भारतीय सशस्त्र बलों में जवानों के डिसएबिलिटी पेंशन की जांच के लिए इंटर सर्विस पैनल का गठन किया गया है, जिसकी अध्यक्षता एडजुटेंट जनरल कर रहे हैं। डिसएबिलिटी पेंशन के तहत विकलांगता के मुताबिक जवानों को उनकी कुल पेंशन पर 30 फीसदी तक का अधिक भुगतान किया जाता है। विकलांगता पेंशन की सटीक राशि का आंकड़ा उपलब्ध नहीं है, यह राशि कर मुक्त भी होती है। सरकार के सूत्रों ने कहा कि विकलांगता राशि बीते दो सालों में काफी हद तक बढ़ी है और 2022-23 में तकरीबन 4,000 करोड़ रुपये होने का अनुमान है। वहीं, 2023-24 के लिए कुल रक्षा पेंशन 1.38 लाख करोड़ रुपये तक होने का अनुमान है।

इंडियन एक्सप्रेस की रिपोर्ट के मुताबिक, 27 मार्च को संसद में सीएजी की रिपोर्ट में विकलांगता पेंशन को लेकर सवाल उठाया गया था कि मेडिकल समेत सेना के अधिकारी ज्यादा पेंशन के साथ रिटायर क्यों होते हैं। चीफ ऑफ डिफेंस स्टाफ जनरल अनिल चौहान ने एक पैनल का गठन करने के निर्देश दिए थे और अधिकारियों से पेंशन को लेकर विभिन्न पहलुओं की जांच करने के लिए कहा गया था। सीएजी ने रक्षा मंत्रालय के अधिकारियों के रिटायर होने पर विकलांगता के कारण पता करने के लिए भी कहा था।

2018 से पिछले पांच सालों में रक्षा विभाग में पेंशन की राशि 1.08 लाख करोड़ से 1.38 लाख करोड़ तक पहुंच गई है। उच्च विकलांगता पेंशन और ‘वन रैंक, वन पेंशन’ योजना में संशोधन और 28,138 करोड़ रुपये के बकाया ने रक्षा पेंशन में वृद्धि में योगदान दिया है। कैग रिपोर्ट में कहा गया कि 40 फीसदी रिटायर अधिकारियों में से 36 फीसदी विकलांगता रेंज में हैं। वहीं, ऑफिसर रैंक से नीचे के कर्मचारियों में यह आंकड़ा 2015-16 से 2019-20 के बीच 15 प्रतिशत और 18 प्रतिशत के बीच था। इसके अलावा, रिपोर्ट में कहा गया कि अधिकारियों और कर्मचारियों को मुख्यरूप से जीवनशैली बीमारियों के आधार पर पेंशन दी गई, जिनमें हाइपरटेंशन और डायबिटीज के केस ज्यादा हैं।

रिपोर्ट में इस बात का भी जिक्र है कि विकलांगता पेंशन के तहत सेना में रिटायर होने वाले मेडिकल अधिकारी बाकी अधिकारियों की तुलना में ज्यादा हैं। आंकड़ों के मुताबिक, रिटायर होने वाले मेडिकल अधिकारी 2015-16 में 50 फीसदी और 2019-20 में 58 फीसदी थे।

विकलांगता पेंशन का भुगतान लगभग 4,000 करोड़ रुपये है, लेकिन कैग रिपोर्ट से पता चलता है कि कुल अधिकारियों में से 40 फीसदी विकलांग पेंशन के साथ रिटायर हुए हैं। इंडियन एक्सप्रेस की रिपोर्ट में सरकारी अधिकारियों के हवाले से कहा गया कि पैनल का गठन कैग की फाइनल रिपोर्ट से पहले 20 मार्च को ही कर लिया गया था। पैनल बनाने का फैसला ड्राफ्ट रिपोर्ट के आधार पर ही कर लिया गया था। पैनल अभी तक एक बैठक कर चुका है। इसमें महानिदेशालय सशस्त्र बल चिकित्सा सेवा के एक वरिष्ठ अधिकारी और एक्स सर्विसमेन वेलफेयर, MoD (वित्त) सैन्य मामलों के विभाग (DMA) और एडजुटेंट जनरल की शाखा के अधिकारी शामिल हैं। इनके अलावा, तीनों सेवाओं के कार्मिक शाखा के प्रतिनिधि भी इस पैनल में हैं।