सुप्रीम कोर्ट ने गुरुवार को कर्ज में डूबे अनिल अंबानी के नेतृत्व वाली कंपनी रिलायंस इंफ्रास्ट्रक्चर को बड़ी राहत प्रदान की है। कोर्ट ने दिल्ली एयरपोर्ट एक्सप्रेस मेट्रो के एक मामले में रिलायंस समूह की कंपनी रिलायंस इन्फ्रा के पक्ष में फैसला सुनाया है। जिसके चलते अनिल अंबानी को करीब 4600 करोड़ रुपये मिलेंगे।
सुप्रीम कोर्ट ने आर्बिट्रेशन ट्रिब्यूनल के आदेश को सही ठहराते हुए दिल्ली मेट्रो रेल कॉरपोरेशन (DMRC) को रिलायंस इंफ्रास्ट्रक्चर की इकाई को ब्याज सहित 2800 करोड़ रुपये का भुगतान करने का निर्देश दिया है। इस फैसले के तहत रिलायंस इन्फ्रा को कुल 632 मिलियन डॉलर यानी करीब 4600 करोड़ रुपए मिलेंगे। कोर्ट के इस फैसले के बाद रिलायंस इन्फ्रा के शेयर में 5 फीसदी का उछल आया है। दो जजों की बेंच का ये फैसला अनिल अंबानी के लिए राहत की खबर है क्योंकि उनकी टेलीकॉम कंपनी दिवालिया हो चुकी है। अंबानी पर भी एक निजी दिवालिया केस चल रहा है।
क्या है पूरा मामला-
रिलायंस इंफ्रा की एक यूनिट ने 2008 में दिल्ली एयरपोर्ट एक्सप्रेस मेट्रो के संचालन के लिए एक ठेका हासिल किया था। इसके तहत करीब 22.7 किलीमीटर लंबी मेट्रो लाइन बिछाई गई जो नई दिल्ली रेलवे स्टेशन को सीधे आईजीआई एयरपोर्ट टर्मिनल-3 से कनेक्ट करती है। रिलायंस इन्फ्रा ने एयरपोर्ट मेट्रो लाइन के निर्माण में कुछ खामियों का जिक्र किया था। कंपनी का कहना था कि दिल्ली मेट्रो इन खामियों को दूर करने में लगातार असफल रही।
साल 2012 में शुल्क और संचालन पर विवादों के बाद, अनिल अंबानी की फर्म ने प्रोजेक्ट को बंद कर दिया। कंपनी ने दिल्ली मेट्रो के खिलाफ मध्यस्थता का केस फाइल कर दिया। मेट्रो ने कांट्रैक्ट के उल्लंघन का आरोप लगाते हुए टर्मिनेशन फीस मांगी थी। इस मामले में पहली बार 2017 में अनिल अंबानी की रिलायंस इन्फ्रा के पक्ष में फैसला आया।
दिल्ली मेट्रो ने ट्रिब्यूनल के फैसले के खिलाफ साल 2017 में दिल्ली हाईकोर्ट का दरवाजा खटखटाया था। साल 2018 में, दिल्ली हाईकोर्ट की सिंगल जज की बेंच ने ट्रिब्यूनल के आदेश को बरकरार रखा था। जनवरी 2019 में दिल्ली हाईकोर्ट की डिवीजन बेंच ने डीएमआरसी को राहत देते हुए ट्रिब्यूनल के फैसले को खारिज कर दिया था।
हाईकोर्ट की बेंच ने अपने आदेश में कहा था कि टर्मिनेशन कॉस्ट उचित नहीं है ऐसे में ट्राइब्यूनल का अवॉर्ड से जुड़ा आदेश निरस्त किया जा रहा है। दोनों पक्ष चाहें तो इस मुद्दे को दोबारा से आर्बिट्रेशन के सामने ले जा सकते हैं। इसके बाद फरवरी 2019 में रिलायंस ने हाईकोर्ट के फैसले के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया था।