दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल पिछले कुछ महीनों से कथित शराब घोटाले में जेल की सजा काट रहे हैं। उनकी तमाम याचिकाएं खारिज हुई हैं, उन्हें जमानत नहीं मिल पाई है। लेकिन अब सुप्रीम कोर्ट उनकी जमानत पर फैसला सुनाने जा रहा है। कल यानी कि शुक्रवार को सुप्रीम कोर्ट इस मामले में अहम सुनवाई करने जा रहा है, उसमें फैसला लिया जाएगा कि केजरीवाल को जमानत देनी है या सजा बरकरार रखनी है।
शराब घोटाला: केजरीवाल के लिए निर्णायक फैसला
जानकारी के लिए बता दें कि अरविंद केजरीवाल की कुल दो याचिकाए हैं, एक के जरिए अगर उन्होंने जमानत मांगी है तो दूसरी के जरिए उन्होंने सीबीआई की गिरफ्तारी को चुनौती दी है। दोनों ही मामलों पर अब सुप्रीम कोर्ट अपना रुख साफ करेगा। बड़ी बात यह है कि इसी मामले में इससे पहले मनीष सिसोदिया को कोर्ट ने जमानत दे दी थी। उन्हें जमानत देते हुए सर्वोच्च अदालत ने कहा था कि सजा अपवाद होती है तो जमानत अधिकार। अब उसी फैसले से सीएम केजरीवाल की उम्मीद भी बंधी है।
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मनीष सिसोदिया को क्यों मिली जमानत?
सीएम केजरीवाल के वकील पिछली सुनवाई के दौरान भी कह चुके हैं कि वे जमानत के हकदार हैं, उनसे समाज को कोई खतरा नहीं है। दूसरी तरफ सीबीआई का तर्क है कि केजरीवला को जमानत के लिए पहले निचली अदालत में जाना चाहिए था, लेकिन वे सीधे सुप्रीम कोर्ट पहुंच गए। अब सुप्रीम कोर्ट को यह तय करना है कि केजरीवाल की लीगल टीम सही बोल रही है या फिर सीबीआई के तर्कों में ज्यादा दम है। वैसे जिस शराब नीति की वजह से सीएम केजरीवाल मुश्किलों में फंसे है, उसे समझना भी जरूरी है।
कथित शराब घोटाले के बारे में हर जानकारी
असल में तीन साल पहले 17 नवंबर 2021 को राजधानी दिल्ली में आम आदमी पार्टी सरकार ने नई शराब नीति को लागू करने का फैसला किया था। इस नई नीति के मुताबिक दिल्ली को कुल 32 जोन में बांटा गया और कहा गया कि आप हर जोन में 27 शराब की दुकानें खोली जा सकती हैं। अगर इसी आंकड़े के हिसाब से टोटल किया जाए तो पूरी दिल्ली में 849 शराब की दुकानें खुलनी थीं। एक बड़ा बदलाव ये होने वाला था कि जो भी शराब की दुकाने खुलनी थीं, वो सारी प्राइवेट सेक्टर की होतीं, सरकार का कोई हस्तक्षेप नहीं था। दूसरे शब्दों में जिस शराब करोबार में पहले सरकारी की हिस्सेदारी रहती थी, नई नीति के तहत उसे ही खत्म कर दिया गया।
क्या सरकार को कोई नुकसान हुआ?
एक और बड़ा परिवर्तन ये देखने को मिला था कि नई नीति के बाद शराब की दुकान के लिए जो लाइसेंस लगता था, उसकी फीस कई गुना बढ़ गई थी। तकनीकी भाषा में उसे एल 1 लाइसेंस कहते हैं जिसके लिए कोई दुकानदार पहले 25 लाख रुपये देते थे, बाद में पांच करोड़ तक देने पड़ रहे थे। अब विवाद इसलिए खड़ा हुआ क्योंकि नई नीति लागू होने के बाद राजस्व में भारी कमी के आरोप लगने लगे।