बिहार में चिराग पासवान की लोक जनशक्ति पार्टी (LJP) के टूटने के साथ ही चाचा-भतीजा के रिश्ते में दरार आ गई। पशुपति कुमार पारस ने पार्टी के बाकी नेताओं को तोड़ते हुए चिराग के पिता रामविलास पासवान की पार्टी पर अपना कब्जा जमा लिया। हालांकि, ऐसा पहली बार नहीं हुआ है कि परिवार में ही दो लोगों के बीच राजनीतिक विरासत को लेकर जंग छिड़ी हो। इतिहास में पहले भी कई मौकें आए हैं, जब चाचा और भतीजों में अपनी जमीन को लेकर तकरार जारी रही है। इसका उदाहरण महाराष्ट्र से लेकर उत्तर प्रदेश और बिहार तक देखा जा सकता है।

राजनीति में पारिवारिक विवाद का एक पुराना उदाहरण महाराष्ट्र में देखने को मिल चुका है। यहां ठाकरे की दूसरी पीढ़ी में सबसे पहले उद्धव और राज ठाकरे का ही नाम आता है। राज ठाकरे बालासाहेब के भाई श्रीकांत के बेटे हैं। जब बालासाहेब ने उद्धव को 2006 में अपनी विरासत और पार्टी की कमान सौंपने का फैसला किया था, तो इससे आहत होकर राज ठाकरे ने अपनी अलग पार्टी- महाराष्ट्र नवनिर्माण सेना (मनसे) बना ली थी। नई पार्टी बनाने के साथ ही उन्होंने तब यह भी कहा था कि शिवसेना को क्लर्क चला रहे हैं।

उत्तर प्रदेश में 2017 के विधानसभा चुनाव से पहले समाजवादी पार्टी में चाचा-भतीजे का विवाद किसी से छिपा नहीं था। अखिलेश यादव मुख्यमंत्री होने के बावजूद उस वक्त पार्टी में वो रसूख नहीं रखते थे, जो बुनियादी स्तर पर शिवपाल का था। अपनी सरकार में इसी दखल से खफा होकर चाचा-भतीजा में तनाव उपजा था। बाद में जहां शिवपाल ने अपनी अलग पार्टी बनाकर चुनाव लड़ा और सपा को बड़ा नुकसान पहुंचाया।

उधर महाराष्ट्र में भी 2019 के विधानसभा चुनाव के बाद शरद पवार और भतीजे अजित पवार के बीच उपजे विवाद ने कई महीनों तक राज्य की राजनीति को ही अधर में लटका दिया था। कहा जाता है कि 2019 के लोकसभा चुनाव में अजित पवार पार्टी की तल्खी की वजह से हार गए थे। इतना ही नहीं जब अजित पवार को ईडी का नोटिस आया था, तब शरद पवार या राष्ट्रवादी का कोई भी नेता आगे नहीं आया था। इन सबसे आहत अजित पवार ने 2019 के विधानसभा चुनाव के बाद एक सुबह अचानक ही उपमुख्यमंत्री पद की शपथ ले ली, जिससे चाचा-भतीजा का तनाव जगजाहिर हो गया।