दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल ने अपने सियासी करियर का सबसे बड़ा मास्टर स्ट्रोक चल दिया है। जेल से बाहर आते ही सीएम केजरीवाल ने ऐलान कर दिया है कि वे इस्तीफा देने वाले हैं, वे मुख्यमंत्री पद से खुद को मुक्त करने जा रहे हैं। राजनीतिक गलियारों में इस समय चर्चा चल रही है कि केजरीवाल ने सोच समझकर एक बड़ा सियासी दांव चलने का काम किया है।
आम आदमी पार्टी का नेरेटिव समझिए
जानकार मानते हैं कि अरविंद केजरीवाल चुनावी मौसम में इस इस्तीफे के जरिए एक सहानुभूति का वोट हासिल करना चाहते हैं। यह नहीं भूलना चाहिए कि लोकसभा चुनाव के दौरान भी कुछ इसी प्रकार की कवायद आम आदमी पार्टी कर चुकी है, तब केजरीवाल जेल में थे, सुनीता ने कमान संभाल रखी थी और नेरेटिव सेट किया गया था कि एक ईमानदार को झूठे केस में फंसाया गया।
यह अलग बात है कि आम आदमी पार्टी और केजरीवाल का वो दांव लोकसभा चुनाव में ज्यादा काम नहीं आ पाया और दिल्ली की सभी 7 सीटों पर इंडिया गठबंधन की करारी हार हुई। लेकिन अब गेम पलट चुका है, इस समय सुप्रीम कोर्ट ने केजरीवाल को कथित शराब घोटाले में जमानत दे दी है। उस जमानत के साथ जस्टिस उज्जवल भूइंया ने जो कुछ कहा है, उससे भी आम आदमी पार्टी को बड़ी राहत मिली है। असल में जस्टिस भूइंया ने अपना फैसला सुनाते हुए सीबीआई को कड़ी फटकार लगाई थी, यहां तक कहा था कि जांच एजेंसी को पिंजरे का तोता बनने से बचना चाहिए।
क्या केजरीवाल को भारी पड़ सकता है सीएम की कुर्सी छोड़ने का ऐलान?
अब आम आदमी पार्टी चुनावी मौसम में इसी बयान को अपना सबसे बड़ा हथियार बनाने वाली है। अभी तक तो विपक्ष की तरफ से सिर्फ आरोप लगते थे कि मोदी सरकार जांच एजेंसी के काम में दखल अंदाजी करती है, सिर्फ विपक्षी नेताओं के खिलाफ एक्शन होता है, अब जब सुप्रीम कोर्ट का फैसला भी इस दिशा में दिया गया है, ऐसे में बीजेपी के मुश्किलें बढ़ सकती हैं।
केजरीवाल को कुर्सी का लालच नहीं, मानेगी जनता?
