राजनीतिक संकट से जूझ रहे अरुणाचल प्रदेश में राष्ट्रपति शासन लगाने का केंद्र सरकार का निर्णय बुधवार को सुप्रीम कोर्ट की समीक्षा के दायरे में आ गया। अदालत ने राज्य में राष्ट्रपति शासन लागू करने की सिफारिश संबंधी राज्यपाल ज्योति प्रसाद राजखोवा की रिपोर्ट की प्रति मांगी है। न्यायमूर्ति जेएस खेहड़ के अध्यक्षता वाले पांच सदस्यीय संविधान पीठ के समक्ष जब अटार्नी जनरल मुकुल रोहतगी ने प्रारंभिक आपत्ति उठाते हुए कहा कि राष्ट्रपति शासन लागू करने की अधिसूचना को नई याचिका में चुनौती नहीं दी गई है तो पीठ ने कहा कि यह बहुत गंभीर मामला है।

अटार्नी जनरल ने जब आपत्ति पर जोर देते हुए कहा कि नियम तो नियम हैं और ये सभी पर समान रूप से लागू होते हैं तो पीठ ने उनसे कहा कि तकनीकी आपत्तियां नहीं उठाएं। संविधान पीठ ने राज्य विधानसभा में कांग्रेस के मुख्य सचेतक राजेश ताचो सहित कांग्रेस नेताओं की याचिका पर सुनवाई एक फरवरी के लिए स्थगित करते हुए राज्यपाल और गृह मंत्रालय को शुक्रवार तक इस मामले में अपने जवाब दाखिल करने का निर्देश दिया। राष्ट्रपति शासन के तहत विधानसभा को निलंबित कर दिया गया है। पीठ ने याचिकाकर्ताओं को अपनी याचिका में शुक्रवार तक संशोधन की अनुमति भी दे दी है। राज्यपाल की ओर से जब अतिरिक्त महान्यायवादी सतपाल जैन ने रिपोर्ट और राष्ट्रपति शासन की सिफारिश पर गोपनीयता बनाए रखने का अनुरोध किया तो जजों ने कहा कि वे सुनवाई के दौरान सिर्फ राष्ट्रपति शासन की सिफारिश संबंधी रिपोर्ट की तारीख का ही दूसरे पक्षों के समक्ष जिक्र करेंगे। हालांकि पीठ ने अपने अवलोकन के लिए सीलबंद लिफाफे में यह रिपोर्ट और राष्ट्रपति शासन लगाने की सिफारिशें मांगीं।

पीठ ने कहा कि राष्ट्रपति शासन लगाने की सिफारिश की वजहों की जानकारी मिले बगैर तो हम आगे नहीं बढ़ सकते हैं। यदि ये वजहें अधिसूचना में दी गई वजहों के समान ही हैं तो यह एकदम अलग स्थिति हो जाएगी। संविधान पीठ के अन्य सदस्यों में न्यायमूर्ति दीपक मिश्रा, न्यायमूर्ति मदन बी लोकूर, न्यायमूर्ति पीसी घोष और न्यायमूर्ति एनवी रमण शामिल हैं। पीठ का यह भी मत था कि संबंधित पक्षों द्वारा राष्ट्रपति शासन लागू करने संबंधी अधिसूचना में बताए गए आधारों को देखे बगैर कोई अंतरिम आदेश हासिल नहीं किया जा सकता है। इस मामले की सुनवाई के दौरान राज्यपाल की रिपोर्ट और सिफारिशों पर गोपनीयता बनाए रखने के अनुरोध का फली नरिमन, कपिल सिब्बल, राजीव धवन और विवेक तंखा आदि वरिष्ठ वकीलों ने विरोध किया। इनका कहना था कि पांच न्यायाधीशों से भी बड़ी पीठ पहले ही इस संबंध में दिशानिर्देश प्रतिपादित कर चुकी है। हालांकि राजखोवा का प्रतिनिधित्व कर रहे जैन से सुनवाई के शुरू में ही संविधान पीठ ने 15 मिनट के भीतर राज्यपाल की सिफारिशों की प्रति हासिल करने के लिए कहा था। लेकिन जैन ने कहा कि रिपोर्ट की गोपनीयता बनाए रखने की आवश्यकता है।

उन्होंने कहा कि ऐसी तस्वीरें हैं जिनमें राज्यपाल को पशुओं की तरह काटने की धमकी के साथ ही राजभवन के सामने टायर और पोस्टर जलाने की घटनाएं भी हुई हैं। अटार्नी जनरल ने राष्ट्रपति शासन की अधिसूचना को चुनौती नहीं दिए जाने के तथ्य को पुरजोर तरीके से उठाया। उन्होंने कहा कि याचिकाकर्ताओं को नई याचिका दायर करने के लिए कहा जाना चाहिए। रोहतगी ने जब यह कहा कि कई रिपोर्टें हैं जिन पर राष्ट्रपति ने कार्रवाई की है तो पीठ ने मंगलवार की अधिसूचना की ओर उनका ध्यान आकर्षित करते हुए कहा कि इसमें सिर्फ एक ही रिपोर्ट का जिक्र है। पीठ ने कहा कि आप लगातार कह रहे हैं कि कई सिफारिशें हैं। राष्ट्रपति की अधिसूचना देखिए। इसमें सिर्फ एक रिपोर्ट और सूचनाओं का उल्लेख है।

