अनलॉफुल ऐक्टिविटीज़ प्रिवेन्शन ऐक्ट (UAPA) इन दिनों एक बार फिर चर्चा में है। इस कानून के तहत पिछले साल कई छात्र नेताओं और सामाजिक कार्यकर्ताओं को गिरफ्तार किया गया। हालही में पिंजरा तोड़ की सदस्य देवांगना कलिता, नताशा नरवाल और जामिया मिल्लिया इस्लामिया के छात्र नेता आसिफ इक़बाल तन्हा को एक साल बाद जेल से रिहा किया गया। ये तीनों दिल्ली दंगों से जुड़े मामले में यूएपीए के आरोपों के तहत जेल में थे।

दिल्ली हाई कोर्ट की टिप्पणी और इन छात्रों की रिहाई के बाद एक बाद फिर इस कानून को लेकर चर्चा हो रही है। न्यूज़ चैनल ‘रिपब्लिक टीवी’ में भी ऐसी ही एक चर्चा हो रही थी। इस दौरान लेफ्ट नेता ने एंकर अर्णब को टोकते हुए कहा कि यूएपीए ब्रिटिश कानून है। जैसे इसे वहां हटा दिया गया है, यहां भी हटा देना चाहिए।” इसपर अर्णब ने कहा “यह ब्रिटिश कानून नहीं है, आप का दिमाग खराब हो गया है।”

वहीं लेफ्ट नेता को टोकते हुए एक पैनलिस्ट ने कहा “आप उस दौर में जन्में इसका मतलब ये नहीं कि कानून तब का।” इसके बाद भी लेफ्ट नेता चिल्लाते रहे कि यह एक ब्रिटिश कानून है। बता दें छात्र नेताओं को जमानत देते हुए अदालत ने कहा था कि “प्रथम दृष्टया तीनों पर यूएपीए के तहत केस नहीं बनता। विरोध करने का अधिकार गैर कानूनी नहीं है और वो यूएपीए के तहत ‘आतंकवादी गतिविधि’ की परिभाषा के तहत नहीं आता।”

नैशनल क्राइम रिकॉर्ड्स ब्यूरो (NCRB) के आंकड़ों के मुताबिक, यूएपीए के तहत 2015-2019 तक पांच साल में जितने भी लोगों को गिरफ्तार किया गया, उनमें से सिर्फ 2% को ही अदालत में दोषी साबित किया जा सका है। देशभर से इस दौरान 7,840 लोग गिरफ्तार किए गए। इनमें सिर्फ 155 को ही ट्रायल कोर्ट ने अपराधी माना।

आंकड़े बताते हैं कि दिल्ली में 2015-19 के बीच यूएपीए के तहत 17 केस दर्ज किए गए। जिनमें 41 संदिग्धों के नाम दिल्ली पुलिस की तरफ से दिए गए थे। लेकिन 2020 की बात करें तो इस साल 59 FIR दर्ज हुईं। इनमें कुल 18 लोगों को UAPA के तहत गिरफ्तार किया गया, इन पर दंगों की ‘साजिश’ रचने के आरोप लगाए गए।