आम आदमी पार्टी तो अरविंद केजरीवाल के इस्तीफे के जरिए साफ दिखने की कोशिश कर रही है कि उन्होंने एक ऐसे नेता को चुना है जिसको अपनी कुर्सी का कोई लालच नहीं, यानी कि एक बार फिर कट्टर ईमानदार वाले नेरेटिव पर जबरदस्त तरीके से खेलने की कोशिश होगी। वैसे इस प्रकार के दांव चलने का अरविंद केजरीवाल को एक अच्छा खासा अनुभव है क्योंकि अपनी शुरुआती राजनीति के दौरान भी मात्र 49 दिनों के अंदर में ही केजरीवाल ने सीएम कुर्सी छोड़ दी थी। उस समय भी उनके उस दांव का आम आदमी पार्टी के प्रचार में सकारात्मक असर देखने को मिला था, विधानसभा चुनाव में 70 में से 67 सीटें जीतकर पार्टी ने इतिहास रचा था।
अदालत नहीं दिल्ली की जनता बताए निर्दोष, AAP की पहल
आम आदमी पार्टी इस समय यह भी मानकर चल रही है कि दिल्ली की जनता के लिए सुप्रीम कोर्ट या फिर किसी दूसरी अदालत का फैसला उतना मायने नहीं रखना जितना अरविंद केजरीवाल की निजी लोकप्रियता निर्णायक साबित हो सकती है। पिछले 10 सालों में अरविंद केजरीवाल ने एक आम आदमी वाली छवि बना रखी है, राजनीति के लिहाज से अदालत से ज्यादा जनता के सामने निर्दोष साबित होना जरूरी है। पार्टी को लगता है कि केजरीवाल का इस्तीफा उस राह को कुछ आसान कर सकता है।
इस समय आम आदमी पार्टी अपने पक्ष में इस बात को भी मानती है कि अरविंद केजरीवाल ने इस्तीफा देने का ऐलान तब किया है जब सुप्रीम कोर्ट ने उन्हें जमानत देने का काम कर दिया यानी कि सर्वोच्च अदालत से राहत मिलने के बाद भी केजरीवाल ने कुर्सी सिर्फ इसलिए छोड़ने का फैसला किया क्योंकि वे जनता के दरबार में खुद को निर्दोष साबित करना चाहते थे, इस तरह से उन्होंने दिल्ली की जनता का सम्मान और ज्यादा बढ़ाने का काम किया है।
बीजेपी का नेरेटिव समझिए
अब आम आदमी पार्टी जरूर अपने लिए इस स्थिति को पूरी तरह मुफीद मान रही है, लेकिन यह नहीं भूलना चाहिए कि अरविंद केजरीवाल के इस्तीफे से बीजेपी भी काफी कुछ हासिल कर सकती है। अगर बात नेरेटिव सेट करने की ही है तो बीजेपी के पास भी अब बड़ा मौका आ चुका है। असल में बीजेपी को भी यह मौका सुप्रीम कोर्ट के फैसले से ही मिला है। असल में जमानत वाली सुनवाई के दौरान सुप्रीम कोर्ट ने दो टूक कहा था कि अरविंद केजरीवाल जेल से बाहर रहते वक्त ना तो अपने सरकारी दफ्तर में जा पाएंगे और ना ही वे किसी भी सरकारी कागज पर हस्ताक्षर कर सकते हैं।
दिल्ली का अगला मुख्यमंत्री कौन होगा?
हर अपराधी को मिलती बेल, क्लीन चिट नहीं, बीजेपी का दावा
सरल शब्दों में बोलें तो मुख्यमंत्री रहते हुए भी मुख्यमंत्री वाले कोई भी काम नहीं कर पाएंगे, किसी भी बड़ी योजना का ऐलान अपनी तरफ से नहीं कर सकते थे। जानकार मानते हैं कि यह बहुत बड़ा कारण है कि क्यों अचानक से अरविंद केजरीवाल ने इस्तीफा देने का फैसला किया। ऐसे में भाजपा इसी मुद्दे को भुनाने की कोशिश कर सकती है, तर्क दिया जाएगा कि सुप्रीम कोर्ट की तरफ से एक सामान्य अपराधी की तरह अरविंद केजरीवाल को सिर्फ जमानत मिली है, मामले में क्लीन चिट नहीं।
इस्तीफा दिया, मतलब दाल में काला, बीजेपी का मैसेज
