जम्मू और कश्मीर के मसले पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व वाली एनडीए सरकार के खिलाफ देश भर के 200 लेखकों और सामाजिक कार्यकर्ताओं ने मोर्चा खोल दिया है। घाटी के मौजूदा हालात को लेकर उन्होंने अपने साझा पत्र में कहा है कि भारतीय संविधान के अनुच्छेद 370 को हटाकर केंद्र सरकार ने लोकतंत्र का मजाक उड़ाया है।
इन लेखकों और कार्यकर्ताओं ने आगे कहा कि जम्मू और कश्मीर को मिले विशेष राज्य के दर्जे को खत्म कर इसे दो केंद्र शासित क्षेत्रों में बांटने वाले केंद्र सरकार के फैसले ने सूबे से किए गए बड़े और अहम वादों का उलंल्घन किया है।
केंद्र के फैसले को अलोकतांत्रिक और असंवैधानिक करार देते हुए इन सभी ने आगे कहा, “जम्मू-कश्मीर के लोगों से इस बारे में नहीं पूछा गया। ऊपर से पांच अगस्त, 2019 से जो वहां पर स्थिति बनी हुई है, वह साफ दर्शाती है कि सरकार कश्मीरियों के असंतोष और लोकतांत्रिक असहमति से घबराती है।”
उनके मुताबिक, “हम सरकार के इस निर्णय की कड़ी आलोचना करते हैं कि उसने जम्मू और कश्मीर को दो केंद्र शासित प्रदेशों में विभाजित कर दिया।” उन्होंने इसी के साथ घाटी में न्यूनतम मानवाधिकारों को तत्काल प्रभाव से बहाल करने की मांग उठाई है। साथ ही अनुच्छेद 370 को भी फिर से लागू करने के लिए कहा है।
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चिट्ठी पर अमिताभ घोष, नयनतारा सहगल, पेरुमल मुरुगन, अशोक वाजपेयी, टीएम कृष्णा, जेवी पवार, बजवाड़ विल्सन, अमित चौधरी, शशि देशपांडे, शरण कुमार लिंबले, पी.साईनाथ, दामोदर मौजो, दलीप कौर तिवाना, बामा, संभाजी भगत, जेरी पिंटो और देशभर के अन्य हिस्सों में विभिन्न भाषाओं में सक्रिय कई लोगों के हस्ताक्षर शामिल हैं।
बता दें कि हाल ही में संसद के दोनों सदनों से जम्मू और कश्मीर पुनर्गठन बिल पास हुआ था, जिसके तहत अनुच्छेद 370 के ज्यादातर प्रावधान खत्म कर दिए गए। जम्मू और कश्मीर अब विशेष राज्य के बजाय दो केंद्र शासित प्रदेशों (जम्मू-कश्मीर और लद्दाख) के तौर पर विभाजित कर दिया गया है।

