असम में शांति का एक नया समझौता पूरा कर लिया गया है। केंद्र सरकार ने अरबिंद राजखोवा के नेतृत्व वाले उल्फा गुट के साथ शांति समझौता किया है। इस समझौते को ऐतिहासिक माना जा रहा है, कहा जा रहा है कि 45 साल का संघर्ष अब खत्म हो चुका है। अब ये समझौता है क्या, इससे असम में क्या बदल जाएगा, समझौते के क्या पहलू हैं, सबकुछ सरल भाषा में यहां जान लीजिए।
असल में 29 दिसंबर को ULFA ने केंद्र और असम सरकार के साथ समझौता किया है। इसे एक त्रिपक्षीय समझौता माना जा रहा है। शुक्रवार को जब इस करार को पूरा किया गया तो गृह मंत्री अमित शाह, असम के मुख्यमंत्री हिमंत बिस्वा सरमा मौजूद रहे। समझौते के तहत कुल 700 कैडरों ने भी समर्पण कर दिया है, यानी कि बड़े स्तर पर इस एक करार का असर देखने को मिल रहा है।
अब पूरे देश में जब दूसरे मुद्दों पर चर्चा चल रही थी, राजधानी दिल्ली में ULFA के नेता केंद्र सरकार के साथ बैठक कर रहे थे। यहां ये समझना जरूरी है कि जिस गुट के साथ सरकार ने ये शांति समझौता किया है, उसने 2011 से ही कोई हथियार नहीं उठाया है, यानी कि वो लंबे समय से शांति समझौते के तहत मुख्यधारा में आना चाहता था। बड़ी बात ये है कि अभी सिर्फ उल्फा के सिर्फ एक गुट ने हथियार डाले हैं, परेश बरुआ की अध्यक्षता वाला उल्फा गुट अभी भी इस समझौते से दूर चल रहा है। ऐसे में वो कब इस शांति समझौते के साथ जुड़ेगा, ये देखने वाली बात रहेगी।
उल्फा गुट की बात करें तो ये असम का सबसे पुराना कट्टरपंथी संगठन है जिसने राज्य को स्वतंत्र करने के लिए हिंंसक रास्ता चुना था। इस संगठन की वजह से 45 सालों से असम हिंसा की चपेट में था और कुल 10 हजार लोगों की मौत भी हो गई थी। इसमें 4500 चो आम नागरिक रहे तो वहीं 700 के करीब सुरक्षाबल भी रहे। उल्फा के भी कई सदस्य इस हिंसा में मौत के घाट उतारे गए। वैसे पिछले कुछ समय से उल्फा गुट असम कम सक्रिय हो गया था, उसकी हिंसक घटनाओं में भी भारी कमी आई थी।