इसके ऊपर बीजेपी के लिए यह दिखाना काफी आसान रहेगा कि अगर केजरीवाल को इस्तीफा देना पड़ रहा है, इसका मतलब ही यह है कि दाल में कुछ काला है। पार्टी तो पहले से ही कह रही कि आम आदमी पार्टी की सरकार ने काफी भ्रष्टाचार किया है, हर क्षेत्र में घोटाले हुए हैं। अब जब केजरीवाल ही सीएम कुर्सी छोड़ देंगे, बीजेपी आसानी से इसे उससे जोड़ देगी। वैसे भी जानकार मानते हैं कि अगर किसी दावे को लगातार बोला जाए फिर चाहे वो झूठ ही क्यों ना हो, मन में संशय पैदा हो सकता है।
भ्रष्टाचार, कई मोर्चे पर फेल केजरीवाल, जनता को बताएगी बीजेपी
इस समय आम आदमी पार्टी के लिए एक बड़ी मुश्किल यह भी है कि दिल्ली में पानी की समस्या बढ़ती जा रही है। एक तरफ जल संकट की वजह से कई इलाकों में पानी की कमी देखने को मिली है तो वही दूसरी तरफ पानी की निकासी नहीं होने की वजह से राजेंद्र नगर जैसे इलाकों में मासूम छात्रों की मौत हुई है। ऐसे में जिस गुड गर्वनेंस का दावा केजरीवाल सरकार करती है, उसको एक धक्का लगा है और बीजेपी केजरीवाल के इस्तीफे को उससे जोड़कर देख रही है। ऐसे में जनता के बीच में इसे दिल्ली के मुख्यमंत्री का एक बड़े फेलियर के रूप में पेश किया जा सकता है।
लालू की तरह केजरीवाल चलाएंगे ‘डमी सरकार’?
अब अरविंद केजरीवाल इस्तीफा देकर एक नया सीएम तो चुन लेंगे, लेकिन उन पर आरोप लग रहा है कि वे लालू प्रसाद यादव की तरह एक ‘डमी सरकार’ चलाने की कोशिश करेंगे। बीजेपी ने तो इसे ‘सोनिया मॉडल’ नाम भी दे दिया है। पार्टी का तर्क है कि जैसे यूपीए सरकार के दौरान कई मौकों पर सोनिया गांधी, मनमोहन सिंह पर भारी दिखती थीं, कुछ वैसा ही हाल अब दिल्ली में देखने को मिल सकता है। सीएम कोई भी बन जाए, सत्ता की चाभी केजरीवाल अपने हाथ में ही रखने वाले हैं। इसके ऊपर केजरीवाल ने इतनी मेहनत से जो ईमानदार नेता वाली छवि बनाई है, अगर लालू यादव से जोड़कर देखा जाएगा, यह भी उनकी राजनीति के लिए मुफीद नहीं और बीजेपी यह बात समझ चुकी है।
इंडिया गठबंधन में फूट, बीजेपी करने वाली है साबित
वैसे अरविंद केजरीवाल के इस्तीफे वाले दांव ने इंडिया गठबंधन में भी फूट डालने का काम कर दिया है। कहने को लोकसभा चुनाव के दौरान आप-कांग्रेस ने साथ मिलकर चुनाव लड़ा, कुछ दूसरे राज्यों के लिए भी सहमति बनी, अब जब हरियाणा डील टूट चुकी है, इसका असर भी दोनों के रिश्तों में दिखने लगा है। केजरीवाल के इस्तीफे वाले ऐलान पर संदीप दीक्षित ने दो टूक बोला है कि दोबारा सीएम बनने का कोई सवाल ही नहीं, हम तो पहले से कह रहे थे कि उन्हें इस्तीफा दे देना चाहिए था, यह सबकुछ नौटंकी है और कुछ नहीं।
अब यह बयान ही बताने के लिए काफी है कि कांग्रेस ने एक बार फिर आम आदमी पार्टी से अपनी राह अलग कर ली है। इस दूरी ने बीजेपी को फिर मौका दे दिया है कि वो जनता के सामने दिखा सके कि इंडिया गठबंधन बस ‘मोदी को हराने’ के लिए साथ आया है, उनके दिन, विचार नहीं मिलते हैं। अगर जनता को भी ऐसा ही लगने लगा तो नुकसान सिर्फ इंडिया गठबंधन को नहीं आम आदमी पार्टी को भी उठाना पड़ सकता है।
नोट: यहां दिए गए विचार लेखक के निजी हैं