कविता जोशी
देश की सरहदों पर तो सैन्यकर्मी बेहद मुश्किल हालात में दिन-रात निगहबानी में जुटे रहते हैं, लेकिन राष्ट्रीय राजधानी में वे बेहद जर्जर मकानों में रहने को मजबूर हैं। यहां की सैन्य आवासीय कालोनियों के निर्माण में जरूरी नियम प्रक्रिया का पालन नहीं किया गया है। इससे कहीं इमारतों में सीलन की समस्या है, तो कहीं पानी के पाइप की घटिया ‘फिटिंग’ से जल-रिसाव ने दिक्कतें खड़ी कर रखी हैं। इन सबके बीच चिंताजनक पहलू यह है कि इस मामले को कई बार रक्षा मंत्रालय के एक महत्त्वपूर्ण अंग सेना के संज्ञान में लाने के बावजूद आज तक कोई संतोषजनक कदम नहीं उठाया गया है।
लंबे इंतजार के बाद मिलता है घर
सेना के सूत्रों ने बताया कि आमतौर पर अधिकारियों व जवानों को जम्मू-कश्मीर से लेकर अरुणाचल-प्रदेश तक फैले सुदूर सीमावर्ती इलाकों से दिल्ली में तैनाती पर आते वक्त आवास के लिए एक से डेढ़ साल तक का लंबा इंतजार करना पड़ता है। उसके बाद भी जो घर रहने को मिलता है, उसकी हालत ऐसी कि कभी भी कोई बड़ा हादसा हो सकता है। सैन्यकर्मियों की एक जगह पर तैनाती की अवधि दो से तीन साल की होती है।
नियमानुसार किसी अधिकारी या जवान को नए तैनाती स्थल पर 14 दिन में घर आबंटित किए जाने का नियम है। लेकिन मौजूदा समय में इंतजार की अवधि काफी लंबी है। सैन्यकर्मियों का यह मानना है कि दिल्ली में उन्हें देश के बाकी राज्यों की तुलना में बेहतरीन घर मिलेंगे। लेकिन यहां पर बने आवासीय परिसरों की हालत बदतर है।
सैन्य आवासीय क्षेत्र में रहने वाले कुछ सैन्य अधिकारियों, जवानों और उनके परिवार के सदस्यों ने अनौपचारिक बातचीत में कहा कि देश की सरहदों की रक्षा और देशभक्ति की बेहद उच्च भावना से जुड़ी फौज की नौकरी के दौरान राजधानी में तैनाती पर आते वक्त हमारा पूरा रोम रोम आनंदित रहता है। लेकिन जब यहां पहुंचते हैं और जो आशियाना रहने के लि ए मिलता है, उसकी हालत देखकर असहनीय पीड़ा होती है।
कुछ ने कहा कि इन जर्जर इमारतों में कभी किसी घर का छज्जा गिरकर टूट जाता है तो कभी किसी घर की दीवार भरभराकर गिर जाती है। बीते दिनों एक वरिष्ठ सैन्य अधिकारी के घर का छज्जा अचानक गिर गया। इसके पहले एक कमजोर घर का छज्जा गिरने से एक महिला की मौत भी हो चुकी है।सैन्यकर्मी स्पष्ट रूप से कहते हैं कि घरों की हालत बेहद खराब है। लेकिन कोई अन्य विकल्प न होने की वजह से हमें इन्हें मजबूरी में लेना पड़ता है।सैन्य कालोनियों में ‘सीसीटीवी कैमरे’ नहीं लगे हुए हैं। इससे सुरक्षा पर भी सवाल रहता है।
जिम्मेदारी से पल्ला झाड़ते मैप और एमईएस
सूत्र बताते हैं कि सेना की आवासीय परियोजना (मैप) के तहत सैन्यकर्मियों और उनके परिजनों के रहने के लिए घरों का निर्माण किया जाता है। इनके बनकर तैयार हो जाने के बाद इन्हें सैन्य इंजीनियर सेवा (एमईएस) को सौंप दिया जाता है। एमईएस घरों के वितरण और मरम्मत का काम देखती है। मूलरूप से यह पूरी पांच लोगों की टीम होती है।
इसकी अध्यक्षता ब्रिगेडियर रैंक या दो अन्य सशस्त्र सेनाओं (वायुसेना, नौसेना) में इसके समकक्ष अधिकारी में से कोई एक करता है। इनके अधीन कुल तीन से चार सैन्य इंजीनियर सेवा के अधिकारी होते हैं। इनका कार्यकाल सामान्यत: तीन साल तक का होता है। ऐसे में एक बार घरों का आबंटन किए जाने के बाद कोई समस्या आने पर किसी की जवाबदेही तय नहीं की जा सकती है।
इन इलाकों में दिखती समस्या
दिल्ली में सैन्यकर्मियों के रहने के लिए धौलाकुआं-एक और दो, आरकेपुरम, एसपी मार्ग, तारापुर एनक्लेव और शंकर विहार जैसे इलाके मुख्य हैं। एमईएस कहता है कि जितने सैन्यकर्मी राजधानी में तैनाती के लिए आते हैं, उन सभी के लिए घर मौजूद हैं। लेकिन जमीनी सच्चाई इसके उलट है।आमतौर पर जो घर 14 दिन में किसी अधिकारी या जवान को आबंटित किया जाना होता है, उसमें दो से ढाई महीने का वक्त लगता है।
इसके साथ ही विशेष मरम्मत के नाम पर हमेशा तीन सौ से चार सौ घर ‘लंबित श्रेणी’ में रहते हैं। यह भी घर आबंटित होने में देरी को बढ़ाने का एक और बड़ा कारण है। विशेष मरम्मत में तीन से चार महीने का समय लगता है। गौरतलब है कि हर साल करीब एक हजार अधिकारी राजधानी आते हैं। इतनी ही संख्या जवानों की भी रहती है।
इस मामले को लेकर पूछे गए सवालों का सेना ने दो बिंदुओं में जवाब दिया है। पहले में उसका कहना है कि सैन्य इंजीनियर सेवा (एमईएस) की विवाहित आवासीय परियोजना (मैप) के तहत एक लाख से अधिक घरों का निर्माण किया जाता है। इसमें मरम्मत से जुड़ी वार्षिक योजना के हिसाब से मेहनत के साथ इमारतों का रखरखाव किया जाता है। जवाब के दूसरे बिंदु में सेना कहती है कि नियमित रखरखाव के अलावा जहां कहीं भी मरम्मत की जरूरत पड़ती है, मौजूदा नीति के तहत विशेष मरम्मत की जाती है।