होंने यह भी कहा कि ये कहा नहीं जा सकता कि समझौता ज्ञापन अंतिम समाधान होगा।
क्या है असम-अरुणाचल सीमा विवाद?
अरुणाचल प्रदेश और असम के बीच 804 किमी की सीमा पर लगभग 1,200 बिंदुओं पर विवाद है। 1970 के दशक में यह विवाद उत्पन्न हुआ और 1990 के दशक में तेज हो गए। हालांकि, यह मुद्दा 1873 का है जब ब्रिटिश सरकार ने इनर-लाइन रेगुलेशन पेश किया था, जो मैदानी इलाकों को सीमांत पहाड़ियों से अलग करता था। यह क्षेत्र 1954 में नॉर्थ-ईस्ट फ्रंटियर एजेंसी ( NEFA) बन गया।
1951 की रिपोर्ट के आधार पर एक अधिसूचना के तीन साल बाद बालीपारा और सादिया तलहटी के मैदानी क्षेत्र के 3,648 वर्ग किमी को असम के दरांग और लखीमपुर जिलों में स्थानांतरित किया गया। अरुणाचल प्रदेश के नेताओं का दावा है कि स्थानांतरण मनमाने ढंग से अपने जनजातियों से परामर्श किए बिना किया गया था, जिनके पास इन भूमि पर अधिकार थे। असम में उनके समकक्षों का कहना है कि 1951 का सीमांकन संवैधानिक और कानूनी है।
असम-अरुणाचल के बीच सीमा विवाद सुलझाने की कोशिश
1971 और 1974 के बीच असम और NEFA/अरुणाचल प्रदेश के बीच सीमा के सीमांकन के लिए कई प्रयास किए गए। गतिरोध को समाप्त करने के लिए केंद्र और दोनों राज्यों को शामिल करते हुए एक उच्चाधिकार प्राप्त त्रिपक्षीय समिति का गठन अप्रैल 1979 में सर्वेक्षण के आधार पर भारत के नक्शे पर सीमा का निर्धारण करने के लिए किया गया था। ब्रह्मपुत्र नदी के उत्तर में लगभग 489 किलोमीटर की अंतरराज्यीय सीमा का 1984 तक सीमांकन किया गया था लेकिन अरुणाचल प्रदेश ने सिफारिशों को स्वीकार नहीं किया और 1951 में स्थानांतरित किए गए अधिकांश क्षेत्रों पर दावा ठोंक दिया।
असम ने इस पर आपत्ति की और 1989 में सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया और अरुणाचल प्रदेश पर अतिक्रमण का आरोप लगाया। अदालत ने 2006 में अपने एक सेवानिवृत्त न्यायाधीश की अध्यक्षता में एक स्थानीय सीमा आयोग नियुक्त किया। सितंबर 2014 की अपनी रिपोर्ट में, इस आयोग ने सिफारिश की कि अरुणाचल प्रदेश को 1951 में हस्तांतरित किए गए कुछ क्षेत्रों को वापस लेना चाहिए और दोनों राज्यों को चर्चा के माध्यम से बीच का रास्ता निकालने की सलाह दी। हालांकि, यह काम नहीं किया।