बैंकरप्ट होने के कगार पर खड़े अनिल अंबानी के लिए पैसों की कितनी दरकार है, यह बात उनसे बेहतर कोई नहीं जानता। यही वजह है कि दिल्ली मेट्रो (DMRC) से अपनी रकम वापस लेने के लिए उनकी कंपनी रिलायंस इंफ्रा एड़ी चोटी का जोर लगा रही है। जोर भी इतना की सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता को दिल्ली हाईकोर्ट से कहना पड़ा कि अनिल अंबानी की कंपनी सरकार की बाजू मरोड़कर पैसे लेने की कोशिश में है।
जस्टिस सुरेश कुमार कैट की बेंच के समक्ष तुषार मेहता ने कहा कि अनिल अंबानी का ये रवैया गलत है। सरकार के साथ वह कई प्रोजेक्ट में काम कर रहे हैं। लेकिन पैसे वापस लेने के लिए जिस तरह का सलूक कर रहे हैं वह समझ से बाहर है। मेहता ने कहा कि यह दूसरा इस तरह का वाकया है। अगर यह तेवर जारी रहे तो नई पॉलिसी बनाने पर विचार करना पड़ेगा।
मेहता ने यह दलील अंबानी की सहायक कंपनी दिल्ली एयरपोर्ट मेट्रो एक्सप्रेस प्र. लि. (DAMEPL) की तरफ से पैरवी कर रहे एडवोकेट राजीव नैय्यर की अपील पर दिया। राजीव ने सरकार के उस प्रस्ताव का विरोध किया था, जिसमें कहा गया था कि वह उन बैंकों से सीधे डील करके कर्ज का निपटान करेगी जिन्होंने अंबानी की कंपनी को लेन दे रखा है। नैय्यर ने मेहता के उस प्रस्ताव का भी विरोध किया जिसमें कहा गया है कि अगले 48 घंटों में 1000 करोड़ रुपये निलंब खाते में जमा कराए जाएंगे। बाकी की रकम पर बाद में विचार होगा।
नैय्यर का कहना था कि वह बैंकों की हालत से वाकिफ हैं। वो लोगों के लिए काम करते हैं। डीएमआरसी अगर आर्बिटेशन की रकम चुकाने के लिए बैंकों से लोन लेती है तो जनता को कष्ट उठाने पड़ेंगे। नैय्यर का कहना था कि सरकार ये नहीं कह सकती कि वो कंगाल है। पैसा सीधा कोर्ट के पास आना चाहिए। उनका कहना था कि डीएमआरसी के पास दस हजार करोड़ का रिजर्व है। वो ये नहीं कह सकते हैं कि कंपनी बैंकरप्ट है।
कोर्ट में दोनों वकीलों के बीच आर्बिटेशन की रकम को लेकर भी तीखी बहस हुई। मेहता का कहना था कि जो रकम अनिल अंबानी की कंपनी को मिलनी है वो 5 हजार करोड़ के करीब है। जबकि नैय्यर का दावा था कि रकम 7100 करोड़ रुपये है। हालांकि, बाद में कोर्ट ने मेहता की उस दलील को रिकॉर्ड पर लेने का आदेश दिया जिसमें 1000 करोड़ रुपये निलंब खाते में जमा कराने की बात कही गई। सुनवाई 22 दिसंबर को होगी।
कर्ज के बोझ तले दबे अनिल अंबानी के लिए तब अच्छी खबर आई जब सुप्रीम कोर्ट ने 9 सितंबर को दिल्ली मेट्रो रेलवे कारपोरेशन से कहा कि वह अनिल अंबानी की कंपनी रिलायंस इन्फ्रास्ट्रक्चर को उसके क्लेम का भुगतान करे। कंपनी को इंट्रेस्ट भी दिया जाना है। सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले में DAMEPL के पक्ष में 2017 में आए मध्यस्थता अदालत के फैसले को बरकरार रखा। DMRC में दिल्ली सरकार की हिस्सेदारी 50 फीसदी है। जबकि केंद्र की 50 फीसदी हिस्सेदारी है।
मामले के मुताबिक 2008 में DAMEPL ने 2038 तक सिटी रेल परियोजना चलाने के लिए दिल्ली मेट्रो रेल कारपोरेशन के साथ एक करार किया था। 2012 में अंबानी की कंपनी ने विवादों के कारण राजधानी के एयरपोर्ट मेट्रो प्रोजेक्ट का संचालन बंद कर दिया था। कंपनी ने करार के उल्लंघन का आरोप लगाते हुए डीएमआरसी के खिलाफ आर्बिट्रेशन का मामला शुरू कर ट्रर्मिनेशन शुल्क की मांग की थी।