इससे पहले, सुनवाई शुरू होते ही नरिमन ने सारे घटनाक्रम की जानकारी देते हुए कहा कि यह अंतरिम राहत के लिए उचित मामला है। उन्होंने कहा कि अदालत को पहली नजर में इस निष्कर्ष पर पहुंचना है कि यह मामला बनता है या नहीं। चूंकि राज्यपाल की रिपोर्ट हमारे पास नहीं है, इसलिए यह नहीं मालूम कि केंद्रीय शासन के लिए क्या आधार दिए गए हैं। नरिमन के इस कथन का वरिष्ठ वकील अशोक देसाई और विकास सिंह ने विरोध करते हुए कहा कि उनका पक्ष सुने बगैर कोई अंतरिम आदेश नहीं दिया जा सकता है। इस पर पीठ ने कहा कि हम सभी पक्षों को सुने बगैर कोई आदेश पारित नहीं करेंगे। यह संवेदनशील मामला है। देसाई ने कहा कि हो सकता है कि राज्यपाल द्वारा दिए गए कारणों से इतर राष्ट्रपति शासन लगाने की अधिसूचना में वजहें दी गई हों। इस पर पीठ ने कहा कि हां, इसी वजह से हम रिपोर्ट देखना चाहते हैं और इसी वजह से हम अटार्नी जनरल को सुनना चाहते हैं।

इस मामले के महत्त्व और इस पर शीघ्र सुनवाई की आवश्यकता को इंगित करते हुए सिब्बल ने कहा कि राष्ट्रपति शासन लागू करने संबंधी अधिसूचना पुष्टि के लिए संसद के आगामी सत्र में लोकसभा और राज्यसभा में पेश की जाएगी। हो सकता है कि राज्यसभा में यह पारित नहीं हो पाए क्योंकि वहां राजग को बहुमत नहीं है।उन्होंने कहा कि यदि इसकी पुष्टि नहीं हो तो भी केंद्र की कार्रवाई की वैधता पर अदालत को गौर करना ही होगा और यदि वहां नया मुख्यमंत्री हुआ तो उसे भी 23 फरवरी से पहले बहुमत सिद्ध करना होगा। पीठ जब संभावनाओं को नोट कर रही थी। तभी सिब्बल ने कहा कि यदि कोई सरकार गठित नहीं हो सकी तो फिर विधानसभा को भंग करने और नया चुनाव कराने के अलावा कोई अन्य विकल्प नहीं बचेगा। उन्होंने अदालत से अनुरोध किया कि यदि विपक्ष नई सरकार गठित कर लेता है तो इस याचिका को निरर्थक घोषित नहीं किया जाए।

इससे पहले वरिष्ठ वकील नरिमन द्वारा इस मामले की शीघ्र सुनवाई का अनुरोध किए जाने पर पीठ ने कहा कि राष्ट्रपति शासन लागू करने की केंद्रीय मंत्रिमंडल की सिफारिश को चुनौती देने वाली याचिका पर अपराह्न दो बजे सुनवाई की जाए। चूंकि संविधान पीठ पहले से ही संविधान के प्रावधानों के तहत राज्यपाल के विवेकाधीन अधिकारों के दायरे से जुड़े कानूनी पहलुओं पर विचार कर रही थी, इसलिए यह नया मामला और अधिक महत्त्वपूर्ण हो गया। इससे पहले विधानसभा अध्यक्ष पद से हटाए गए नबाम रेबिया ने अपनी याचिका में सरकार की सलाह के बगैर ही विधानसभा का सत्र आहूत करने के राज्यपाल के अधिकार सहित अनेक कानूनी सवालों को उठाया था। रेबिया को ईटानगर के सामुदायिक केंद्र में 16 दिसंबर को संपन्न विधानसभा के सत्र में कांग्रेस के विद्रोही विधायकों और भाजपा विधायकों ने अध्यक्ष पद से हटा दिया था।

याचिका में आरोप लगाया गया है कि राज्यपाल ने मुख्यमंत्री और उनके मंत्रिमंडल की सलाह के बगैर ही विधानसभा की बैठक को 14 जनवरी की बजाए 16 दिसंबर को आहूत कर लिया था। अरुणाचल की 60 सदस्यीय विधानसभा में कांग्रेस के 47 सदस्य थे। लेकिन पार्टी के 21 सदस्यों ने विद्रोह कर दिया। भाजपा सदस्यों ने नबम तुकी सरकार को गिराने के लिए उनका साथ दिया। बाद में अध्यक्ष ने 14 विधायकों को अयोग्य करार दे दिया था। इसके बाद ही राज्यपाल ने सामुदायिक केंद्र में विधानसभा का सत्र बुलाया जिसकी अध्यक्षता उपाध्यक्ष ने की। उपाध्यक्ष ने 14 सदस्यों की अयोग्यता रद्द करने के साथ ही रेबिया को अध्यक्ष पद से हटा दिया था।