जम्मू और कश्मीर को मिला विशेष राज्य का दर्ज खत्म कर उसे केंद्र शासित प्रदेश बनाने के नरेंद्र मोदी सरकार के फैसले पर कांग्रेस पहले भ्रमित और दुविधा में थी। शुरुआत में इस मसले को लेकर पार्टी नेतृत्व और नेताओं में स्थिति स्पष्ट नहीं थी, जबकि बाद में पार्टी अंदरखाने में इसका विरोध करने के लिए सहमति बनी। दरअसल, कांग्रेस के कई वरिष्ठ नेताओं ने मोदी सरकार के हालिया फैसले का समर्थन किया था। सोमवार (पांच अगस्त, 2019) को यूपीए अध्यक्ष सोनिया गांधी के करीबी माने जाने वाले पार्टी के सीनियर नेता जर्नादन द्विवेदी ने कहा था कि सालों बाद ऐतिहासिक भूल दुरुस्त की गई।

सोमवार को राज्यसभा से पारित होने के बाद अगले दिन (छह अगस्त, 2019) को यह बिल और संकल्प संसद में पेश होने थे, लिहाजा कांग्रेसी सांसद सुबह सोनिया और राहुल से मिले। राजनीतिक जानकारों की मानें तो इस भेंट के दौरान कांग्रेस में कश्मीर मुद्दे पर एक राय कायम की गई, ताकि लोकसभा में पार्टी अनुच्छेद 370 का अच्छे से विरोध कर सके।

सूत्रों ने बताया था कि सोनिया और उनकी पार्टी इस बिल का विरोध करेगी। बता दें कि सोमवार को जम्मू-कश्मीर पुनःगठन बिल के साथ राज्यसभा में जम्मू-कश्मीर आरक्षण बिल पास हुआ था। टीएमसी, जेडीयू सदस्य उस दौरान विरोध में वॉकआउट कर गए गए थे, जबकि बसपा, बीजेडी, वाईएसआर कांग्रेस, टीडीपी और आप सरीखे कुछ दलों ने इस पर मोदी सरकार का समर्थन किया था।

हालांकि, कल राज्यसभा में गुलाम नबी आजाद और कपिल सिब्बल जैसे सदस्य मोदी सरकार के निर्णय पर नाराज नजर आए थे। उन्होंने इसे ‘लोकतंत्र की हत्या’ करार दिया था। सोमवार को सीनियर कांग्रेसी नेता अभिषेक मनु सिंघवी ने कबूला था कि उनकी पार्टी इस मसले पर किनारे कर दी गई। वहीं, कांग्रेस चीफ पद छोड़ चुके राहुल ने आपातकालीन सीडब्ल्यूसी बैठक बुलाने के बारे में पूछने पर कहा- मैं कांग्रेस अध्यक्ष नहीं हूं, लिहाजा मैं यह बैठक नहीं बुला सकता।